यूक्रेन पर पुतिन-जिनपिंग की मुलाकात को क्यों नजरअंदाज नहीं कर सकता है भारत?

 
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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जिस नये वर्ल्ड ऑर्डर को बनाना चाहते हैं, उसमें भारत का क्या रोल होगा? शक्ति के इस नए संतुलन में भारत अपनी जगह कहां देखता है। इस सवाल पर उस परिदृश्य में विचार हो रहा है जब जिनपिंग रूस के दौरे पर हैं और यूक्रेन वॉर को खत्म करने के लिए मध्यस्थता करने जा रहे हैं।

 

नई दिल्ली। मास्को में बातचीत की टेबल पर जब व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग आमने-सामने होंगे तो उनके सामने वो सवाल होगा जिससे दुनिया में शांति की आमद तय हो सकती है? ये सवाल है- यूक्रेन की जंग का। ये सवाल है जंग के बाद शांति बहाली का। ये सवाल है शक्ति के नए संतुलन और नए किस्म के वर्ल्ड ऑर्डर का। 

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इस नए वर्ल्ड ऑर्डर के शीर्ष पर निश्चित रूप से अमेरिका नहीं है। सत्ता के इस नए संतुलन में चीन, अमेरिका को हटाकर स्वयं शीर्ष पर काबिज होना चाहता है। इस नए वर्ल्ड ऑर्डर में चीन अपनी भूमिका ग्लोबल पीसमेकर के रूप में देखता है। इसलिए ईरान और सऊदी अरब के बीच एक ऐतिहासिक समझौता कराने के बाद जिनपिंग ने अपने हाथ में नया मिशन लिया है। ये मिशन है यूक्रेन युद्ध खत्म कराने का। 

यहां एक प्रश्न यह भी है कि बीजिंग के प्रभुत्व वाले इस वर्ल्ड ऑर्डर में भारत खुद को कहां पाता है? दो तानाशाही मिजाज के नेता, जिनमें एक चीन में तो सत्ता पाने के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था है ही नहीं, अगर दुनिया को अपने स्टाइल में हाकेंगे तो भारत को इस रेस पर लगाम कसने के लिए अपनी तैयारी भी करनी होगी। 

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क्या यूक्रेन के आसमान में उड़ेंगे शांति के कबूतर?
लेकिन पुतिन जिनपिंग के इस पीस ऑफर को कितनी तवज्जो देंगे? जिनपिंग पुतिन पर कितना डिप्लोमैटिक दबाव बना पाएंगे। इन सवालों का जवाब जानने के लिए हमें लगभग 13 महीने पीछे चलना पड़ेगा। फरवरी 2022 में बीजिंग में विंटर ओलंपिक चल रहा था। यूक्रेन पर अपने 'विशेष सैन्य ऑपरेशन' शुरू करने से मात्र 4 दिन पहले यानी की 20 फरवरी को 2022 को पुतिन चीन में थे। यहां जिनपिंग और पुतिन की मुलाकात हुई। इसके बाद दोनों नेताओं ने कहा कि रूस चीन संबंधों की कोई सीमा नहीं है।  इस मुलाकात के मात्र 4 दिन बाद यानी कि 24 फरवरी को पुतिन ने अपने टैंकों को यूक्रेन की ओर मार्च करने का आदेश दे दिया। तो क्या एक साल बाद पुतिन से जिनपिंग की एक और मुलाकात यूक्रेन में शांति के कबूतरों के उड़ने के लिए आसमान को भयमुक्त बना देगी? 

इस सवाल के जवाब में चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग येनबिन ने कहा, "शी का रूस दौरा शांति को लेकर है। विश्वशांति की रक्षा करना और कॉमन डेवलपमेंट को बढ़ावा देना हमारी विदेश नीति का लक्ष्य है। यूक्रेन मुद्दे पर चीन हमेशा से शांति और संवाद का पक्षधर रहा है और हम हमेशा इतिहास के सही पक्ष में खड़े रहते हैं।" यहां ये बताना जरूरी है कि भारत की तरह चीन ने भी अब तक यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा नहीं की है।

