अमेरिका के कई राज्यों ने पकड़ी अलग देश बनाने की जिद, अलगाववादियों के सपोर्ट का आरोप लगता रहा रूस पर

आज दुनिया में सबसे बड़ी लड़ाई अपनी सीमाओं को फैलाने या उसे बचाने को लेकर है। चीन जैसे देश आसपास के देशों पर भी अपना दावा करके घमासान मचाए हुए हैं, वहीं कई मुल्कों में भाषा-कल्चर के आधार पर बंटवारे की लड़ाई हो रही है। अमेरिका भी इससे अलग नहीं। अलगाववादी वहां भी हमेशा सक्रिय रहे। कोई भाषा, कोई नस्ल के आधार पर अलग मुल्क मांग रहा है।
नई दिल्ली। देशों के टूटकर बिखरने की बात आती है, तो सबसे बड़ा उदाहरण है सोवियत संघ का। कभी दुनिया की सबसे बड़ी ताकत रह चुका सोवियत टूटकर 15 अलग-अलग देशों में बंट गया। दिसंबर 1991 को हुआ ये विघटन इसी आधार पर हुआ कि बाकी राज्यों को रूस का सबसे ताकतवर होना अखरता था। उसे लगता था कि उनके हिस्से कम नौकरियां, कम फायदे आ रहे हैं, जबकि सारी क्रीम रूस में जा रही है।
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रूस के बंटने का फायदा अमेरिका को मिला
सारे रूसी स्टेट्स अपने हकों के लिए अलग होने की मांग करने लगे। सोवियत के भीतर ही भीतर दंगे-फसाद होने लगे और आखिरकार तत्कालीन राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव के दौर में देश 15 टुकड़ों में बंट गया। जैसा कि होना था, इसके बाद रूस उतना ताकतवर नहीं रह गया, और उसकी जगह अमेरिका ने ले ली।
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खुद अमेरिका ने किया था विस्तार
सीमाएं बड़ी होने के जहां अपने नुकसान हैं, वहां फायदे भी कम नहीं हैं। हर हिस्से के पास अपनी खूबी होती है। ढेर सारा कच्चा माल होता है और मैन-पावर भी बढ़ जाता है। यही वजह है कि ज्यादातर देश लंबी-चौड़ी सीमाओं पर भरोसा करते रहे। फिलहाल सबसे बड़ी ताकत कहलाते अमेरिका ने भी इसी फॉर्मूला पर यकीन किया। 15वीं सदी में जब क्रिस्टोफर कोलंबस ने इस देश की खोज की थी, तो ये देश भी गरीबी, भुखमरी से जूझ रहा था। धीरे-धीरे बाहरी दुनिया के संपर्क में आने के साथ इसने खुद को बढ़ाना शुरू किया।
सीमा विस्तार के लिए अमेरिका ने कई लड़ाइयां लड़ीं जो 19वीं सदी के आखिर तक चलती ही रहीं। मौजूदा अमेरिका में 50 राज्य हैं। सभी राज्य एक से बढ़कर एक ताकतवर। कोई तकनीक में आगे है तो कोई एजुकेशन में। ऊपर से देखने में लगता है कि वहां हर कोई बराबर है, और सबको समान हक मिलता है। लेकिन ऐसा है नहीं। अमेरिका में खासकर नस्लभेद खूब बढ़ाचढ़ा है। आएदिन वहां से अफ्रीकी-अमेरिकी मूल के लोगों पर हिंसा की खबरें आती रहती हैं। ऐसे में ब्लैक लाइव्स मैटर के सपोर्टर बहुत बार अलग होने की मांग करते रहे।
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अफ्रीकी लोगों की अलग मांग
साठ के दशक में इस मांग ने जोर पकड़ा। जहां-जहां अफ्रीकी मूल के लोगों की आबादी घनी थी, उन्हें अलग राज्य या फिर अलग देश ही बनाने की डिमांड होने लगी। रिपब्लिक ऑफ न्यू अफ्रीका के समर्थक ये तक कहने लगे कि चूंकि अमेरिका के बड़े हिस्से में अफ्रीका से आकर बसे लोग हैं जो अब अफ्रीका वापस नहीं लौट सकते, तो उन्हें वहीं पर नया देश दे दिया जाए।
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गुलामों की तरह पहुंचे थे
