शराब बैन से इस मुस्लिम देश में भड़के लोग, इस्लामिक देश बनाने का लगाया आरोप

 
prime minister of iraq

शराब बैन के उल्लंघन पर नए कानून के तहत 1 करोड़ से लेकर 2।5 करोड़ दिनार तक का जुर्माना लगाया जाएगा। मुस्लिम बहुल देश होने के बावजूद इराक एक धार्मिक विविधता वाला देश है। इराक के शराब प्रतिबंध वाले कानून पर लोगों का कहना है कि यह कानून इराक को इस्लामिक देश बनाने की दिशा में उठाया गया एक कदम है।

 

नई दिल्ली। मुस्लिम बहुल देश इराक की सरकार ने शराब बैन करने का बड़ा फैसला किया है। हालांकि, शराब बैन का कानून लागू होते ही इराक में काफी संख्या में लोगों ने इसका विरोध जताना शुरू कर दिया है। शराब पर प्रतिबंध के बाद इराक के अल्पसंख्यक इस कानून को असंवैधानिक बताते हुए विरोध कर रहे हैं। कई विश्लेषकों का कहना है कि यह कानून इराक को इस्लामिक देश बनाने की दिशा में उठाया गया एक कदम है।

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दरअसल, इराक में 95 फीसदी से ज्यादा आबादी मुस्लिम हैं और यह शिया बहुल देश है। इसके बावजूद इराक जनतांत्रिक और धार्मिक विविधता वाला देश है। मिडिल ईस्ट की वेबसाइट अल-मॉनिटर के अनुसार, मध्य पूर्व एशिया स्थित देश इराक ने 4 मार्च को सभी मादक पदार्थों के आयात, उत्पादन और बिक्री पर रोक लगा दिया है।

इस प्रस्ताव को इराक ने 2016 में ही पारित कर दिया था लेकिन उस समय धर्मनिरपेक्षतावादियों और अल्पसंख्यकों की कड़ी आपत्तियों के कारण इसको लागू नहीं किया जा सका था। नए कानून के तहत इसके उल्लंघन पर 1 करोड़ से लेकर 2।5 करोड़ दिनार तक का जुर्माना लगाया जाएगा।

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इराक के नए प्रधानमंत्री का समर्थन 
शराब को बैन करने वाला प्रस्ताव पिछले महीने ही इराक के अधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित किया गया था। इराक के नए प्रधानमंत्री मोहम्मद शिया अल-सुदानी की गठबंधन सरकार में शिया इस्लामवादी पार्टियों और तथाकथित मिलिशिया का वर्चस्व है जो इस बैन का समर्थन करते हैं। 

हालांकि, कानून लागू होने के बाद भी राजधानी बगदाद, एरबिल और देश के अन्य कई हिस्सों में शराब की दुकानें अभी भी खुली हुई हैं। लेकिन कुछ इराकी, खासकर यजीदी और ईसाई समुदाय के लोग इस कानून पर चिंता जाहिर कर रहे हैं।

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इराक को इस्लामिक देश बनाने की कोशिशः विश्लेषक
इराक एक धार्मिक विविधता वाला देश है। इराक में सबसे ज्यादा शिया और सुन्नी मुसलमान रहते हैं। लेकिन ईसाई, यजीदी, जोरास्ट्रियन, मांडियन और अन्य समुदाय के लोग भी रहते हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह कानून इराक को इस्लामिक देश बनाने की दिशा में उठाया गया एक कदम है।

अंकवा स्थित चाल्डियन कैथोलिक शहर के एक कार्यकर्ता दीया बुट्रोस ने अल-मॉनिटर से बात करते हुए कहा कि यह गैर-मुस्लिम धर्मों के अधिकारों का उल्लंघन है। यह उन धर्मों के अधिकारों का उल्लंघन है जो शराब की मनाही नहीं करते हैं। 

इराकी राजनीतिक विश्लेषक अली साहब का कहना है कि इराक इस्लामिक देश नहीं है। कुछ धर्म शराब पीने की अनुमति देते हैं। ऐसे में सरकार दूसरे धर्मों के लोगों पर एक निश्चित राय या विचारधारा नहीं थोप सकती है। यजीदी और ईसाई धर्म में शराब के सेवन की मनाही नहीं हैं। यहां तक कि कुछ समुदाय के लोग इसका उपयोग अपने धार्मिक अनुष्ठानों में भी करते हैं। 

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अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा में वृद्धि का डर
कई अन्य इराकी विश्लेषकों का भी कहना है कि यह कानून इराकी संविधान का उल्लंघन करता है। इराक का संविधान सभी को व्यक्तिगत, धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है।

यजीदी कार्यकर्ता और लूफ्टब्रूक इराक के अध्यक्ष मिर्जा दिन्नै का कहना है, "यह कानून संविधान के विपरीत है। इराक एक बहु-जातीय, धार्मिक और सांस्कृतिक देश है और कई लोगों के लिए शराब पीना प्रतिबंधित नहीं है। शराब पीने वाले इसके विकल्प के तौर पर प्रतिबंध नशीली दवाओं का उपयोग कर सकते हैं।" 

मिर्जा दित्रै ने आगे कहा, "अधिकांश मुस्लिम देश शराब पर प्रतिबंध लगाने के बजाय इसे नियंत्रित करते हैं। इराक सरकार भी इसे पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने के बजाय कुछ ऐसा ही क्यों नहीं करती?"

रिपोर्ट के मुताबिक, मादक क्षेत्र में काम करने के कारण हाल के वर्षों में कई ईसाइयों और यजीदियों पर हमला किया गया है। ऐसे में कुछ लोगों को डर है कि इस कानून से उनके खिलाफ हिंसा में और वृद्धि हो सकती है।

रिपोर्ट के मुताबिक, कानून के पारित होने के बाद इराकी नागरिक समाज काफी विरोध कर रहे हैं। हजार से भी अधिक प्रमुख इराकी शोधकर्ताओं, शिक्षाविदों, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं ने इस प्रतिबंध की आलोचना करते हुए संयुक्त राष्ट्र के महासचिव को एक खुला पत्र लिखा है। 

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मुस्लिम भी कर रहे हैं विरोध
इराकी शहर नजफ में शिया धार्मिक प्राधिकरण का नेतृत्व करने वाले अयातुल्ला अली सिस्तानी 21 वीं सदी की शुरुआत से ही एक सिटिजन कंट्री का समर्थन करते आ रहे हैं। प्राधिकरण के एक प्रमुख मौलवी ने अल-मॉनिटर से बात करते हुए कहा है कि नजफ स्थित धार्मिक प्राधिकरण इस कानून या इस तरह की किसी भी कार्रवाई के खिलाफ है।

प्राधिकरण प्रमुख सिस्तानी की चुप्पी के बारे में सवाल पूछे जाने पर मौलवी ने कहा कि सिस्तानी पहले ही कह चुके हैं कि वह इस तरह के कानून के खिलाफ हैं, वही बाद दोहराने की कोई जरूरत नहीं है।

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