यूक्रेन मुद्दे पर चीन के रूख को देखें तो पाएंगे कि बीजिंग मास्को के रुख को ही पोषित करता रहा है। बीजिंग ये मानता है कि नाटो की ओर से पूर्व में विस्तार की नीति ने रूस की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा किया है और यूक्रेन के पश्चिमी सहयोगियों ने जेलेंस्की को टैंक और मिसाइल की सप्लाई करके रूस की चिंता और बढ़ा दी।  

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चीन, रूस और नो लिमिट पार्टनरशिप...
इसी साल फरवरी में फरवरी में, चीन ने "यूक्रेन संकट के राजनीतिक समाधान पर चीन की स्थिति" नाम से एक 12 प्वाइंट का एजेंडा पत्र जारी किया। इस पत्र में चीन शत्रुता को समाप्त करने और शांति वार्ता को फिर से शुरू करने पर जोर तो देता है, लेकिन चीन ने यह भी कहा है कि एकतरफा प्रतिबंधों को समाप्त किया जाए और शीत युद्ध की मानसिकता को भी छोड़ा जाए। चीन का इशारा अमेरिका, ईयू और नाटो की ओर है। साफ है कि बीजिंग का पलड़ा रूस की ओर झुका रहता है।

चीन पाकिस्तान के साथ अपनी दोस्ती को हिमालय से ऊंचा बताता है तो रूस के साथ उसने अपने संबंधों को 'नो लिमिट पार्टनरशिप' करार दिया है। यानी कि दोनों देशों के संबंधों की विस्तार की कोई सीमा नहीं है। 

शी जिनपिंग के इस दौरे को अमेरिका ने शक की निगाह से देखा है और यूक्रेन जंग खत्म कराने की उसकी अथॉरिटी पर ये कहकर सवाल खड़ा किया है कि चीन द्वारा पेश किया गया कोई भी फ्रेमवर्क सिर्फ रूसी नजरिये को ही सामने रखेगा और इसमें यूक्रेन का हित पीछे छूट जाएगा।  

यूएस नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने कहा कि चीन द्वारा लाए गए किसी भी युद्ध विराम की संभावना को अमेरिका खारिज करता है। किर्बी ने कहा कि युद्धविराम को मानना रूस के हमले का प्रभावी रूस से समर्थन करना होगा।  

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रूस को चीन का जूनियर पार्टनर प्रोजेक्ट करना चाहते हैं जिनपिंग
थिंक टैंक ब्रूकिंग्स के लिए लिखे गए ब्लॉग में फॉरेन पॉलिसी के सीनियर फेलो रयान हस तो इससे एक कदम आगे जाकर कहते हैं कि चीन रूस को लंबे समय के लिए अपना जूनियर पार्टनर बनाना चाहते हैं। रयान हस के अनुसार जिनपिंग भले ही पुतिन को अपना बेस्ट फ्रेंड कहते हों लेकिन चीन का हित सामने आने पर जिनपिंग ने स्वयं को कठोर रूप से असंवेदनशील साबित किया है। रूस को चीन का जूनियर पार्टनर के रूप में प्रोजेक्ट करना जिनपिंग के नए वर्ल्ड ऑर्डर के एजेंडे को ही सूट करता है। जहां चीन दुनिया में अपने मन की करेगा।  

रयान हस कहते हैं कि चीन यह भी नहीं चाहेगा कि इस जंग में मास्को की हार हो, इसलिए चीन नाजुक मौके पर रूस और पुतिन के पतन के खिलाफ ढाल बनकर खड़ा होता रहेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि एक कमजोर रूस चीन के लिए रणनीतिक महत्व खो देगा। 

मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस की एसोसियेट फेलो स्वस्ति राव लिखती हैं कि बीजिंग ने वैकल्पिक वर्ल्ड ऑर्डर का जो फ्रेमवर्क तैयार किया है उसमें रूस ही एक मात्र देश है जिसकी दुनिया में धाक है। उत्तर कोरिया, ईरान और पाकिस्तान जैसे चीन के दूसरे पार्टनर अपनी चिंताओं से ही त्रस्त हैं। इसलिए चीन के दृष्टिकोण से ये आदर्श स्थिति होगी कि रूस चीनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में जूनियर पार्टनर बना रहे। 

