आशंका गहरा रही है तीसरे World War की, जंग छिड़ी तो सबसे ज्यादा खतरे में होंगे ये देश

 
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एक सर्वे में ज्यादातर देश मान रहे हैं कि तीसरा विश्व युद्ध हो सकता है। ऑस्ट्रेलिया ऐसा माननेवालों में टॉप पर है, जबकि दूसरे वर्ल्ड वॉर में परमाणु हमला झेल चुके जापानी इससे बच रहे हैं। विश्व युद्ध छिड़ा तो तबाही तो पूरी दुनिया में मचेगी, लेकिन कुछ देश हाई रिस्क श्रेणी में हैं। जंग के दौरान यहां फंसना भारी मुसीबत ला सकता है।

 

नई दिल्ली। रूस-यूक्रेन जंग को सालभर होने जा रहा है। न रूस तबाही मचाने में कोई कसर रखे है, न ही यूक्रेन हार मानने को तैयार है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन लगातार नई रणनीतियां ला रहे हैं, जिसमें सैटन-2 जैसी विनाशक मिसाइल के इस्तेमाल की बात हो रही है। इधर यूक्रेन भी दुनिया के बड़े देशों से मदद लेकर जंग के साजोसामान जुटा रहा है। इस सबके बीच तीसरे विश्व युद्ध का डर मंडराने लगा। वैसे तो वर्ल्ड वॉर पूरी दुनिया में कहर बरपाता है, लेकिन कुछ देश हैं, जो इसका सॉफ्ट टारगेट होंगे। यानी इन देशों पर सबसे ज्यादा खतरा होगा।

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कौन से देश मानते हैं कि युद्ध होगा?
दिसंबर 2022 इंटरनेशनल फर्म Ipsos ने एक सर्वे कराया, जिसमें शामिल 34 देशों के ज्यादातर लोगों ने माना कि जल्द ही तीसरा विश्व युद्ध हो सकता है। ऑस्ट्रेलिया इसमें सबसे ऊपर था, जहां लगभग 81 प्रतिशत लोगों ने युद्ध की आशंका पर हां की। वहीं जापान 51 प्रतिशत के साथ इस लिस्ट में सबसे नीचे था। इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान इस देश को परमाणु हमला तक झेलना पड़ गया था। तो हो सकता है कि वो इसकी कल्पना से भी डरता हो। भारत भी सर्वे का हिस्सा था, जिसमें लगभग 79 प्रतिशत लोगों ने युद्ध की आशंका जताई। 

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इस तरह शुरू हुआ था पहला युद्ध
जुलाई 1914 से अगले साढ़े चार सालों तक चले वॉर की वैसे तो किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली, लेकिन इसकी वजह ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के उत्तराधिकारी आर्चड्यूक फर्डिनेंड की हत्या को माना जाता है। फर्डिनेंड उसी साल बोस्निया के दौरे पर थे, जहां उनकी हत्या हो गई। आरोप सर्बियाई सरकार पर लगा। महीनेभर के भीतर ही आस्ट्रिया ने उसके खिलाफ जंग छेड़ दी। 

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लगभग एक करोड़ मौतें हुई थीं
धीरे-धीरे बाकी देश भी शामिल होते चले गए और दो देशों की जंग विश्व युद्ध में बदल गई। नवंबर 1918 को जर्मनी के समर्पण  के साथ ही पहला विश्व युद्ध खत्म हो सका। माना जाता है कि इस युद्ध में लगभग एक करोड़ लोगों की मौत हुई थीं। हालांकि कई देश और मानवाधिकार संस्थाएं इस  आंकड़े को कहीं ज्यादा बताती हैं। युद्ध के बाद भुखमरी और स्पेनिश फ्लू नाम की महामारी भी फैली, जिसने अलग जानें लीं। 

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दूसरा विश्व युद्ध पहले युद्ध की जड़ में ही था
जिस तरह से सभी बड़े देशों ने जर्मनी को मजबूर किया था और उसपर कई सारे प्रतिबंध लगाए थे, जर्मनी ने तय किया कि वो इसे भूलेगा नहीं। तब नाजी पार्टी के नेता के तौर पर अडोल्फ हिटलर उभर रहे थे। साल 1933 में वे देश के सैन्य शासक बन गए, जिसके बाद ऑस्ट्रिया भी उनके पाले में चला गया। मार्च 1939 में चेकोस्लोवाकिया पर हमला कर हिटलर ने उसपर कब्जा कर लिया और वहां से होते हुए पोलैंड पर हमला कर दिया।  यहीं से दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया। 

