दुनिया में पहली बार... पैदा हुआ पहला Super Baby, कोई जेनेटिक बीमारी नहीं होगी इसे

दुनिया में पहली बार ऐसा बच्चा पैदा किया गया है, जिसे कोई जेनेटिक बीमारी नहीं होगी। न ही उसके माता-पिता से उसे मिलेगी। इस बच्चे में सिर्फ माता-पिता का डीएनए नहीं है। बल्कि एक और इंसान का डीएनए भी शामिल है। यानी तीन लोगों के डीएनए से यह बच्चा तैयार किया गया है। ये है आज की दुनिया का सुपरकिड।
नई दिल्ली। दुनिया का पहला Superkid पैदा हो चुका है। सुपरपावर वाला। इस सुपरबेबी को किसी तरह की जेनेटिक बीमारी नहीं होगी। न ही कोई नुकसानदेह जेनेटिक म्यूटेशन। क्योंकि इस बच्चे में सिर्फ उसके माता-पिता का डीएनए नहीं है। बल्कि तीसरे व्यक्ति का भी डीएनए जोड़ा गया है। यह बच्चा पैदा किया गया है इंग्लैंड में।
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इस बच्चे को पैदा करने के लिए तीन लोगों के डीएनए का इस्तेमाल किया गया। डीएनए की खासियत को बनाए रखने के लिए आईवीएफ तकनीक का इस्तेमाल किया गया। दावा किया गया है कि इस बच्चे को किसी भी तरह की ऐसी जेनेटिक बीमारी नहीं होगी, जिसका इलाज न किया जा सके।
जिस तकनीक से इस बच्चे को बनाया गया है, इसे माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन ट्रीटमेंट (MDT) कहते। इस बच्चे को पैदा करने के लिए स्वस्थ महिला के अंडे (Eggs) से ऊतक (Tissue) लेकर आईवीएफ भ्रूण तैयार किया गया है। यह भ्रूण जिस गर्भ में पला, उस महिला की जेनेटिक बीमारियों से वह सुरक्षित है। यानी इसे मां के शरीर में होने वाली बीमारियों से कोई असर नहीं होगा। न ही उसे ये बीमारियां होंगी।
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यह बच्चा असल में थ्री-पैरेंट बेबी है
इस भ्रूण में बायोलॉजिकल माता-पिता के स्पर्म और एग्स के माइटोकॉन्ड्रिया (Mitochondria) को मिलाया गया है। माइटोकॉन्ड्रिया किसी भी कोशिका का पावर हाउस होता है। इस बच्चे के शरीर में माता-पिता के डीएनए के अलावा तीसरी महिला डोनर के जेनेटिक मटेरियल में से 37 जीन शामिल हैं। यानी यह बच्चा असल में थ्री-पैरेंट बेबी (Three-parent Baby) है। हालांकि, इस बच्चे के शरीर में 99।8 फीसदी डीएनए उसके मां-बाप का ही है।
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मां से ही बच्चे को मिलता है पावर हाउस
माइटोकॉन्ड्रियल डोनेशन ट्रीटमेंट को MRT यानी माइटोकॉन्ड्रियल रीप्लेसमेंट ट्रीटमेंट भी कहते हैं। इस पद्धत्ति को विकसित और उसमें इंग्लैंड के डॉक्टरों ने किया है। इस बच्चे को इंग्लैंड के न्यूकैसल फर्टिलिटी सेंटर में पैदा कराया गया। मकसद यही था कि ऐसा बच्चा पैदा किया जाए, जिसमें माता-पिता की जेनेटिक बीमारियां ट्रांसफर न हों। आमतौर पर कोई भी इंसान अपनी मां से ही ज्यादातर माइटोकॉन्ड्रिया हासिल करता है।
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जेनेटिक बीमारियों से मुक्त रहेगा बच्चा
इसलिए जो भी नुकसानदेह म्यूटेशन होते हैं, वो इन पावर हाउस में जमा रहते हैं। वो बाद में बच्चे की सेहत पर असर डालते हैं। जेनेटिक बीमारियों से जूझ रहीं महिलाओं को आमतौर पर प्राकृतिक तौर पर गर्भधारण करने में दिक्कत आती है। अगर कर भी लिया तो बच्चे की सेहत सही नहीं रहती। बड़े होने के साथ-साथ बच्चे गंभीर बीमारियों से जूझने लगते हैं। दुनिया में 6000 में एक बच्चा माइटोकॉन्ड्रियल बीमारियों से जूझता है। यानी गंभीर जेनेटिक बीमारियों से।