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तानाशाही और अलोकतांत्रिक सेटअप में फैसले लेना आसान
जिनपिंग-पुतिन की ये मुलाकात भारत समेत दुनिया को इसलिए भी प्रभावित करती है क्योंकि दोनों ही देशों में एक तरह से ऑटोक्रेटिक फैसले लिए जाते हैं। ये राष्ट्राध्यक्ष जो भी फैसले लेते है उसे अपने देशों की संसद के बगैर अप्रूवल के सख्ती से लागू करते हैं। चीन में जीरो कोविड पॉलिसी हो या फिर रूस में युवकों को सेना में जबरन नियुक्त करने का मामला। दोनों देशों ने इसे सख्त विरोध के बावजूद ताकत के दम पर लागू किया। 

जिनपिंग हाल ही में तीसरी बार राष्ट्रपति बने हैं, जिसके लिए चीन में कोई चुनाव नहीं हुआ है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों ने एक ऐसी प्रक्रिया के जरिये उनको चुना जिसमें इलेक्शन हुआ ही नहीं। 

रूस में तो पुतिन ने ऐसा कानून पास करवाया है जिससे वे 2036 तक राष्ट्रपति बने रह सकते हैं। इसके अलावा उनपर कोई मुकदमा भी नहीं चलाया जा सकता है पुतिन पर अपने विरोधियों की आवाज को कुचलने का आरोप लगता रहता है। दुनिया के लोकतांत्रिक देशों से इतर ऐसे गैर लोकतांत्रिक ढांचे में राष्ट्राध्यक्षों के लिए फैसले लागू कर पाना आसान होता है।

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भारत क्यों इस मुलाकात को नजरअंदाज नहीं कर सकता?
रूस-यूक्रेन वॉर के बीच भारत की विदेश नीति अलग अलग कारणों से दुनिया में चर्चा में रही। चीन की तरह भारत ने भी यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा नहीं की। रूस के साथ गर्मजोशी भरे संबंधों का नतीजा ये रहा कि भारत को मुश्किल वक्त में रूस से कम कीमतों पर कच्चे तेल की निर्बाध आपूर्ति होती रही। 

लेकिन पिछले साल उजबेकिस्तान में पीएम मोदी ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन को स्पष्ट रूप से यह भी संदेश दिया कि ये युद्ध का समय नहीं है। इस तरह भारत ने एक परिपक्व विदेश नीति का परिचय दिया। यही वजह रही जंग खत्म कराने की जो जिम्मेदारी अभी चीन निभाना चाहता है उस रोल का ऑफर अमेरिका ने भारत को दिया था। 

अमेरिकी राजनयिक जॉन किर्बी ने उजबेकिस्तान में दिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान का जिक्र करते हुए इसी साल फरवरी में कहा था कि पुतिन अभी भी युद्ध को रोक सकते हैं। इसके लिए PM मोदी जो भी पहल करना चाहते हैं, वो उन्हें करना चाहिए। US ऐसी किसी भी कोशिश का स्वागत करेगा जिससे दोनों देशों के बीच युद्ध जल्द खत्म हो। हालांकि कूटनीतिक हालात ऐसे बने कि अब चीन ने इसकी अगुवाई कर दी है। 

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यूं कमजोर हो सकता है इंडिया का स्ट्रैटिजिक कैलकुलस
यूक्रेन जंग में चीन का रोल नई दिल्ली के लिए अपने कदमों को सधे हुए तरीके से बढ़ाने का समय है। रूस का कमजोर होकर चीन के पाले में आना भारत के स्ट्रैटिजिक कैलकुलस का कमजोर कर देगा। अभी की द्विध्रुवीय दुनिया में; जिसका एक ध्रुव अमेरिका है, रूस के कमजोर होने का अर्थ है चीन का मजबूत होना। उस चीन का मजबूत होना जिसका भारत के साथ सीमा को लेकर कई विवाद चल रहा है और दोनों देशों के बीच हिंसक टकराव भी हो चुका है। लिहाजा अगर चीन ईरान-सऊदी के बाद यूक्रेन में भी अपने मिशन में सफल रहता है तो ड्रैगन तो अन्य विवादित मुद्दों का भी मनमाफिक समाधान खोजने की कोशिश कर सकता है।