यहां पर सवाल ये भी आता है कि आखिर अमेरिका में अफ्रीकी देशों से लोग कैसे और क्यों आए। तो इसकी जड़ में ब्रिटेन है, जिसने लंबे समय तक अमेरिका को गुलाम बना रखा था। इस दौर में भारी कामों के लिए उसने गुलामों की खरीद-फरोख्त और उन्हें अमेरिका भेजना शुरू कर दिया। उस समय के बाकी ताकतवर देशों ने भी इसमें हिस्सा लिया। इस तरह से अमेरिका में अफ्रीकी मूल के लोग बढ़ते चले गए। इसके साथ ही उनपर हिंसा भी बढ़ती चली गई। यही वजह है कि ब्लैक बेल्ट को अलग मुल्क बनाने की मांग लगातार हो रही है।
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कैलिफोर्निया चाहता है अलग रहना
पेसिफिक से सटे हुए कैलीफोर्निया में भी एक बड़ी आबादी खुद को अमेरिका से अलग करना चाहती है। लगभग 40 मिलियन आबादी वाले इस राज्य का कहना है कि उसके हक में उतना नहीं आया, जितना होना चाहिए था। अमेरिका की इकनॉमी में बहुत बड़ा योगदान देने वाले इस राज्य में साल 2015 में यस कैलीफोर्निया इंडिपेंडेंस कैंपेन चला। वे कैलीफोर्निया रिपब्लिक की मांग कर रहे हैं।
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ये हिस्से भी अलग देश की मांग करते रहे
उत्तरी अमेरिका का बड़ा हिस्सा भी अमेरिका से अलग होना चाहता है। मोंटाना, नेबरास्का, नॉर्थ डकोटा, साउथ डकोटा और व्योमिंग मिलकर भाषा के आधार पर एक देश बनाना चाहते हैं। यहां की बड़ी आबादी लकोटा भाषा बोलती है, जो कि नेटिव अंग्रेजी से अलग है। यहां तक कि अमेरिका का दूसरा बड़ा राज्य टेक्सास तक अपने अलगाव की बात करता है। साल 2016 में यूके और यूरोपियन यूनियन के अलग होने के बाद इस बारे में जोरशोर से बात होने लगी। यहां तक कि सोशल मीडिया पर इसके लिए कैंपेन भी चले थे, लेकिन फिर बात दब गई।
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रूस को होगा बड़ा फायदा
अमेरिका में अगर विघटन हुआ तो इसका सीधा और सबसे बड़ा फायदा रूस को होगा। रूस पर आरोप है कि वो अमेरिका ही नहीं, लगातार दूसरे देशों में भी अलगाव वाले मूवमेंट्स का सपोर्ट करता रहा। यहां तक कि ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से अलग होने के पीछे भी क्रेमलिन का हाथ बताया जाता रहा। कहा जाता है कि वो इस तरह के हर अभियान को भारी फंडिंग करता है ताकि देशों के छोटे-छोटे हिस्से होकर वे कमजोर पड़ते जाएं। हालांकि इसका कभी कोई प्रमाण नहीं मिल सका, लेकिन खुद विघटन झेलकर कमजोर हो चुके और अलग-थलग पड़े रूस के बारे में ऐसे अनुमान लगते हैं तो कोई अजीब बात भी नहीं।
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अमेरिकी इंटेलिजेंस ने लगाया आरोप
साल 2018 में कैलीफोर्निया की सड़कों पर हजारों लोग निकल आए, जो अपने अलग होने की बात कहते हुए नेशनल डाइवोर्स की मांग कर रहे थे। यस कैलीफोर्निया से जुड़े लोगों का मानना है कि कैलीफोर्निया को कैलीफोर्नियन लोग ही समझ सकते हैं, न कि अमेरिकन। इसमें एलजीबीटीक्यू भी शामिल थे, महिलाएं भी, जो गर्भपात के नियमों पर गुस्सा थीं और अफ्रीकी लोग भी। सबका कहना था वॉशिंगटन सरकार की सोच उनसे मेल नहीं खाती इसलिए उन्हें अलग देश बनाने दिया जाए। बाद में अमेरिकी इंटेलिजेंस ने आरोप लगाया कि रूस पैसे देकर एनजीओज को भड़का रहा है ताकि वे अमेरिका को बांट दें।
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