इस्राइल में लंबे विरोध के बाद रुका न्यायिक सुधार, क्या नेतन्याहू वैश्विक दबाव से झुके, क्या है कानून?

Israel: इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने न्यायिक कानून सुधारों को अस्थायी रूप से रोक दिया है। सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल ओत्जमा येहुदित ने बताया है कि इन कानूनों को टालने को लेकर पीएम ने अपनी सहमति दे दी है।
नई दिल्ली। लगातार जारी विरोध प्रदर्शनों के बीच इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को अपने ‘न्यायिक सुधार कानून’ को फिलहाल वापस ले लिया है। कानून को ‘अस्थायी रूप से’ वापस लेते हुए नेतन्याहू ने सोमवार को कहा कि अपने विरोधियों को ‘संवाद का वास्तविक मौका’ दे रहे हैं। देश में सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों को नियंत्रित करने वाले कानून के खिलाफ लगभग तीन महीने से इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन जारी है। मार्च के शुरुआत में देश की सेना के भीतर भी विरोध देखने को मिला था।
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इस्राइल में सैन्य अधिकारी विरोध में क्यों उतरे? न्यायिक सुधर क्या हैं जिनका विरोध हो रहा है? सरकार का क्या रुख है? आइये जानते हैं...
इस्राइल में 'न्यायिक सुधार कानून’ पर क्या हो रहा है?
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विवादास्पद न्यायिक कानून सुधारों को लेकर लोगों की नाराजगी झेल रहे इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने सोमवार को घोषणा करते हुए कानूनों को अस्थायी रूप से रोक दिया। सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल ओत्जमा येहुदित ने बताया है कि इन कानूनों को टालने को लेकर पीएम नेतन्याहू ने अपनी सहमति दे दी है।
प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कहा कि वास्तविक अवसर देने के लिए संसद अवकाश के बाद तक विवादास्पद कानून पर अस्थायी रूप से रोक लगाने का आदेश दे दिया है। उन्होंने कहा कि जब बातचीत के माध्यम से गृहयुद्ध से बचने का विकल्प होता है, तो मैं बातचीत के लिए समय निकाल लेता हूं... यह राष्ट्रीय जिम्मेदारी है।
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क्या वैश्विक दबाव के चलते रुका कानून?
इस्राइली राष्ट्रपति आइसेक हरजोग ने सोमवार को प्रधानमंत्री से बात की थी। राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री को समझाते हुए कहा था कि आज विश्व की नजरें हम पर ही हैं। देश की एकता की जिम्मेदारी के लिए मैं आपसे न्यायिक प्रक्रिया पर रोक लगाने का आग्रह करता हूं। इसके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट ने भी नेतन्याहू से बात की। उनका कहना है कि मैंने प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि न्यायिक प्रणाली में किए जा रहे बदलाव को रोक दें। साथ ही बर्खास्त रक्षामंत्री को भी बहाल करें।
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न्यायिक सुधार क्या हैं जिनका विरोध हो रहा है?
इस्राइल के न्याय मंत्री यारिव लेविन ने इसी साल जनवरी के पहले सप्ताह न्यायिक प्रणाली में संशोधन का प्रस्ताव पेश किया था। न्यायिक प्रणाली में संशोधन के जरिए सरकार एक समीक्षा समिति के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय के नामांकित व्यक्तियों में सुधार करने और संसद को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को अस्वीकार करने का अधिकार देने का प्रयास कर रही है।
नेतन्याहू सरकार द्वारा प्रस्तावित नए कानून के तहत 120 सीटों वाली इस्राइली संसद में 61 सांसदों के साधारण बहुमत से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को रद्द किया जा सकेगा। प्रस्तावित सुधार उस प्रणाली को भी बदल देगा जिसके माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है। इससे न्यायपालिका में राजनेताओं को अधिक नियंत्रण मिलेगा।
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विरोध करने वालों का क्या मत है?
‘न्यायिक सुधार’ कानून की योजना न्याय मंत्री यारिव लेविन ने बीते चार जनवरी को पेश की थी। विपक्ष ने इसे सुप्रीम कोर्ट का गला घोंटने की कोशिश बताया। इस्राइल में लिखित संविधान नहीं है, इसलिए वहां शासन तंत्र में संतुलन बनाए रखने में सुप्रीम कोर्ट की महत्त्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। जबकि प्रस्तावित कानून को लेकर यह राय बनी कि इसके जरिए सुप्रीम कोर्ट को सरकार और संसद के बराबर लाने की कोशिश की जा रही है।
वहीं, इस्राइल के पूर्व प्रधानमंत्री येर लापिद ने सरकार के इस कदम की आलोचना की और इसे अपमानजनक और भ्रष्ट कानून करार दिया है। लापिद ने कहा कि नेतन्याहू सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने में लगे हैं। यहां की न्यापालिका भी नेतन्याहू सरकार द्वारा लाए गए नए कानून का विरोध कर रही है। सर्वोच्च न्यायालय के अध्यक्ष एस्तेर हयात का कहना है कि ये संशोधन, कानूनी प्रणाली पर एक अनियंत्रित हमला है। इससे पता चलता है कि सरकार न्यायिक प्रणाली की स्वतंत्रता पर घातक प्रहार करने का इरादा रखती है।
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विरोध कब से हो रहा है?
