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December 7, 2025 1:53 pm

पहली पाठशाला बदहाल, टपकती छतों के बीच मिल रहा खराब पोषाहार, आंगनबाड़ी के हालात पर उठे सवाल

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Jaipur News: आंगनबाड़ी को बच्चों की पहली पाठशाला कहा जाता है लेकिन राजस्थान में इसके हाल बेहाल है. कहीं टूटी छतें, कहीं पीने का पानी नहीं, और कहीं बच्चों के बैठने तक की जगह नहीं. पोषण ट्रैकर ऐप का लक्ष्य बढ़िया, पर जमीनी हकीकत कुछ और. वर्कर्स पर कागजी काम का बोझ ज्यादा, मानदेय कम, मोटिवेशन कहां से आएगा?

विभाग की अंनदेखी से जमीनी स्तर पर काम करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को कई परेशानियां है. ज़ी मीडिया ने जब आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से बात की तो उन्होने बताया कि कैसे आंगनबाड़ी केंद्रों के हाल खराब है. CDPO कभी नहीं आकर देखते कि कितनी परेशानी हो रही है. जहां पूरा दिन काम करना पड़ता, बच्चों को बैठाते. वहां बैठना सेफ भी नहीं और पोषाहार भी खराब होता है. हालात काफी दयनीय है. कुछ को तो दीवाली के बाद से मानदेय नहीं मिला.

किराए पर चल रहे 40 फीसदी भवन
प्रदेश में लगभग 40 फीसदी भवन किराए पर चल रहे है. विभाग उसके लिए ग्रामीण एरिया में 200 रू. और शहरी इलाकों में चल रहे भवनों के किराए के लिए 750 रू. देता है. लेकिन क्या इतने कम में किराए का भवन मिलना संभव है? ऐसे में फिर आंगनबाड़ी कार्यकर्ता या तो खुद के मानदेय से कुछ राशि मिलाकर भवन चलाती है. या फिर 200 और 750 में जैसा भी भवन मिलता है, वैसे में बच्चों को बैठाते है. टूटे हुए भवन, जगह एसी की 2 मिनट भी ना रूका जाएं, टपकती छतें, गिरते प्लास्टर, ना पंखा, ना लाइट, ना पानी, ना वॉशरूम क्या ऐसे में बैठे बच्चे?

केंद्रों के रिनोनेशन के लिए ये बजट जारी किया गया
उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी 100 का बजट आंगनबाड़ी के विकास और भवन निर्माण को लेकर जारी कर चुकीं है. केन्द्रों पर नल व्यवस्था, पानी की टंकी, इलेक्ट्रिक मोटर, बिजली फिटिंग, पंखें, एलइडी बल्ब आदि बिजली उपकरण, छत मरमत, रसोई में स्लेब लगवाना, चाइल्ड फ्रेंडली टॉयलेट, बाल चित्रकारी व डिस्टेबर, आरओ खरीदने, चिल्ड्रन पार्क विकसित करने, और केंद्रों के रिनोनेशन के लिए ये बजट जारी किया गया. लेकिन किराए के भवनों की तरफ किसी का ध्यान नहीं.

तो सवाल ये है कि लाखों बच्चों की बुनियादी शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य इन्हीं पर निर्भर… तो विकास की शुरुआत यहीं से क्यों नहीं? क्या हर ब्लॉक में मॉडल आंगनबाड़ी बनाने की योजना ज़मीन पर उतर रही? पोषण योजना में पारदर्शिता के लिए डिजिटल मॉनिटरिंग तो हो रही, FRS सिस्टम लागू किया गया है. लेकिन जब पोषाहार ही खाने योग्य नहीं, तो इस पोषाहार का क्या करें महिलाएं?

धात्री महिलाओं का कहना है कि पोषाहार में पहले दलिया और दाल जैसा कुछ दिया जाता था जो खा लेते थे लेकिन अब 3 तरह का पाउडर दिया जा रहा है. जिसमें खराब स्मेल आती है. जिस कारण उसे कोई नहीं खा सकता है.

DIYA Reporter
Author: DIYA Reporter

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