बीकानेर : शिक्षक संघ एलीमेंट्री सेकेंडरी टीचर एसोसियशन (रेसटा) की और से प्रदेशाध्यक्ष मोहर सिंह सलावद की अध्यक्षता महान शिक्षाविद,भारत के प्रथम उप राष्ट्रपति व द्वितीय राष्ट्रपति,‘भारत रत्न’ श्रद्धेय डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन की 49वीं पुण्यतिथि पर उनके फोटो पर माला पहनाकर भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की गई। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पेंशन विभाग के सहायक निदेशक डॉ.राहुल गोठवाल रहें। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रदेशाध्यक्ष सलावद ने कहा की डॉ.राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 को चेन्नई से एक छोटे से कस्बे में हुआ था। उन्होंने न केवल महान शिक्षाविद के रूप में ख्याति प्राप्त की, बल्कि देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद को भी सुशोभित किया। स्वतंत्र भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन को बचपन में कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। डॉ.राधाकृष्णन भारतीय संस्कृति के ज्ञानी,एक महान शिक्षाविद,महान दार्शनिक,महान वक्ता भी थे। मुख्य अतिथि डॉ.गोठवाल ने कहा की राधाकृष्णन ने अपने जीवन के 40 वर्ष एक शिक्षक के रूप में बताएं । वह एक आदर्श शिक्षक थे। डॉ.राधाकृष्णन अपनी प्रतिभा का लोहा बनवा चुके थे। राधाकृष्णन की योग्यता को देखते हुए उन्हें संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया था।
वे 1952 तक वह राजनयिक रहे। इसके बाद उन्हें उपराष्ट्रपति के पद पर नियुक्त किया गया। संसद के सभी सदस्यों ने उन्हें उनके कार्य व्यवहार के लिए काफ़ी सराहा। 1962 में राजेंद्र प्रसाद का कार्यकाल समाप्त होने के बाद राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति का पद संभाला। 1967 के गणतंत्र दिवस पर डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने देश को संबोधित करते हुए यह स्पष्ट किया था कि वह अब किसी भी सत्र के लिए राष्ट्रपति नहीं बनना चाहेंगे। शिक्षा और राजनीति में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने महान दार्शनिक शिक्षाविद और लेखक डॉ. राधाकृष्णन को देश का सर्वोच्च अलंकरण ‘भारत रत्न’ प्रदान किया। राधाकृष्णन के मरणोपरांत उन्हें मार्च 1975 में अमेरिकी सरकार द्वारा टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया जो कि धर्म के क्षेत्र में उत्थान के लिए प्रदान किया जाता है। इस पुरस्कार को ग्रहण करने वाले वह प्रथम गैर-ईसाई संप्रदाय के व्यक्ति थे। डॉ.राधाकृष्णन सामाजिक बुराइयों को हटाने के लिए शिक्षा को ही कारगर मानते थे। जीवन के उत्तरार्द्ध में भी उच्च पदों पर रहने के दौरान शैक्षिक क्षेत्र में उनका योगदान सदैव बना रहा। 17 अप्रैल, 1975 को सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने लंबी बीमारी के बाद अपना देह त्याग दिया। लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में उनके कार्यों की वजह से आज भी उन्हें एक आदर्श शिक्षक के रूप में याद किया जाता है।शिक्षा को मानव व समाज का सबसे बड़ा आधार मानने वाले डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शैक्षिक जगत में अविस्मरणीय व अतुलनीय योगदान रहा है। शिक्षक समाज के ऐसे शिल्पकार होते हैं जो बिना किसी मोह के इस समाज को तराशते हैं। शिक्षक का काम सिर्फ किताबी ज्ञान देना ही नहीं बल्कि सामाजिक परिस्थितियों से छात्रों को परिचित कराना भी होता है। प्रदेशाध्यक्ष मोहर सिंह सलावद,जिला सभाध्यक्ष गोपाल शर्मा, पेंशन विभाग के सहायक निदेशक डॉ.राहुल गोठवाल,सुरेंद्र सिंह शेखावत,श्रवण कुमार ढाल,मनीष कुमार,शिवम स्वामी,पुखराज आचार्य ,गुलजार तंवर,ऋषभ कौशिक,नवीन गोयल,राकेश गर्ग,भानुप्रताप, रामनारायण मारू,आदि उपस्थित रहें।