दीपावली की रात आसमान में पटाखों की रौशनी थी, पर कुछ घरों में सन्नाटा पसरा हुआ था। जहां लोग देवी-देवताओं की पूजा कर दीप जलाकर खुशियां मना रहे थे, वहीं कुछ परिवारों के घरों में चीखें और आंसू थे। लापरवाही, जिज्ञासा और ज़रूरत से ज़्यादा रोमांच की चाह ने इस बार कई जिंदगियों को झुलसा दिया। जयपुर के एसएमएस हॉस्पिटल से लेकर भरतपुर के डीग तक दीपावली का यह जश्न अब दर्दनाक यादों में बदल गया है।
लाइव हिंदुस्तान दीपावली के अगले दिन एसएमएस अस्पताल में पूरा हाल जानने पहुंचा और देखा बर्न यूनिट मरीजों से भर चुका था। प्लास्टिक सर्जरी विभाग के एचओडी डॉ. आर.के. जैन के अनुसार, “तीन ऐसे मरीज हैं जिनके हाथों की उंगलियां पूरी तरह उड़ गईं, अब उन्हें सर्जिकल अम्प्यूटेशन करना पड़ेगा।”
इनमें 5 साल की मासूम अन्नु भी शामिल है -जिसकी दांयी हाथ की तीन उंगलियां बम फटने के साथ ही अलग हो गईं। उसके छोटे हाथ से अब पटाखों की नहीं, पट्टियों की गंध आती है। वहीं अंकित जाट (14) के हाथ में पटाखा जलाने के बाद विस्फोट हुआ, जिससे उसकी दो उंगलियां फटकर अलग हो गईं। डॉक्टरों के अनुसार दोनों बच्चों का जल्द ही ऑपरेशन किया जाएगा।
एसएमएस मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. दीपक माहेश्वरी ने लाइव हिंदुस्तान को बताया कि 19 और 20 अक्टूबर को कुल 46 मरीज बर्न केस में आए। 10 को भर्ती करना पड़ा। आंखों की चोट के 53 मामले आए जिनमें से 14 गंभीर हैं।” इस लापरवाही ने डॉक्टरों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया कि दीपावली पर ‘खुशियों का धमाका’ कैसे ‘बारूद का कहर’ बनता जा रहा है।
बाजारों में इस बार नया ट्रेंड था पाइप बम’, जिसमें पोटाश और गंधक भरकर चलाया जाता है। यह रोमांचक लगने वाला विस्फोटक कई युवाओं के लिए जानलेवा साबित हुआ।
झुंझुनूं के रवि (24) की आंखें इसी ‘पाइप बम’ ने जला दीं। वह सड़क से गुजर रहा था जब एक युवक ने पाइप बम पर हिट किया। अचानक धमाके से बारूद उसके चेहरे पर आ गया। रवि की बांयी आंख जल गई और चेहरे पर गहरे निशान पड़ गए। झुंझुनूं से सीकर और फिर जयपुर तक उसे रैफर किया गया — हर स्टेशन पर उसकी आंख की उम्मीद घटती गई।
डीग के रोहित (15) ने तो खुद ‘पाइप बम’ तैयार करने की कोशिश की थी। उसने गंधक और पोटाश मिलाकर पाउडर बनाया और उसे पाइप में भरने लगा। तभी धमाका हो गया। पलभर में कमरे में धुआं और बारूद फैल गया।
रोहित की मां की आंखों के सामने उसका चेहरा जल गया। दोनों आंखों की रोशनी चली गई, आगे के दो दांत टूट गए। “वह बेहोश होकर गिर गया था, हमें लगा शायद अब बच नहीं पाएगा,” मां ने सिसकते हुए कहा। भरतपुर से जयपुर रैफर होने के बाद अब उसका ऑपरेशन चल रहा है।
डीग के पहाड़ी इलाके में रहने वाला 7 साल का यतार्थ अपने दोस्तों के साथ पटाखे जला रहा था। लेकिन एक स्पार्क उसकी आंख में जा लगी। पलभर में दीपावली का खेल चीख में बदल गया। गंभीर हालत में उसे जयपुर भेजा गया, जहां उसकी बांयी आंख का ऑपरेशन किया गया।
राजस्थान में दीपावली की चकाचौंध के पीछे अब एक अंधेरा भी है — अस्पतालों में पटाखों से घायल बच्चे, जले हुए हाथ, खोई हुई आंखें और डरी हुई माताएं।
डॉ. माहेश्वरी ने कहा, “हर साल चेतावनी के बावजूद लोग खतरनाक बम और बारूद से बने पटाखे चलाते हैं। यह परंपरा नहीं, आत्मघात है।”
एक तरफ लोग दीयों की लौ से घर सजाते हैं, तो दूसरी तरफ वही लौ किसी के जीवन की रौशनी छीन लेती है। दीपावली के इस पर्व पर राजस्थान ने फिर एक बार यह देखा — कि लापरवाही का एक चिंगारी, पूरी जिंदगी को जला सकती है।






