पहले बर्बाद किया पाकिस्तान को, अब अफगानिस्तान पर नजर; दुनिया चीन की चाल से हो गई परेशान

 
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संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी ने पिछले हफ्ते कहा था कि तालिबान को इस साल 4.6 अरब डॉलर की जरूरत है, ताकि देश की चार करोड़ आबादी में से दो तिहाई से अधिक की मदद की जा सके, जो अत्यधिक गरीबी में जी रहे हैं।

 

इस्लामाबाद। तालिबान चीन और पाकिस्तान के साथ अफगानिस्तान में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विस्तार करने के लिए सहमत हो गया है। इससे अफगानिस्तान में अरबों रुपये का निवेश होने की संभावना है। चीन के विदेश मंत्री किन गैंग और उनके पाकिस्तानी समकक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी ने इस्लामाबाद में मुलाकात की और 60 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को तालिबान शासित राष्ट्र तक ले जाने सहित अफगानिस्तान की पुनर्निर्माण प्रक्रिया पर मिलकर काम करने के लिए हामी भरी। इसके बाद माना जा रहा है कि कहीं चीन ने जिस तरह से पाकिस्तान को बर्बाद किया है, उसी तरह कहीं अब अफगानिस्तान को भी न कर दे। चीन ने डेवलपमेंट के नाम पर पाकिस्तान को काफी कर्जा दिया हुआ है और कई प्रोजेक्ट्स भी चला रहा है, जिससे पाकिस्तान की आर्थिक हालत दयनीय हो गई है। चीन की इस तरह की चालबाजी से पूरी दुनिया अवगत है और ज्यादातर देश उससे परेशान भी हैं।

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'ब्लूमबर्ग' के अनुसार, चीनी और पाकिस्तानी अधिकारियों ने लगभग एक दशक पहले शुरू हुई राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्रमुख बेल्ट एंड रोड पहल के तहत निर्मित परियोजना को अफगानिस्तान तक विस्तारित करने पर चर्चा की थी। नकदी संकट से जूझ रही तालिबान सरकार ने इस परियोजना में भाग लेने और बहुत जरूरी बुनियादी ढांचा निवेश प्राप्त करने की संभावना व्यक्त की है। तालिबान के शीर्ष राजनयिक, आमिर खान मुत्ताकी ने अपने चीनी और पाकिस्तानी समकक्षों से मिलने के लिए इस्लामाबाद की यात्रा की और एक समझौते पर पहुंचे।

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तालिबान ने भी चीन से देश के समृद्ध संसाधनों में निवेश को बढ़ावा देने की उम्मीद जताई है, जिसका अनुमान 1 ट्रिलियन डॉलर है। सरकार ने उत्तरी अमु दरिया बेसिन से तेल निकालने के लिए चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉरपोरेशन की सहायक कंपनी के साथ जनवरी में अपना पहला अनुबंध किया। चीनी और पाकिस्तानी मंत्रियों ने अफगानिस्तान की विदेशी वित्तीय संपत्तियों को अनफ्रीज करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान के केंद्रीय बैंक के लगभग 9 बिलियन डॉलर तक पहुंच से रोक दिया गया है, जो इस चिंता के कारण विदेशों में रखे गए हैं कि फंड का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के लिए किया जाएगा।

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वहीं, वॉशिंगटन ने बाद में अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए इसका आधा हिस्सा जारी करने पर सहमति व्यक्त की, लेकिन तालिबान द्वारा पिछले साल अफगान महिलाओं पर कुछ स्कूल और काम प्रतिबंध लगाए जाने के बाद इसे रोक दिया। चीन, रूस और ईरान उन मुट्ठी भर देशों में से हैं जो तालिबान के साथ मधुर संबंध बनाए रखते हैं। उन्होंने तालिबान को करोड़ों डॉलर की सहायता प्रदान की है, लेकिन सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता देने से पीछे हट गए हैं।

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संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी ने पिछले हफ्ते कहा था कि तालिबान को इस साल 4.6 अरब डॉलर की जरूरत है, ताकि देश की चार करोड़ आबादी में से दो तिहाई से अधिक की मदद की जा सके, जो अत्यधिक गरीबी में जी रहे हैं। 2022 के गैलप पोल ने दिखाया कि दस में से नौ अफ़गानों को अपनी वर्तमान आय पर जीवित रहना मुश्किल या बहुत मुश्किल लगता है। इस्लामिक स्टेट समूह के हमलों के कारण चीनी व्यवसाय अफगानिस्तान में निवेश करने से सावधान रहे हैं, जो प्रभाव के लिए तालिबान के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा है। दिसंबर में, आतंकवादी समूह ने चीनी राजनयिकों और व्यापारियों के बीच लोकप्रिय काबुल के एक होटल पर हमले की भी जिम्मेदारी ली थी।

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