Old Car Raaz: 2 साल से मस्जिद के पास खड़ी थी कार, नहीं होती थी स्टार्ट, अंदर झांकते ही हैरान रह गए लोग!
गरीबी इंसान को क्या नहीं करने पर मजबूर कर देती है. इसका लाइव उदाहरण मलेशिया में देखने को मिला, जहां चार लोगों का परिवार दो साल से एक छोटे से कार में रहने को मजबूर है. अब इस फैमिली की स्टोरी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है.
गरीबी कभी-कभी इंसान को ऐसे हालत में पहुंचा देती है जहां जीना ही एक संघर्ष बन जाता है. मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर के बंदरबरू सेंटुल इलाके में अम्रू अल-अस मस्जिद के परिसर में दो साल से खड़ी एक पुरानी कार ने लोगों के होश उड़ा दिए. बाहर से तो लगता था कि ये कोई पुरानी गाड़ी है जो कभी स्टार्ट ही नहीं होती. लेकिन जब स्थानीय लोगों ने इसके अंदर झांका तो एक चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई.
एक पूरा परिवार उसी कार में रह रहा था. जी हां, दो साल से मस्जिद के कैंपस में खड़ी इस कार में पति, पत्नी और उनके दो छोटे बच्चे, जो पास के एसके श्री पेराक स्कूल में पढ़ते हैं, इसी ‘घर’ में रह रहे थे. यह दर्दनाक कहानी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई है, जहां लाखों लोग गरीबी के इस क्रूर चेहरे पर सवाल उठा रहे हैं. परिवार पाहांग प्रांत के टेमरलोह से कुआलालंपुर आया था ताकि बेहतर जीवन जी सके. लेकिन नौकरी की कमी, बढ़ती महंगाई और किराए की मार ने उन्हें सड़क पर ला दिया. खुले में रहने से बचने के लिए परिवार ने कार को ही अपना घर बना लिया.
दो साल से बना सहारा
फेडरल टेरिटरी उम्नो इन्फॉर्मेशन चीफ दातुक सुलम मुजफ्फर गुलम मुस्तकीम को किसी ने इसकी सूचना दी. उन्होंने अपने फेसबुक पर एक पोस्ट शेयर की, जिसमें लिखा, ‘यह परिवार पूरी तरह अपनी कार पर निर्भर है. बच्चे स्कूल जाते हैं, लेकिन घर जैसा कुछ नहीं है.’ दातुक सुलम ने बताया कि कार कभी हिलती ही नहीं दिखी, लेकिन अंदर परिवार का जीवन चल रहा था. मस्जिद के परिसर में पार्किंग की सुविधा ने उन्हें थोड़ा आश्रय दिया, लेकिन बरसात के दिनों में हालत और खराब हो जाती है. बच्चे स्कूल यूनिफॉर्म पहनकर जाते, लेकिन रातें कार की पिछली सीट पर बिताते हैं. यह मामला सामने आने के बाद उम्नो बतु ने तुरंत एक्शन लिया. उन्होंने फेडरल टेरिटरी इस्लामिक रिलीजियस काउंसिल (माईवप) से संपर्क किया और कुआलालंपुर सिटी हॉल (डीबीकेएल) से ट्रांजिट हाउस की मांग की.
फेडरल टेरिटरी उम्नो इन्फॉर्मेशन चीफ दातुक सुलम मुजफ्फर गुलम मुस्तकीम को किसी ने इसकी सूचना दी. उन्होंने अपने फेसबुक पर एक पोस्ट शेयर की, जिसमें लिखा, ‘यह परिवार पूरी तरह अपनी कार पर निर्भर है. बच्चे स्कूल जाते हैं, लेकिन घर जैसा कुछ नहीं है.’ दातुक सुलम ने बताया कि कार कभी हिलती ही नहीं दिखी, लेकिन अंदर परिवार का जीवन चल रहा था. मस्जिद के परिसर में पार्किंग की सुविधा ने उन्हें थोड़ा आश्रय दिया, लेकिन बरसात के दिनों में हालत और खराब हो जाती है. बच्चे स्कूल यूनिफॉर्म पहनकर जाते, लेकिन रातें कार की पिछली सीट पर बिताते हैं. यह मामला सामने आने के बाद उम्नो बतु ने तुरंत एक्शन लिया. उन्होंने फेडरल टेरिटरी इस्लामिक रिलीजियस काउंसिल (माईवप) से संपर्क किया और कुआलालंपुर सिटी हॉल (डीबीकेएल) से ट्रांजिट हाउस की मांग की.
मिल रही मदद
दातुक सुलम ने कहा, ‘हम एक किराये का घर मुहैया कराने की कोशिश कर रहे हैं ताकि परिवार को आराम मिल सके. बच्चे शिक्षा से वंचित ना हों.’ मस्जिद कमिटी ने भी सहयोग का वादा किया है, जहां परिवार को कभी-कभी खाना और पानी मिलता रहा है. लेकिन स्थायी समाधान की जरूरत है. वायरल पोस्ट पर हजारों कमेंट्स आए, जहां लोग दान की पेशकश कर रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, ‘मलेशिया जैसे अमीर देश में ये कैसे संभव है? सरकार को जिम्मेदारी लेनी चाहिए.’ मलेशिया में गरीबी की यह समस्या नई नहीं है. कोविड-19 महामारी के बाद आर्थिक मंदी ने लाखों परिवारों को प्रभावित किया है. सांख्यिकी विभाग के अनुसार, 2024 में 5.6% आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी, लेकिन शहरी इलाकों में किराया और शिक्षा का खर्च इसे और बढ़ा देता है. कुआलालंपुर जैसे महंगे शहर में एक छोटा फ्लैट का किराया 1500 रिंगिट (लगभग 28,000 रुपये) से शुरू होता है, जो कई परिवारों के लिए असंभव है. ऐसे में परिवार कार में रहने को मजबूर हो गया
दातुक सुलम ने कहा, ‘हम एक किराये का घर मुहैया कराने की कोशिश कर रहे हैं ताकि परिवार को आराम मिल सके. बच्चे शिक्षा से वंचित ना हों.’ मस्जिद कमिटी ने भी सहयोग का वादा किया है, जहां परिवार को कभी-कभी खाना और पानी मिलता रहा है. लेकिन स्थायी समाधान की जरूरत है. वायरल पोस्ट पर हजारों कमेंट्स आए, जहां लोग दान की पेशकश कर रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, ‘मलेशिया जैसे अमीर देश में ये कैसे संभव है? सरकार को जिम्मेदारी लेनी चाहिए.’ मलेशिया में गरीबी की यह समस्या नई नहीं है. कोविड-19 महामारी के बाद आर्थिक मंदी ने लाखों परिवारों को प्रभावित किया है. सांख्यिकी विभाग के अनुसार, 2024 में 5.6% आबादी गरीबी रेखा से नीचे थी, लेकिन शहरी इलाकों में किराया और शिक्षा का खर्च इसे और बढ़ा देता है. कुआलालंपुर जैसे महंगे शहर में एक छोटा फ्लैट का किराया 1500 रिंगिट (लगभग 28,000 रुपये) से शुरू होता है, जो कई परिवारों के लिए असंभव है. ऐसे में परिवार कार में रहने को मजबूर हो गया
ताजा खबरों के लिए एक क्लिक पर ज्वाइन करे व्हाट्सएप ग्रुप