इस्राइल में जन-विरोध का सिलसिला तीन महीने से चल रहा है। विरोध प्रदर्शन आमतौर पर शांतिपूर्ण रहे हैं। गुजरे महीनों के दौरान इनमें भाग लेने वाले लोगों की संख्या बढ़ती चली गई। इसका इस्राइल के आम जीवन पर खराब असर पड़ा। इसी बीच, 14 जनवरी की रात को तेल अवीव में हजारों की संख्या में लोगों ने इस्राइल की न्यायिक प्रणाली में प्रस्तावित बदलावों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने उनकी रूसी राष्ट्रपति पुतिन से तुलना की थी। इस्राइल मीडिया के मुताबिक, ना सिर्फ तेल अवीव बल्कि यरूशलेम में भी नेतन्याहू का विरोध किया गया। सरकार के विरोध में जमा हुए लोगों की संख्या तकरीबन 80 हजार थी।
इस्राइल में सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों को नियंत्रित करने वाले नए कानून के प्रस्ताव का विरोध जारी रहा। 21 जनवरी को एक लाख से अधिक लोग इसके खिलाफ तेल अवीव की सड़कों पर उतर आए। यरुशलम, हाइफा, बेर्शेबा और हर्जलिया समेत देश के कई शहरों में हजारों लोगों ने ऐसी रैलियां निकालीं।
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फरवरी में इस्राइल के 20 शहरों में हुआ प्रदर्शन
फरवरी के पहले हफ्ते में इस्राइली झंडे लहराती हुई भीड़ ने केंद्रीय काल्पन स्ट्रीट को जाम कर दिया था। प्रदर्शनकारियों ने इस्राइल की नई सरकार को विश्व शांति के लिए खतरा करार दिया। स्थानीय मीडिया के अनुसार, इस्राइल के यरुशलम, हाइफा, बेर्शेबा और हर्जलिया व तेल अवीव समेत देश के कई शहरों में हजारों लोगों प्रदर्शन किया। हाइफा में हुए विरोध प्रदर्शन में पूर्व प्रधानमंत्री यायर लापिड भी शामिल हुए थे। उन्होंने कहा कि 'हम अपने देश को बचाएंगे क्योंकि हम एक अलोकतांत्रिक देश में नहीं रहना चाहते हैं।'
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मार्च में सैन्य अधिकारी भी विरोध में उतरे
कई महीनों से चल रहे विरोध में मार्च के शुरुआत में इस्राइली सेना भी समर्थन में आ गई। दरअसल वायु सेना के लड़ाकू जेट स्क्वाड्रन के लगभग सभी आरक्षित सदस्यों ने अपने प्रस्तावित प्रशिक्षण सत्रों में भाग नहीं लेने का एलान किया था। सदस्यों का दावा था कि उन्होंने देश की न्यायपालिका की शक्ति को कम करने की सरकार की योजना के विरोध में ये कदम उठाया।
रक्षा मंत्री की बर्खास्तगी ने विरोध को तेज किया
विरोध के बीच, रविवार को प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अपनी सरकार के रक्षा मंत्री यॉव ग्लांट को बर्खास्त कर दिया था। इसके बाद से ही वहां की जनता में आक्रोश और बढ़ गया। येरुशलम स्थित नेतन्याहू के घर के बाहर भी प्रदर्शनकारी इकठ्ठा हो गए। हंगामें के कारण पुलिस और सेना के जवानों ने प्रदर्शनकारियों के ऊपर वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया। प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री पर आरोप लगाते हुए कहा कि न्यायधीशों और सरकार के बीच की खींचतान लोकतंत्र के लिए खतरा है। भ्रष्टाचार के मामले में घिरे प्रधानमंत्री खुद को जेल से बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
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सरकार का क्या रुख है?
हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान पीएम नेतन्याहू ने कहा, 'मैं लोकतंत्र को बर्बाद नहीं कर रहा, बल्कि उसे सुधारने की कोशिश कर रहा हूं।' नेतन्याहू ने जोर देकर कहा कि चीजें जैसी हैं वैसी ही रखना अलोकतांत्रिक विकल्प होगा। आगे उन्होंने कहा, 'जब आप किसी सरकार को वोट देते हैं, तो आप चाहते हैं कि वह सरकार शासन करे। अभी, उस सरकार की शासन करने की शक्तियां प्रतिबंधित हैं।'
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