उत्तर कोरियाई तानाशाह को क्यों गुब्बारे देख आ जाता है गुस्सा, दक्षिण कोरिया से आते बैलून्स का क्या है राज?

North Korea के बॉर्डर पर अक्सर विशालकाय बैलून दिखते हैं। कभी इनमें पेन-ड्राइव होती है, तो कभी वो चीजें, जो नॉर्थ कोरिया में बैन हैं, जैसे कंडोम, सेनेटरी पैड या सिगरेट्स। साथ ही साथ हर गुब्बारे पर बड़े-बड़े अक्षरों में किम के खिलाफ संदेश लिखे होते हैं। ये बैलून वॉर है, जो लंबे समय से दक्षिण और उत्तर कोरिया के बीच चल रहा है।
नई दिल्ली। जासूसी गुब्बारे को लेकर अमेरिका-चीन के बीच तनाव गहरा रहा है। अमेरिका के कैरोलिना समुद्री तट पर एक चीनी गुब्बारा बीते कई दिनों से हवा में लटका हुआ था। लगभग तीन बसों के साइज के इस गुब्बारे पर चीन का कहना था कि वो मौसम पर रिसर्च के लिए है, जबकि अमेरिका उसे साफ-साफ जासूसी बता रहा था। शनिवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की मंजूरी के बाद पेंटागन ने स्पाई बैलून को गिरा दिया।
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चीन-अमेरिका का क्या है मसला?
चीन भड़का हुआ है और कथित तौर पर सिविल बैलून को गिराने पर अमेरिका को नतीजा भुगतने की धमकी दे रहा है। ये तो हुई चीन-अमेरिका तनातनी, लेकिन दो ऐसे भी देश हैं, जहां बैलून वॉर दशकों से चला आ रहा है। दक्षिण कोरिया से उत्तर की तरफ बड़े-बड़े गुब्बारे आते हैं, जिनपर कभी किम जोंग के खिलाफ कोई संदेश होता है तो कभी ऐसी चीजें भरी होती हैं, जो उत्तर कोरिया में बैन हैं। इसके साथ ही दोनों में छुटपुट झगड़ा चलता ही रहता है। कहा जा सकता है कि दोनों का वैसा ही रिश्ता है, जैसा भारत और पाकिस्तान का।
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पूंजीवाद बनाम साम्यवाद की लड़ाई
कोरिया तो एक देश था, फिर बंटवारा क्यों हुआ और उसके बाद क्या चल रहा है। इसे समझने के लिए एक बार इतिहास में जाते हैं। संयुक्त कोरिया पर साल 1910 से लेकर दूसरे विश्व युद्ध तक जापान का कब्जा रहा। वॉर में जापान के हथियार डालने के बाद रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) ने इस देश के नॉर्थ साइड पर कब्जा कर लिया, वहीं साउथ को अमेरिका ने हड़प लिया। अमेरिका के हिस्से आए कोरिया में पूंजीवाद बढ़ा, तो रूस के हिस्से वाला कोरिया और भी ज्यादा कम्युनिस्ट होता गया।
युद्ध खत्म होने के बाद अमेरिका चाहता था कि कोरिया में खुला चुनाव हो, जिससे वो आजाद देश की तरह जी सके। लेकिन अमेरिका का धुर दुश्मन रूस इसके पक्ष में नहीं था। उसे लगता था कि जितना हो सके, वो कोरिया को अपने कब्जे में रखे। साल 1948 की मई में यूनाइटेड नेशन्स की मदद से कोरिया को एक देश बनाने के लिए इलेक्शन हुआ। रूस के असर में जी रहे नॉर्थ कोरिया ने इसमें हिस्सा नहीं लिया, जबकि दक्षिण कोरिया ने रिपब्लिक ऑफ कोरिया बना डाला।
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उत्तर कोरिया में परिवारवाद ही चला आ रहा
चार महीने बाद उत्तर कोरिया में भी रूस की मदद से चुनाव हुए। इसके साथ ही इस हिस्से ने डेमोक्रेटिक रिपब्लिक पीपल्स ऑफ कोरिया बनाया। ये कोरिया का वही हिस्सा है, जिसे उत्तर कोरिया के नाम से जानते हैं। इसके बाद से ही यहां किम परिवार का राज है। फिलहाल यहां परिवार की तीसरी पीढ़ी देश की कमान संभाले हुए है।
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यहां से आया फर्क
