भारत नहीं है ताइवान या दक्षिण कोरिया, पश्चिमी देशों का दबाव नहीं सहेगा; ईरानी दूत ने की तारीफ

ऐसा कहा जाता है कि ईरान परमाणु बम बनाने के बेहद करीब पहुंच गया है। अमेरिका हमेशा से ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम के खिलाफ रहा है। यही वजह है कि ईरान लंबे समय से प्रतिबंधों को झेल रहा है।
नई दिल्ली। भारत में ईरान के राजदूत इराज इलाही ने एक बार फिर से भारत की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा कि भारत एक उभरती हुई शक्ति है और यह देश पश्चिमी देशों का दबाव नहीं सहेगा। उन्होंने ताइवान और दक्षिण कोरिया का उदाहरण दिया। इराज इलाही ने शुक्रवार को कहा, भारत ताइवान नहीं है। भारत दक्षिण कोरिया नहीं है। भारत एक उभरती हुई शक्ति है। भारत के पास एक मजबूत अर्थव्यवस्था है। इसलिए, भारत आसानी से पश्चिम के दबाव का विरोध कर सकता है।"
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पश्चिमी देशों पर निशाना साधते हुए भारत में ईरान के राजदूत इराज इलाही ने कहा, "भारत ने रूस से तेल खरीदने को लेकर पश्चिमी देशों के दबाव का विरोध किया। हम मानते हैं कि भारत ऐसा कर सकता है। हम आशा करते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था और लोगों के लाभ के लिए, भारत सरकार (ईरान से) तेल का आयात करना शुरू कर देगी।" बता दें कि ईरान और अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी देशों के बीच लंबे समय से तनातनी चल रही है। ऐसा कहा जाता है कि ईरान परमाणु बम बनाने के बेहद करीब पहुंच गया है। अमेरिका हमेशा से ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम के खिलाफ रहा है। यही वजह है कि ईरान लंबे समय से प्रतिबंधों को झेल रहा है।
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भारत के लिए तेल का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत था ईरान
अमेरिका ने ईरान से तेल आयात करने को लेकर भी सख्त प्रतिबंध लगाए हैं। जिसके चलते भारत ने वित्त वर्ष 2019 में ईरान से तेल खरीदना बंद कर दिया था। प्रतिबंध से पहले, ईरान भारत के लिए कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा स्रोत था। वित्त वर्ष 2007 से 2009 के बीच सऊदी अरब के बाद ईरान भारत का दूसरा सबसे बड़ा तेल स्रोत था। दिलचस्प बात यह है कि ईरान पर प्रतिबंध के बाद भारत ने प्रतिबंध लगाने वाले देश अमेरिका से तेल आयात करना शुरू किया था। हालांकि, वित्त वर्ष 2023 में, भारत के तेल आयात में अमेरिका की हिस्सेदारी आधी हो गई और रूस तीसरा सबसे बड़ा स्रोत बन गया। वित्त वर्ष 2023 में भारत के कच्चे तेल के आयात में रूस की हिस्सेदारी 14% के करीब रही।
ईरान के दूत ने कहा, "हम हमेशा भारत को अपने निर्यात को फिर से शुरू करने के लिए अपनी तत्परता व्यक्त करते रहे हैं। यह भारत पर निर्भर है। मैं जो कहना चाहता हूं वह यह है कि प्रतिबंधों वाले देशों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ रही है। सभी देशों को सीखना चाहिए कि प्रतिबंधों के तहत कैसे जीना है अन्यथा वे अपने हितों को खो देंगे।"
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अमेरिका गंभीर नहीं है- ईरानी दूत
ईरानी दूत ने अमेरिका पर निशाना साधते हुए कहा कि US ईरान के साथ तनाव कम करने को लेकर गंभीर नहीं है। उन्होंने कहा, "हमारा मानना है कि अमरीका ईरान और अमरीका के बीच अंतर को पाटने के लिए गंभीर नहीं है। हम JCPOA की बहाली को अंतिम रूप देने के कगार पर थे। लेकिन तेहरान में अराजकता की शुरुआत से और कुछ प्रदर्शनों से, उन्हें लगा कि ईरानी सरकार कमजोर है और वे ईरान पर अपना दबाव बढ़ा सकते हैं। सबसे पहले, ट्रम्प JCPOA से हट गए और फिर बाइडन सरकार ने सोचा कि ईरान आंतरिक दबाव में है इसलिए वे ईरान को जो चाहें उसे स्वीकार करने के लिए बाध्य कर सकते हैं। हमारा मानना है कि अमरीका गंभीर नहीं है।"
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संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) को आमतौर पर ईरान परमाणु सम्झौता के रूप में जाना जाता है। यह जुलाई 2015 में ईरान और ई3/ईयू+3 [यूनाइटेड किंगडम (यूके), फ्रांस, जर्मनी, विदेश मामलों और सुरक्षा नीति के यूरोपीय संघ (ईयू) के उच्च प्रतिनिधि, अमेरिका (यूएस), चीन, रूस) के बीच हस्ताक्षरित एक अप्रसार समझौता है।
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