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August 6, 2025 9:22 am

शपथ लेते ही किया ऐलान…….’कर्ज का बोझ कितना पिछड़ा है अमेरिका, जिसे ट्रंप बनाएंगे महान देश……

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अमेरिका आज भले ही दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है पर वहां मंदी भी तेजी से दस्तक दे रही है. महामंदी और कोरोना महामारी के बाद पिछले साल जुलाई में अमेरिकी अर्थव्यवस्था सबसे बड़े संकट में दिख रही थी. सामने आए आंकड़ों के अनुसार अमेरिका जुलाई 2024 से ही आर्थिक मंदी की कगार पर खड़ा है. इसके अलावा अमेरिका में लोगों के जीवनयापन का खर्च काफी बढ़ गया है.

पिछले कुछ सालों में अमेरिका आर्थिक रूप से कमजोर हुआ है. इसीलिए शपथ ग्रहण में नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फिर से इसे महान देश बनाने की बात कही है. जानिए, अमेरिका कैसे कमजोर हुआ, जिसे ट्रंप ने एक बार फिर महान देश बनाने की बात कही.

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जीडीपी का 125 फीसदी पहुंचा कर्ज

जुलाई 2024 में सामने आए आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका की सरकार का खर्च मई-24 में 6.5 ट्रिलियन डॉलर पहुंच गया था. इसके साथ ही इस आर्थिक महाशक्ति का बजट डेफिसिट जीडीपी का 6.2 फीसदी हो गया था. आमतौर पर बड़े आर्थिक संकट के दौरान ही ऐसा होता है. जो बाइडन के कार्यकाल में अमेरिका का कुल कर्ज नए रिकॉर्ड पर पहुंच गया था. अप्रैल-2024 के आंकड़ों के अनुसार, फेडरल गवर्नमेंट का कर्जा 34.6 अरब डॉलर पहुंच चुका था. यह अमेरिका की जीडीपी का करीब 125 फीसदी था.

आंकड़े यह भी बताते हैं कि मैन्युफैक्चरिंग के मामलें में भी अमेरिका पिछड़ा है. आयात भी बढ़ा है और निर्यात में कमी आई है. इसका सीधा असर अमेरिका की इकोनॉमी पर पड़ा है.

इतना हो जाएगा दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था पर कर्ज

आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि जो बाइडन के कार्यकाल के दौरान पिछले चार सालों में अमेरिका का कर्जा 47 फीसदी यानी करीब 11 ट्रिलियन डॉलर बढ़ गया है. ऐसे में हर अमेरिकी करदाता पर करीब 267,000 डॉलर (करीब 2,21,75,778 रुपए) का कर्ज है. ऐसी ही रफ्तार बनी रही तो अमेरिका का कर्जा साल 2025 तक 40 ट्रिलियन तक पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है.

फेड रिजर्व अगर ब्याज दरों में कटौती नहीं करता है तो इस कर्जे पर अमेरिका को हर साल 1.6 ट्रिलियन डॉलर ब्याज भी देना होगा. ऐसे में माना जा रहा है कि पहली बार अमेरिका का ब्याज भुगतान उसके रक्षा बजट और मेडिकेयर खर्च से भी ऊपर पहुंच जाएगा.

आम लोगों के जीवनयापन का खर्च बढ़ा

अमेरिका में कामकाजी लोगों का जीवनयापन खर्च जो बाइडन के कार्यकाल के अंतिम दिनों में काफी बढ़ गया. एपी वोटकास्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार 30 अक्तूबर से 5 नवंबर 2024 तक 1,20,000 से अधिक पंजीकृत मतदाताओं के बीच एक सर्वेक्षण किया गया था. इनमें से 96 फीसदी ने कहा था कि नवंबर 2024 में राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में गैस और किराने के सामान की अत्यधिक कीमतों को ध्यान में रखते हुए मतदान किया.

अमेरिकी मुद्रास्फीति के आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका में लोग बाइडन के राष्ट्रपति बनने के पहले की तुलना में 22 फीसदी अधिक खर्च कर रहे हैं. मार्च 2024 में संघीय व्यापार आयोग (एफटीसी) की रिपोर्ट में कहा गया था कि खानपान के सामान बेचने वालों का राजस्व साल 2021 में कुल लागत से छह फीसदी से अधिक बढ़ गया.

आवास की बढ़ती दरें भी बनीं परेशानी का सबब

बाइडेन के कार्यकाल में कामकाजी लोगों को आवास की बढ़ती लागतों से भी जूझना पड़ा. अप्रैल 2024 में अमेरिका में आवास की लागत उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी. किराए में सितंबर में 3.3 फीसदी की वृद्धि हुई थी. पूरे देश में लगभग आधे किराएदार अपनी कुल आमदनी का 30 फीसदी से ज्यादा आवास पर खर्च कर देते हैं. अमेरिकी आवास और शहरी विकास विभाग की ओर से एक रिपोर्ट जारी की गई है. इसमें बताया गया है कि जनवरी-2024 में केवल एक रात में 770,000 से ज्यादा लोग बेघर थे.

इजराइल पर नहीं कस पाए नकेल

मध्य पूर्व देशों में अपने सबसे करीबी इजराइल की हरकतों पर लगाम कसने में अमेरिका नाकाम रहा. इससे गाजा के हमले की प्रतिक्रिया में इजराइल करीब डेढ़ साल तक वहां हमले करता रहा. इस दौरान अमेरिका की ओर से इजराइल को अरबों डॉलर की मदद दी जाती रही. अमेरिका के अधिकारियों ने उन अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को धमकाया जो इजराइल को ऐसे नरसंहार के लिए जवाबदेह ठहराना चाहते थे.

इसका नतीजा यह हुआ कि लीबिया, सीरिया से लेकर ईरान तक पर इजराइल ने हमले किए. इसकी प्रतिक्रिया भी हुई. इस दौरान कभी बाइडन इजराइल को समर्थन देते दिखे तो कभी गीदड़ भभकी भी दी.

रूस-यूक्रेन युद्ध को बढ़ावा दिया, चीन से शीतयुद्ध जारी

दुनिया में शांति की स्थापना के लिए प्रयास करने के बजाय अमेरिका युद्ध की आग में घी डालता नजर आया. ऐसे ही एक और मोर्चे पर बाइडेन प्रशासन विफल रहा, वहा है रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध. इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि इन दोनों देशों में शांतिपूर्ण बातचीत के बीच अमेरिका अहम रुकावट बना रहा और युद्ध को और बढ़ावा देने के लिए यूक्रेन को अरबों डॉलर की सैन्य आपूर्ति जारी रखी.

इसके अलावा चीन के साथ चल रहे शीत युद्ध को बाइडन ने भी जारी रखा. चीन और उसके सहयोगी उत्तर कोरिया पर नजर रखते हुए अमेरिका ने पूर्वी एशिया में सैन्य अभ्यास बढ़ा दिए. इसका नतीजा यह हुआ कि दुनिया भर के देशों में हथियारों की होड़ बढ़ी.

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