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November 14, 2025 9:24 pm

धरती आबा – जनजाति गौरव का सम्मान

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एक सामान्य गरीब परिवार में जन्म लेकर किसी का धरती आबा यानी भगवान बन जाना सामान्य बात नहीं है । महज पच्चीस वर्ष के जीवन काल में भगवान का दर्जा प्राप्त करने की यात्रा 15 नवम्बर 1875 को जन्मे बिरसा मुंडा ने तय की। आदिवासी समाज की दशा ओर दिशा परिवर्तन के साथ – साथ आदिवासी समाज के लिए नये युग की शुरुआत करने वाले जल, जमीन ओर जगल से जुड़े जननायक बिरसा मुंडा आदिवासियों के लिए मसीहा साबित हुए। बिरसा मुंडा ने तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत की तानाशाही एव औपनिवेशिक नीति के खिलाफ देशभर में बहादुरी के साथ लड़ाई लड़ते हुए आदिवासियों को जागृत करते हुए उलगुलान आन्दोलन की शुरुआत की । उलगुलान का नेतृत्व करते हुए ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष किया। देखा जाए तो भारत जनजाति विविधताओं से भरा देश है उत्तर में हिमालय की तलहटी से लेकर अंडमान निकोबार तक सात सौ से अधिक जन जाति समुदाय निवासरत है जिनकी जनसंख्या ग्यारह करोड़ के करीब है जो भारतीय जनसंख्या का 8.9 फीसदी है । आधुनिक जनजाति गौरव के प्रतीक बिरसा मुंडा की गाथा आज भी न केवल आदिवासीयों मे बल्कि देश के प्रत्येक नागरिक में देश के प्रति समर्पण होने कि भाव भर देती है अगर हम आजादी के आन्दोलोन में योगदान की बात करें देश का ऐसा कोई हिस्सा नहीं जहां आन्दोलन में बिरसा मुंडा से प्रेरित होकर आदिवासियों ने भाग नहीं लिया हो। स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी समुदाय के संघर्ष को सम्मान करते हुए सरकार ने आदिवासी नायक बिरसा मुंडा के जन्मदिवस को जनजाति गौरव दिवस का दर्जा दिया। जन जाति गौरव दिवस जैसी पहल जहां आदिवासियों में गौरव, आत्मसम्मान ओर सशक्तिकरण भावना विकसित करती है । धरती आबा (पृथ्वी के पिता ) के नाम से प्रसिद्ध बिरसा मुंडा को वास्तविक श्रृद्धांजलि तो तभी दी जा सकती है जब हम जल, जंगल ,जमीन को संरक्षित रखने हेतु संकल्पित हो । बिरसा मुंडा का जल जंगल ओर ज़मीन के सन्दर्भ में दिये गया व्यक्तव्य न केवल प्रकृति संरक्षण का नारा है बल्कि प्राकृतिक संसाधनों पर आदिवासियों के अधिकार को भी दर्शाता है लेकिन आधुनिकता की इस दौड़ में आदिवासी समुदाय भी चकाचौंध की दुनिया में भटकता नजर आ रहा है अपनी संस्कृति ओर प्रकृति को दरकिनार कर उस आभासी दुनिया की ओर अग्रसर है जहां दिखावा अधिक है और जनजाति विचारों को जोड़ने की जगह तोड़ने का काम किया जा रहा है जनजाति विकास की बात करने वाले हमारे अग्रज संगठन खड़ा करने ओर पदाधिकारी बनना ही आदिवासियों के विकास का पैमाना मानने लग गये। वर्तमान में आदिवासियों के उत्थान के लिए अनेक संगठन बने हुए हैं जिनमें पद की लालसा संगठन के लिए कही न कही ब्रेकर का कार्य करती नजर आ रही है इसलिए जनजाति गौरव के प्रतीक बिरसा मुंडा की 150 जयंती पर जनजाति समुदाय को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए एकता के सूत्र में बंधकर धरातलीय पृष्ठभूमि पर कार्य करना होगा तभी बिरसा मुंडा का आदिवासियों के लिए देखा गया सपना साकार हो सकता है ओर हम असली श्रृद्धांजलि के हकदार होंगे।

ओम प्रकाश मीना
अध्यापक राउमावि बिलोपा (स.मा.)

Sanjeevni Today
Author: Sanjeevni Today

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