जर्मनी ने अपने आखिरी 3 न्यूक्लियर पावर प्लांट किए बंद, जानें क्यों किया परमाणु ऊर्जा से तौबा

 
nuclear power plant

जर्मनी ने अपने आखिरी बचे तीन परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को भी शनिवार को बंद कर दिया। यूरोप की यह महाशक्ति अपने परमाणु युग का ऐसे समय अंत कर रही है, जब कई देश अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए परमाणु ऊर्जा में अपना निवेश बढ़ा रहे हैं। ऐसे में जानें जर्मनी के इस कदम के पीछे की वजह...

 

बर्लिन। जर्मनी ने अपने आखिरी बचे तीन परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को भी शनिवार को बंद कर दिया। इस कदम के साथ जर्मनी ने पिछले छह दशकों से ज्यादा समय से चले आ रहे परमाणु ऊर्जा युग का अंत कर दिया। समाचार वेबसाइट अल जजीरा की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।

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जर्मनी अपने परमाणु युग का ऐसे समय अंत कर रहा है, जब कई देश अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए परमाणु ऊर्जा में अपना निवेश बढ़ा रहे हैं।

दरअसल जर्मनी में परमाणु ऊर्जा को लेकर लंबे समय से विवाद रहा है। वर्ष 2011 में जापान की फुकुशिमा दुर्घटना के बाद हवा में विकिरण फैलने की आशंकाओं ने पूरी दुनिया को भयभीत कर दिया था। उसी घटना के बाद बर्लिन ने परमाणु ऊर्जा को स्थायी रूप से त्यागने का वादा किया।

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रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण टालना पड़ा फैसला
हालांकि इस बीच रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण ने ऊर्जा बाजारों को बाधित कर दिया। इस कारण जर्मनी को भी अपने परमाणु संयंत्रों को बंद करने में देरी हुई।

दरअसल जर्मनी ने यूक्रेन पर मॉस्को के हमले के बाद रूसी जीवाश्म ईंधन का आयात रोक दिया था और इसके साथ ही इन परमाणु संयंत्रों को बंद करने का फैसला एक साल के लिए टाल दिया था। अल जजीरा ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण दुनियाभर में ऊर्जा संकट को लेकर चिंताएं थीं और कीमतें आसमान छू रही थीं लेकिन अब जर्मनी पेट्रोल सप्लाई और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में वृद्धि को लेकर आशावादी है।

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लोगों ने मनाई खुशियां
शीत युद्ध की लड़ाई और यूक्रेन में चेरनोबिल जैसी परमाणु त्रासदियों को लेकर लोगों के मन में अब तक जिंदा खौफ के कारण एक मजबूत परमाणु-विरोधी आंदोलन वाले देश में इन संयंत्रों को बंद करने के निर्णय का लोगों ने भी खूब समर्थन किया।

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परमाणु-विरोधी आंदोलन की प्रेरक शक्ति, ग्रीनपीस ने बर्लिन के ब्रैंडनबर्ग गेट के पास इस अवसर के सम्मान में एक समारोह का आयोजन किया। अल जज़ीरा के अनुसार संगठन ने कहा, ‘आखिरकार, परमाणु ऊर्जा इतिहास बन गया है! आइए इस 15 अप्रैल को यादगार दिन बनाएं।’

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