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इस दौरान देश दो हिस्सों में बंट गए
एक तरफ थे- अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन और सोवियत संघ जैसे बड़े देश। दूसरी तरफ जर्मनी, जापान और इटली जैसे राष्ट्र। हिटलर की सेना धड़ाधड़ हमलावर होने लगी। आखिरकार सारे देशों ने मिलकर इस देश पर बमबारी शुरू कर दी। जर्मनी की हार तय होने पर हिटलर ने खुदकुशी कर ली, जिसके साथ ही जर्मनी चुप हो सका। अमेरिका के न्यूक्लियर हमले के बाद जापान ने भी हथियार डाल दिए। इस तरह से सितंबर 1945 को दूसरा विश्व युद्ध खत्म हुआ।

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इन देशों को माना जा रहा हाई रिस्क 
युद्ध छिड़ जाए तो वैसे तो कोई भी देश पूरी तरह सुरक्षित नहीं होगा, लेकिन कई मुल्क ऐसे भी हैं जो सबसे ज्यादा खतरे में हो सकते हैं। इन हाई रिस्क देशों में वेनेजुएला का नाम टॉप पर है। दक्षिण अमेरिकी ये देश पहले से ही गरीबी और गृहयुद्ध में उलझा हुआ है। यहां के राजनैतिक हालात काफी समय से अस्थिर हैं। ऐसे में युद्ध का मौका बना, तो आर्थिक या राजनैतिक लाभ के लिए हो सकता है कि ये देश किसी के पक्ष में, या किसी के खिलाफ खड़ा हो जाए। इस डर को देखते हुए यूके फॉरेन एंड कॉमनवेल्थ ऑफिस लगातार अपने लोगों को यहां या इसके बॉर्डर तक भी संभलकर जाने की बात कहता रहा। 

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अफ्रीकी मुल्कों में अलग तरह के खतरे
कई अफ्रीकी देश हाई रिस्क माने जा रहे हैं, जैसे सूडान, सोमालिया, नाइजीरिया और बुर्किना फासो। इसकी सीधी वजह ये नहीं कि इन देशों के जंग में सीधे इनवॉल्वमेंट का डर है, बल्कि यहां के राजनैतिक हालात इन्हें आम दिनों में भी संवेदनशील बनाए हुए हैं। ऐसे में युद्ध के दौरान यहां होना दूसरी आपात स्थितियां भी पैदा कर देगा। जैसे यहां मेडिकल सुविधा की कमी होती जाएगी। और कहीं जाना चाहें तो कनेक्टिविटी की भी दिक्कत हो सकती है। चूंकि ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर ये देश खास ताकत नहीं रखते, ऐसे में ये सॉफ्ट टारगेट रहेंगे। 

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नॉर्थ कोरिया लगातार करता रहता है तैयारी
उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन लगातार किसी न किसी बात पर अमेरिका से उलझते रहते हैं। यहां तक कि वहां समुद्र तट पर कई बार मिसाइल परीक्षण हो चुके। अपने पड़ोसी देश साउथ कोरिया से भी किम से संबंध खराब हैं। ऐसे में हो सकता है कि तीसरी जंग छिड़े तो ये देश उसका हिस्सा बने। या फिर शुरुआत ही यहीं से हो। इन स्थितियों में नॉर्थ कोरिया में रहना किसी हाल में सही नहीं। 

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मिडिल ईस्टर्न देश भी खतरनाक
इनमें यमन, इराक और सीरिया शामिल हैं। तीनों ही मुल्क गृह युद्ध झेल रहे हैं। यहां खाने से लेकर सड़क और अस्पताल जैसी जरूरी सुविधाएं भी मुश्किल हैं। युद्ध जैसी एक्सट्रीम स्थिति में हालात और बिगड़ सकते हैं। यही वजह है कि इंटरनेशनल SOS इन देशों में फंसने को हाई रिस्क मानता है।

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तब कहां रहना ज्यादा सुरक्षित होगा?
साल 2021 में हुई ग्लोबल पीस इंडेक्स स्टडी इसपर भी बात करती है। इसकी रैंकिंग की मानें तो आइसलैंड वो देश है, जिसपर तीसरे विश्व युद्ध का असर शायद सबसे कम हो। यूरोप के उत्तर से दूर अटलांटिक महासागर में स्थित ये देश भौगोलिक तरीके से सेफ है। इस तक आसानी से पहुंचा नहीं सकता, लिहाजा जल्दी खून-खराबे का डर नहीं है। वैसे भी ये देश ग्लोबल राजनैतिक उठापटक से अलग ही रहता है। तो कोई इसपर आक्रामक हो, इसका डर कम है। 

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भौगोलिक स्थिति के कारण ही न्यूजीलैंड भी सुरक्षित देशों की श्रेणी में है। ये रूस और अमेरिका दोनों से दूर है। यही वो दो देश हैं, जिनके आपस में उलझने का डर ज्यादा रहता है। ऐसे में न्यूजीलैंड युद्ध की आंच से आसानी से दूर रह सकता है। कनाडा का साथ भी उसका जियोग्राफिकली अलग-थलग होना दे सकता है। वैसे तो ये देश अमेरिका का पड़ोसी है, लेकिन खुद इसकी इमेज शांतिप्रिय मुल्क की है। 

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