उत्तर कोरिया को तानाशाही और दुनिया से कटा होने के लिए भी जाना जाता है। रूस के संपर्क में रहे इस देश में अमेरिका के लिए इतनी नफरत है कि वो उससे किसी भी तरह का व्यापार नहीं करता। यहां तक कि विकास को भी अमेरिका से जोड़ता है। कुल मिलाकर आजादी के बाद से नॉर्थ कोरिया बेहद पिछड़ा मुल्क बन चुका। वहीं साउथ कोरिया काफी आगे निकल गया। यहां तक कि वो अब दुनिया के सबसे अमीर और स्टेबल देशों में गिना जाता है।
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देश में हैं अजीबोगरीब कायदे-कानून
नॉर्थ कोरिया में कई कायदे हैं, जैसे नीली जींस पहनने पर मनाही। यहां तक कि कंडोम तक की बिक्री छिप-छिपाकर होती है क्योंकि वहां का तानाशाह मानता है कि फैमिली प्लानिंग भी अमेरिका की चाल है, जिससे देश छोटे और कमजोर हो जाएं। पढ़े-लिखे लोग भी किम जोंग के खिलाफ कुछ कह नहीं पाते।ऐसे में जाहिर है कि लोग देश छोड़कर जाना चाहेंगे। लेकिन, यहां इसकी भी इजाजत नहीं। तो लोग भागने लगते हैं। हर साल पाबंदियों के बीच भी कुछ सैकड़ा लोग बचकर किसी दूसरे देश चले जाते हैं। यही लोग गुब्बारों में तरह-तरह के संदेश भरकर उत्तर कोरिया में भेजते रहते हैं।
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क्या-क्या होता है बैलून्स में?
लगभग 12 मीटर लंबे और 4 मीटर चौड़े इन पारदर्शी गुब्बारों में हीलियम या हाइड्रोजन भरा होता है ताकि वे ज्यादा दूरी तय कर सकें। अक्सर इनके भीतर वो चीजें होती हैं, जो किम के राज में बैन हैं, जैसे दुनिया की जानकारियां। इंटरनेशनल अखबारों की कतरन। कई बार पेन ड्राइव भी होता है, जिसमें सारी इंफॉर्मेशन भरी होती है ताकि तसल्ली से पढ़ा और दूसरों तक पहुंचाया जा सके।
असल में इस देश में इंटरनेशनल अखबार, वेबसाइट्स कुछ ही परिवारों तक सीमित हैं। यहां तक कि इंटरनेट पर भी सख्त सेंसरशिप है। ऐसे में वहां के लोग एक तरह से बिना जानकारी के जीते रहते हैं। यही वजह है कि दक्षिण कोरिया पहुंच चुके उत्तर कोरियाई लोग मदद की तरह ही बैलून भेजते हैं।
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किम जोंग ने लगाया गुब्बारों से वायरस भेजने का आरोप
गुब्बारों में मदद के साथ-साथ अक्सर एंटी-किम संदेश भी होते हैं। यहां तक कि भागने या बगावत करने की सलाह भी दी जाती है। भागे हुए लोग ही नहीं, दक्षिण कोरिया की बहुत सी ह्यूमन राइट्स संस्थाएं भी ऐसा करती हैं। कोविड के दौरान राहत सामग्री भी इसी तरह भेजी जाती रही। ये तब था, जब नॉर्थ कोरिया अपने यहां सब ठीक होने के दावे कर रहा था। इसी बात को लेकर उत्तर कोरिया लगातार दक्षिण कोरिया पर भड़कता रहता है। यहां तक कि उसने ये तक आरोप लगा डाला कि दक्षिण कोरिया जान-बूझकर गुब्बारों के जरिए उसके देश में कोरोना वायरस भेज रहा है।
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साउथ कोरियाई सरकार ने अपने लोगों से इसे रोकने की भी अपील की, लेकिन खास फायदा नहीं हुआ। कई बार उत्तर कोरिया से भी गुब्बारे दक्षिण की ओर भेजे जाते हैं। वैसे उत्तर कोरियाई सीमा पर लाउडस्पीकर वॉर ज्यादा कॉमन है। दोनों देशों के बॉर्डर पर इस देश के बड़े-बड़े लाउडस्पीकर होते हैं, जिनपर लगभग पूरे समय किम जोंग की तारीफ या फिर दक्षिण कोरियाई मौजूदा सरकार की बुराई चलती रहती है। माना जाता है कि इससे कभी न कभी दक्षिण भाग चुके लोगों पर असर होगा और वे अपने देश वापस लौट आएंगे।
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