भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस महीने की शुरुआत में मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की मीटिंग में लिए गए फैसलों की जानकारी दी थी। इस दौरान उन्होंने कहा था कि इस साल अच्छे मानसून, खरीफ की बुवाई में सुधार, नदी-तालाब के बढ़ते स्तर और रबी सीजन में बेहतर पैदावार की संभावना को देखते हुए आने वाले समय में खाद्य मुद्रास्फीति में नरमी आ सकती है।
सस्ता हो जाएगा लोन
गवर्नर के इस बयान ने देश के आम लोगों के लिए एक बहुत बड़ी उम्मीद दी है। दरअसल, महंगाई में कमी आएगी तो आरबीआई निश्चित रूप से रेपो रेट में बदलाव करते हुए इसमें कटौती करेगा। रेपो रेट में कटौती हुई तो देश के तमाम बैंक होम लोन, कार लोन जैसे प्रमुख लोन सस्ता कर देंगे यानी इनकी ब्याज दरें घटा देंगे। इससे आम लोगों की ईएमआई घट जाएगी और इसका सीधा और सकारात्मक असर आपकी बचत पर होगा।
अर्थव्यवस्था पर मानसून का असर
यहां हम जानेंगे कि मानसून कैसे महंगाई को कंट्रोल करता है। क्या मानसून सिर्फ महंगाई पर ही कंट्रोल करता है या इसका असर देश की अर्थव्यवस्था और जीडीपी पर भी पड़ता है। अगर मानसून अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है तो ये ऐसा कैसे कर लेता है।
भारत में अभी दक्षिण-पश्चिम मानसून चल रहा है। आमतौर पर ये मानसून जून में शुरू होता है और सितंबर तक चलता है। यही वो समय होता है जब देश के अलग-अलग हिस्सों में भारी बारिश होती है। कई बार, कई जिलों में, राज्यों में इस दौरान इतनी ज्यादा बारिश हो जाती है कि वहां बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं। हालांकि, इस मानसून में कई जगहें ऐसी भी होती हैं, जहां भरपूर बारिश नहीं हो पाती है।
देखा जाए तो हर साल पूरे देश में इस मानसून का बेसब्री से इंतजार किया जाता है। जहां आम लोग भीषण गर्मी से राहत पाने के लिए मानसून का इंतजार करते हैं तो देश के करोड़ों किसान बेहतर खेती और उपज के लिए मानसून का बेसब्री से इंतजार करते हैं। इतना ही नहीं, देश में चाहे किसी की भी सरकार हो, मानसून पर सभी की नजरें टिकी होती हैं। दरअसल, मानसून हमारे देश की जीडीपी और अर्थव्यवस्था पर सीधा असर डालता है।
इस साल मानसून के लिए क्या था अनुमान
एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस साल भारत में मानसून अच्छा चल रहा है और ये अभी भी काफी अच्छी स्थिति में है। मई 2024 में देश के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने जानकारी दी थी कि मात्रात्मक रूप से, पूरे देश में दक्षिण पश्चिम मानसून मौसमी वर्षा ±4 प्रतिशत की मॉडल त्रुटि के साथ लंबी अवधि के औसत (एलपीए) का 106 प्रतिशत होने की संभावना है। इस प्रकार, मानसून सीजन (जून से सितंबर), 2024 के दौरान पूरे देश में सामान्य से ज्यादा बारिश होने की संभावना है।
इसमें कहा गया था, ”देश के अधिकांश वर्षा आधारित कृषि क्षेत्रों वाले मानसून कोर जोन (एमसीजेड) में दक्षिण-पश्चिम मानसून मौसमी वर्षा सामान्य से ज्यादा (एलपीए का 106 प्रतिशत) होने की संभावना है।” हम यहां जानेंगे की भारत की अर्थव्यवस्था और जीडीपी में मानसून का क्या और कैसे योगदान होता है।
मानसून पर निर्भर है 3.9 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि हमारे देश की कृषि और करोड़ों किसान मानसून पर निर्भर करते हैं। इसलिए, ऐसा कहा जाता है कि मानसून हमारे कृषि की लाइफलाइन है। देश की मौजूदा 3.9 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था मानसून पर निर्भर है। आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में जितनी भी खेती होती है, उसे 50 प्रतिशत पानी बारिश से मिलता है।
इसका सीधा मतलब ये है कि जिस साल मानसून की रफ्तार अच्छी न हो और बारिश कम हो तो इससे सिर्फ देश के किसानों और खेती पर ही नहीं बल्कि हमारे देश की पूरी अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा। भारत की करीब 90 करोड़ आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है और ये आबादी मुख्य रूप से खेती-बाड़ी पर निर्भर होती है, जो भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 15 प्रतिशत है।
गांव खुश तो देश खुश
सामान्य से बेहतर मानसून होना हमारे देश की अर्थव्यवस्था के लिए काफी बढ़िया होता है। इससे हमारे देश के किसानों की आय और कृषि उत्पादन दोनों में बढ़ोतरी होती है। जब ऐसा होता है तो ग्रामीण इलाकों में लगभग सभी तरह के उत्पाद और सेवाओं की मांग को बढ़ावा मिलता है। देश की इंडस्ट्री, सिर्फ शहरों पर ही नहीं बल्कि गांवों पर भी काफी निर्भर करती है।
ग्रामीण मांग में कमी आई तो ये देश की किसी भी बड़ी-बड़ी से बड़ी इंडस्ट्री को बुरी तरह से प्रभावित करती है। दरअसल, हमारा पूरा देश किसी न किसी तार के जरिए गांवों और ग्रामीणों के साथ जुड़ा हुआ है। अगर गांवों और ग्रामीण किसी भी तरह से प्रभावित होते हैं तो इसका सीधा असर हमारी इंडस्ट्री यानी हमारी अर्थव्यवस्था और जीडीपी पर पड़ेगा।
खाद्यान उत्पादन
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने इस साल जून में वर्ष 2023-24 के लिए प्रमुख कृषि फसलों का तीसरा अग्रिम अनुमान जारी किया था। इसमें कहा गया था कि कुल खाद्यान्न उत्पादन 3288.52 LMT अनुमानित है, जो 2022-23 के खाद्यान्न उत्पादन से थोड़ा कम है। लेकिन ये पिछले 5 सालों (2018-19 से 2022-23) के औसत खाद्यान्न उत्पादन 3077.52 LMT से 211 LMT ज्यादा है।