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बेल्ट रोड इनिशिएटिव का विवाद
जिनपिंग और पुतिन की इस मुलाकात में उस बेल्ट रोड इनिशिएटिव पर भी चर्चा हो सकती है, जिसके कुछ हिस्सों का भारत करता आया है।  चाइनीज अकेडमी ऑफ सोशल साइंस के विशेषज्ञ झाव हुईरोंग ने कहा कि चीन और रूस यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन के साथ बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की कनेक्टिविटी को और बढ़ावा देने पर भी चर्चा करेंगे। 

बता दें कि बेल्ट रोड इनिशिएटिव है तो एक मेगा आर्थिक प्रोजेक्ट लेकिन इसे चीन की विस्तारवादी विदेश नीति का हिस्सा माना जाता है। इस परियोजना का एक हिस्सा जिसे सी-पैक के नाम से जाना जाता है पाकिस्तान होते हुए पाक अधिकृत कश्मीर से गुजर रहा है। भारत ने इस प्रोजेक्ट पर सख्त आपत्ति जताई है। भारत ने कहा है कि कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स को दूसरे देशों की संप्रभुता का सम्मान करना चाहिए। इस मीटिंग में इस मुद्दे पर हुई चर्चा से भारत स्वयं को निश्चित रूप से अपडेट करना चाहेगा।

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पुतिन ने जिनपिंग को बुलाया, तो बाइडेन ने मोदी को इनवाइट किया
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के डायनामिक्स कैसे काम करते हैं इसे बताने के लिए इस घटनाक्रम को समझना आवश्यक है। मीडिया में जैसे ही खबर आई कि जिनपिंग सोमवार को मास्को दौरे पर जा रहे हैं, उसके कुछ ही घंटे बाद एक और खबर आई जिसने अतंर्राष्ट्रीय हलचलों पर निगाह रखने वालों का ध्यान खींचा। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्टेट डिनर के लिए आमंत्रित कर सकते हैं। कूटनीति की दुनिया में इसे अमेरिका का बैलेंसिंग एक्ट माना जा रहा है। मई में QUAD शिखर सम्मेलन के दौरान ऑस्ट्रेलिया में पीएम मोदी और बाइडेन की मुलाकात भी तय है। 

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QUAD से काउंटर करने की रणनीति
रूस के साथ भारत अपने संबंधों की ऐतिहासिकता और घनिष्ठता को समझता है। लेकिन भारत स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करता है। इसलिए भारत हाल ही में उस गुट का हिस्सा बना है जिसमें न तो चीन है और न हीं रूस। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान के साथ मिलकर भारत  QUAD बनाया है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन के लिए इसे गठजोड़ को अहम माना गया है। चीन इस क्षेत्र में अपना प्रभाव लगातार बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। भारत रूस के साथ अपने रिश्ते तो चाहता है लेकिन चीन को काउंटर करने के लिए उसने QUAD का सहारा लिया है। भारत को भरोसा है कि ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के साथ एशिया प्रशांत क्षेत्र में उसके सुरक्षित रहेंगे। देखने वाली बात होगी कि क्या पुतिन-जिनपिंग अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर चर्चा के दौरान इस पर क्या राय देते हैं। 

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दिल्ली में होने वाले जी-20 सम्मेलन की रूपरेखा होगी तय 
आने वाले 6 महीनों में भारत जी-20 शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता करने वाला है। इस सम्मेलन में पुतिन के आने की उम्मीदें बढ़ गई हैं। मास्को में पुतिन और जिनपिंग की इस मुलाकात से जो कुछ नतीजा निकलेगा, जो फैसले लिए जाएंगे उससे वो जिओ-पॉलिटिक्स तय होगा जो आने वाले समय में दस्तक देने वाली है। अगर यूक्रेन संकट, वैश्विक सप्लाई संकट, वैश्विक आर्थिक हलचल पर लिए जाने वाले किसी भी फैसले पर भारत की नजर होगी।  

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