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माइटोकॉन्ड्रिया सही नहीं तो विकास गड़बड़
आमतौर पर इंसानों के शरीर में हर कोशिका के केंद्र यानी न्यूक्लियस में 20 हजार जीन्स होते हैं। लेकिन हर न्यूक्लियस के चारों तरफ छोटे-छोटे बिंदुओं की तरह माइटोकॉन्ड्रिया होते हैं। जिनके अपने जीन्स होते हैं। अगर माइटोकॉन्ड्रिया सही से काम कर रहा है, तो वह कोशिका को ऊर्जा देता है। ताकि अंग बन सकें। अगर कोई जेनेटिक म्यूटेशन है तो माइटोकॉन्ड्रिया डैमेज हो जाता है। फिर वह ऊर्जा खत्म करता है। इसका असर दिमाग, दिल, मांसपेशियां और लिवर पर पड़ता है। इससे बच्चे का विकास सही नहीं होता।
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MDT तकनीक के लिए बदला गया था कानून
एमडीटी तकनीक की शुरुआत के लिए इंग्लैंड की संसद ने 2015 में कानून में बदलाव किया था। दो साल बाद ही न्यूकैसल क्लीनिक इंग्लैंड का पहला ऐसा सेंटर बना, जिसके पास यह तकनीक इस्तेमाल करने का लाइसेंस था। फिर उसने ह्यूमन फर्टिलाइजेशन एंड एंब्रियोलॉजी अथॉरिटी से अप्रूवल लेकर प्रयोग को आगे बढ़ाया। अब इस क्लीनिक के डॉक्टरों ने इस सुपरकिड को पैदा करने की पूरी प्रक्रिया को सार्वजनिक कर दिया है। जिसमें बताया कि पांच से कम बच्चे इस तरह से पैदा किए गए हैं। लेकिन उनमें सुपरकिड वाली क्षमता कम है।
इस प्रक्रिया से पैदा होने वाले बच्चों और माता-पिता की जानकारी को गोपनीय रखा जाता है। उनके बारे में किसी को जानकारी नहीं दी जाती। हालांकि MDT से पैदा होने वाले बच्चों की प्रक्रिया को कोविड महामारी की वजह से झटका लगा था। नहीं तो यह खबर दो साल पहले ही मिल जाती।
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MDT का प्रोसेस क्या होता है?
सबसे पहले पिता का स्पर्म लेकर उसकी मदद से मां के एग्स को फर्टिलाइज किया गया। उसके बाद स्वस्थ महिला के एग्स से न्यूक्लियर जेनेटिक मटेरियल निकाला गया। फिर इसे माता-पिता के फर्टिलाइज एग्स से मिला दिया गया। इससे फर्टिलाइज एग्स में क्रोमोसोम्स की संख्या पूरी हो गई। अब इस एग में स्वस्थ महिला के माइटोकॉन्ड्रिया का वर्चस्व हो जाता है। क्योंकि वह सेहतमंद होता है। इसके बाद इसे भ्रूण में स्थापित कर दिया जाता है।
First UK baby with DNA from three people born after new IVF procedure https://t.co/vKgLaXnODF
— Guardian Science (@guardianscience) May 9, 2023
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ऐसा नहीं इस तकनीक में खतरा नहीं है
ऐसा नहीं है कि इस तकनीक में खतरा नहीं है। एकदम है। अगर अनजाने में एग्स के अंदर अनचाहे माइटोकॉन्ड्रिया आ गए तो वो बच्चे की सेहत पर असर डाल सकते हैं। इससे सुपरकिड पैदा करने की पूरी प्रक्रिया पलट सकती है। बच्चा सेहतमंद होने के बजाय कमजोर या अविकसित हो सकता है। इसलिए इस प्रक्रिया को करते समय डॉक्टर बहुत ज्यादा ध्यान रखते हैं।
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