भारत ने एक बार फिर से रूस अपनी घनिष्ठता का अहसास पूरी दुनिया को करा दिया है. भारत ने दिखा दिया है कि कुछ भी हो जाए रूस भारत का साथ नहीं छोड़ेगा. वो भी ऐसे समय पर जब अमेरिका की रूस पर लगातार टेड़ी नजर बनी हुई है. अमेरिका उन देशों पर 500 फीसदी का टैरिफ लगा सकता है, जो उसके साथ कारोबार कर रहा है. यूं कहें कि कच्चा तेल खरीद रहा है. वास्तव में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप पुरी के अनुसार, रूस से भारत द्वारा निरंतर कच्चे तेल के आयात ने ग्लोबल एनर्जी प्राइसिंग स्टेबिलिटी में योगदान दिया है.
एक्सपर्ट ने बताया सच: जामुन की गुठली क्या सच में डायबिटीज को करती है कंट्रोल!
उन्होंने कहा है कि रूसी तेल व्यापार बंद करने से कच्चे तेल की कीमतें 120-130 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर पहुँच जातीं. रूस-यूक्रेन संघर्ष के बाद, जब अमेरिका और पश्चिमी देशों ने मास्को पर प्रतिबंध लगा दिए थे, भारत ने रूस से तेल की खरीद जारी रखी. वास्तव में, भारत ने रूस से कच्चे तेल का आयात बढ़ा दिया है.
जिसकी वजह से रूसी तेल उन देशों में भी रिफाइंड होकर भारत से जा रहा है, जिन्होंने रूसी कच्चे तेल पर प्रतिबंध लगाए हैं. भारत रूसी कच्चे तेल की वजह से रिफाइंड पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का बड़ा इंपोर्टर बनता जा रहा है. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर पेट्रोलियम मिनिस्टर ने इस बारे में विस्तार से किस तरह की बातें की…
तेल की कीमतें 130 डॉलर प्रति बैरल?
-
- एएनआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, पुरी ने एक प्रमुख कच्चे तेल उत्पादक के रूप में रूस की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला, जिसका उत्पादन प्रतिदिन 90 लाख बैरल से अधिक है.
- उन्होंने बताया कि लगभग 970 लाख बैरल की ग्लोबल सप्लाई में से 90 लाख बैरल अचानक कम होने से दुनिया भर में खपत में 10 फीसदी से अधिक की अव्यवहारिक कमी आ जाती.
- उन्होंने दावा किया कि इस तरह के व्यवधान की वजह से तेल की कीमतें 120-130 डॉलर प्रति बैरल से भी अधिक हो जातीं, क्योंकि दुनिया भर के उपभोक्ता सीमित आपूर्ति के लिए प्रतिस्पर्धा करते.
- उन्होंने वियना में कहा में कल्पना कीजिए कि अगर यह तेल, जो लगभग 970 लाख बैरल की ग्लोबल ऑयल सप्लाई का लगभग 10 फीसदी है, बाजार से गायब हो जाता, तो क्या होता.
- उन्होंने आगे विस्तार से बताया कि इससे दुनिया को अपनी खपत कम करने के लिए मजबूर होना पड़ता, और चूंकि कंज्यूमर कम सप्लाई के पीछे भागते, इसलिए कीमतें 120-130 डॉलर से भी अधिक हो जातीं.
क्या रूसी तेल पर प्रतिबंध नहीं था?
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने व्यापक प्रतिबंध लागू करने के बजाय रूसी तेल पर प्राइस लिमिट लगा दी. उन्होंने ऊर्जा संकट से निपटने में भारत की भूमिका की प्रशंसा करते हुए कहा रूसी तेल पर कभी भी वैश्विक प्रतिबंध नहीं था. दुनिया भर के समझदार निर्णयकर्ता ग्लोबल ऑयल सप्लाई चेन की वास्तविकताओं से अवगत थे और यह भी जानते थे कि भारत जहां से भी संभव हो, प्राइस लिमिट के अंतर्गत रियायती दर पर तेल खरीदकर ग्लोबल मार्केट की की मदद कर रहा था. भारत के रूसी तेल आयात के आलोचकों को संबोधित करते हुए पुरी ने कहा कि कुछ टिप्पणीकार ऊर्जा बाजार की कार्यप्रणाली को ठीक से समझे बिना ही भारतीय नीतियों की अनुचित आलोचना करते हैं.
भारत को रोज कितने कच्चे तेल की जरुरत
वर्तमान में, भारत अपनी 80 फीसदी तेल आवश्यकताओं और 50 फीसदी नेचुरल गैस कंजंप्शन के लिए आयात पर निर्भर है. अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, भारत ने कई इंटरनेशनल सप्लायर्स से तेल और गैस खरीदकर अपने स्रोतों में विविधता लाई है. दुनिया के तीसरे सबसे बड़े ऊर्जा उपभोक्ता के रूप में, भारत को प्रतिदिन लगभग 54 लाख बैरल तेल की आवश्यकता होती है. मौजूदा समय में भारत के इंटरनेशनल सप्लायर्स की संख्या 50 से ज्यादा हो चुकी है. वहीं भारत के क्रूड ऑयल बास्केट में रूस तेल की हिस्सेदारी 44 फीसदी पहुंच चुकी है.
