वो अमीर देश, जहां लोग कर्ज लेने से घबराते हैं, पति-पत्नी फिफ्टी-फिफ्टी खर्च करते हैं

इन दिनों खूब हल्ला है कि पाकिस्तान सिर से पैर तक कर्ज में डूबा है। राजस्व में कमी आने पर देश तो उधार लेते ही हैं, लोग भी उधार लेने से रुकते नहीं। दुनिया की बड़ी आबादी किसी न किसी तरह का कर्ज लिए हुए है। वहीं एक देश ऐसा भी है, जहां उधार को गिल्ट से जोड़ा जाता है। नीदरलैंड में लोग, जितना हो सके, कर्ज लेने से बचते हैं।
नई दिल्ली। साल 2021 में नीदरलैंड की पेमेंट एसोसिएशन ने एक फैक्टशीट निकाली, जिसमें बताया गया था कि देश के लोग लोन लेने के मामले कहां खड़े हैं। इसके मुताबिक, उस साल लगभग 32 मिलियन डेबिट कार्ड्स के मुकाबले केवल 6।28 मिलियन क्रेडिट कार्ड्स का इस्तेमाल हुआ। इतने ही क्रेडिट कार्ड्स एक्टिव थे। इसमें भी काफी कार्ड होल्डर विदेशी मूल के थे। नीदरलैंड का बड़ा बाजार क्रेडिट की बजाए डेबिट कार्ड ही लेता है या फिर आप कैश में पेमेंट कीजिए। क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल वहीं किया जाता है, जहां ज्यादा रकम खर्च करनी हो, जैसे छुट्टियों पर बाहर जाते हुए या होटल बुकिंग में। ऑनलाइन शॉपिंग में यहां डेबिट कार्ड ही ज्यादा इस्तेमाल होता है।
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दो साल पहले जारी डेटा में माना गया कि डच आबादी लोन तो लेती है, लेकिन काफी छोटे। ज्यादातर लोग साढ़े 11 हजार पाउंड से लेकर 15 हजार पाउंड की ही रकम लेते हैं। ये रकम आमतौर पर छोटे समय के लिए ली जाती है। हां, होम लोन अकेली ऐसी चीज है, जिसमें यहां बड़ा कर्ज लिया जाता है। इसकी भी वजह है। नीदरलैंड की राजधानी एम्सटर्डम यूरोप का तीसरा सबसे महंगा शहर है, अगर यहां किराए पर मकान लेना चाहें। पहले नंबर पर लंदन और फिर पेरिस हैं। ऐसे में लोग किराए पर लंबी-चौड़ी रकम खर्च करने की बजाए लोन लेकर अपना घर ही खरीद लेते हैं।
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उधार लेने से परहेज डच कल्चर में है। वहां ऋणं कृत्या, घृतं पिबेत- यानी कर्ज लेकर भी घी पीने का दर्शन नहीं चलता, बल्कि पैसों को खूब सोच-समझकर खर्च करना सिखाया जाता है। नीदरलैंड जाएं तो एक बात कॉमन दिखेगी, वहां होटल या रेस्त्रां में खाने-पीने या कॉमन खर्चों पर बिल बांट दिया जाता है। प्रेमी-प्रेमिका और दोस्त भी आपस में बिल बांटकर आधा-आधा चुकाते हैं। पति-पत्नी भी घर के खर्च बांटते हैं। इससे किसी एक पर अतिरिक्त दबाव नहीं बनता और रिश्तों में पारदर्शिता बनी रहती है। 'लेट्स गो डच' टर्म इसी कल्चर को देखते हुए बना।
डच संस्कृति में ग्लानि-रहित जिंदगी जीने पर काफी जोर है। वे मानते हैं कि जितना वक्त भी दुनिया में रहें, शांति से और बिना किसी गिल्ट के जीना चाहिए। ये चीज बाजार ही नहीं, रिश्तों में भी झलकती है। अगर किसी कपल के बीच तनाव आ जाए तो लंबा समय बर्बाद कर दूसरे को धोखे में रखने की बजाए वे सीधी बात करते और अलग हो जाते हैं। ये गिल्ट-फ्री जिंदगी जीने का उनका अपना तरीका है। लोन या क्रेडिट के मामले में भी यही फलसफा लागू होता है। हम फ्यूचर में लौटाने के वादे पर सामान खरीद रहे हैं, लेकिन क्या हो अगर कल हम पैसे न लौटा सकें! इस बात ने नीदरलैंड में क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल को सीमित कर दिया।
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यूरोपियन देश फिनलैंड भी इस मामले में नीदरलैंड से मिलता-जुलता है। वहां के लोग दिखावे और लालच से कोसों दूर रहते हैं। किसी के पास कितने पैसे हैं, इसे लेकर वहां कहा जाता है- स्टोरी ऑफ देअर ओन, यानी उनकी अपनी कहानी, अपना मसला है। वहां न अपना फाइनेंशियल स्टेटस बताया जाता है, न पूछा जाता है। ये भी एक कारण है कि फिनलैंड में दिखावा या देखादेखी ज्यादा खर्च करना नहीं मिलेगा।
लालच को लेकर यहां कई लोककथाएं हैं, जो बताती हैं कि जरूरत से ज्यादा चाहना हमेशा परेशानी लाता है। यहां के स्कूल करिकुलम और साहित्य में भी ये बात झलकती है। इसपर कई शोध भी हो चुके। अबो एकेडमी यूनिवर्सिटी में बाकायदा एक पेपर होता है, जो ग्रीड यानी लालच की बुराइयों पर बात करता है।
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इसे एक उदाहरण से समझते हैं। कुछ साल पहले रीडर्स डायजेस्ट ने एक टेस्ट किया। लॉस्ट वॉलेट टेस्ट के तहत दुनिया के बहुत से शहरों में 192 पर्स गिराए गए। सबमें 50 डॉलर थे, साथ में वॉलेट के मालिक का पता भी था। वॉलेट ऐसी जगहों पर गिराया गया, जहां से उठाया जाना आसान हो और किसी को शक न हो। इसमें पाया गया कि फिनलैंड में गिराए गए 12 वॉलेट्स में से 11 कुछ ही देर में वापस लौटा दिए गए। पाने वाले ने पर्स देखकर मालिक को फोन किया और उसे वॉलेट की जानकारी दे दी। टेस्ट के आखिर में फिनलैंड के हेलसिंकी शहर को दुनिया का सबसे ईमानदार शहर माना गया।
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