चीन दे रहा पाकिस्तान को झटके पे झटका, इन 3 बड़ी वजहों से पड़ी दोनों की दोस्ती में दरार!

 
china and pakistan

China-Pakistan Relations: चीन ने हाल ही में घोषणा की कि वह 'तकनीकी मुद्दों' के कारण पाकिस्तान में अपने दूतावास के कांसुलर सेक्शन को अस्थायी रूप से बंद कर रहा है। चीन ने यह कदम अपने नागरिकों को पाकिस्तान में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति से सतर्क रहने की सलाह देने के कुछ दिनों बाद उठाया। पिछले सप्ताह जारी एक नोटिस में चीनी विदेश मंत्रालय के वाणिज्य दूतावास विभाग ने अपने नागरिकों को आगाह किया था कि उन्हें पाकिस्तान में उच्च स्तर की सुरक्षा का खतरा हो सकता है।

 

नई दिल्ली। पूरी दुनिया वर्षों से चीन और पाकिस्तान को एक मजबूत रणनीतिक साझेदार के रूप में देख रही है। चीन ने पाकिस्तान में अरबों डॉलर का निवेश किया है, जिसमें ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है, और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हर वैश्विक मंच पर इस्लामाबाद को राजनयिक समर्थन देता रहा है। हालांकि, हाल की कुछ घटनाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि इन तथाकथित सदाबहार सहयोगियों के संबंधों में कुछ खटास आई है। 

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द टाइम्स ऑफ इंडिया में की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान की बिगड़ती आंतरिक सुरक्षा स्थिति चीनी अधिकारियों के लिए बड़ी चिंता का विषय बन गई है। पाकिस्तान के आर्थिक संकट ने बीजिंग के देश में बड़े पैमाने पर निवेश को खतरे में डाल दिया है। पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में भी यही भावना है, जहां अधिकारी दबे मुंह देश के ऋण संकट को बढ़ाने के लिए मेगा सीपीईसी (चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) परियोजना को दोषी ठहरा रहे हैं। सीपीईसी पाकिस्तान में सड़कों, रेलवे, पाइपलाइनों और बंदरगाहों का 65 अरब डॉलर का नेटवर्क है जो चीन को अरब सागर से जोड़ता है। सवाल है कि चीन और पाकिस्तान के बीच का ‘भाईचारा’ आखिरकार चरमरा रहा है? कुछ हाल की घटनाएं इसकी ओर इशारा करती हैं…

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चीन ने हाल ही में घोषणा की कि वह ‘तकनीकी मुद्दों’ के कारण पाकिस्तान में अपने दूतावास के कांसुलर सेक्शन को अस्थायी रूप से बंद कर रहा है। चीन ने यह कदम अपने नागरिकों को पाकिस्तान में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति से सतर्क रहने की सलाह देने के कुछ दिनों बाद उठाया। पिछले सप्ताह जारी एक नोटिस में चीनी विदेश मंत्रालय के वाणिज्य दूतावास विभाग ने अपने नागरिकों को आगाह किया था कि उन्हें पाकिस्तान में उच्च स्तर की सुरक्षा का खतरा हो सकता है। चीन का यह कदम इसलिए पाकिस्तान के लिए झटका माना जा रहा है, क्योंकि उसने 2021 में तालिबान के अधिग्रहण के दौरान भी काबुल में अपने राजनयिक मिशनों को खाली नहीं किया था। बीजिंग स्पष्ट रूप से पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा और वित्तीय स्थिति से घबराया हुआ प्रतीत होता है। हाल के वर्षों में पाकिस्तान में अहम परियोजनाओं में लगे चीनी अधिकारियों पर आतंकी हमले भी हुए हैं, जिनमें कई मौतें हुई थीं। आतंकवाद पाकिस्तान की स्टेट पॉलिसी का अहम हिस्सा रहा है, जिसे वह भारत के खिलाफ एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करता था, लेकिन इस्लामाबाद अब खुद इस चुनौती का सामना कर रहा है।

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बढ़ता आतंकवाद
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने पिछले साल के अंत में पाकिस्तान सरकार के साथ संघर्ष विराम समाप्त कर दिया था। उसके बाद से देश में आतंकवादी हमलों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। टीटीपी आतंकी शरीयत के शासन को स्थापित करने के उद्देश्य से पाकिस्तान की सेना और सुरक्षा कर्मियों को निशाना बनाते हैं। इन आतंकी हमलों ने चीन को अपने अधिकारियों की सुरक्षा को लेकर परेशान कर दिया है। पाकिस्तान में विभिन्न आतंकवादी समूह सीपीईसी पर काम कर रहे चीनी अधिकारियों, इंजीनियरों, नागरिकों को अक्सर निशाना बनाते रहे हैं, जिसका उद्देश्य बेल्ट एंड रोड इंफ्रा प्रोजेक्ट इनिशिएटिव के लिए बीजिंग को धमकाना है। चीन, पाकिस्तान पर दबाव बना रहा है कि वह देश के अशांत क्षेत्रों में काम कर रहे उसके नागरिकों को फुलप्रूफ सुरक्षा मुहैया कराए। हालांकि, पाकिस्तान के पंजाब में सरकार ने हाल ही में प्रांत में रहने वाले चीनी नागरिकों से कहा कि वह उन सभी को सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकती और उन्हें निजी सुरक्षा फर्मों को हायर करने का सुझाव दिया। पाकिस्तान में सीपीईसी पर काम कर रहे चीनी नागरिक डर के साये में जी रहे हैं।

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आंतरिक विद्रोह
तनाव प्रभावित बलूचिस्तान क्षेत्र में चीन के बढ़ते पदचिह्न ने भी मामलों को बदतर बना दिया है। बलूच कार्यकर्ता अपनी जमीन पर चीनी आक्रामकता को लेकर गुस्से में हैं और क्षेत्र में उनकी उपस्थिति के खिलाफ अक्सर विरोध प्रदर्शन करते रहे हैं। बलूच पहले से ही अपनी भूमि पर अल्पसंख्यक के रूप में रह रहे हैं और पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी, आईएसआई के हाथों व्यापक उत्पीड़न का सामना करते हैं। हाल के वर्षों में बलूचिस्तान में अलगाववादी आंदोलन तेज हुआ है और पाकिस्तान और उसके सहयोगी चीन के खिलाफ विरोध दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। बलूच इस इलाके में बड़े पैमाने पर चीनी निवेश का विरोध कर रहे हैं, खासकर ग्वादर क्षेत्र में, क्योंकि इससे इस क्षेत्र में स्वदेशी आबादी का बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ है। ग्वादर बंदरगाह निर्माण के कारण स्थानीय मछुआरों पर भी कई तरह के प्रतिबंध लगाए गए हैं। हाल के वर्षों में बलूचों ने इलाके में इस्लामाबाद के समर्थन से चीनी निवेश का विरोध करने के लिए चीनी श्रमिकों को निशाना बनाया है और सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट कर दिया है। बलूचिस्तान के बोलन जिले में हाल ही में हुए विस्फोट में एक यात्री ट्रेन पटरी से उतर गई थी। इस घटना में करीब 18 लोग घायल हुए थे। इस हमले की जिम्मेदारी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने ली थी। बलूचिस्तान में ऐसे कई सशस्त्र संगठन उभरे हैं, जो बीजिंग के लिए लगातार सिरदर्द बनते जा रहे हैं।

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आर्थिक संकट
विदेशी मुद्रा भंडार में भारी कमी और बड़े पैमाने पर ऊर्जा संकट का सामना कर रहे पाकिस्तान के प्रति उदारता बरतने में चीन ने अनिच्छा दिखाई है। जबकि चीन ने हर समय पाकिस्तान की मदद करने का वचन दिया है, इस्लामाबाद की गड़बड़ घरेलू राजनीतिक स्थिति में हस्तक्षेप करने के लिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ओर से स्पष्ट हिचकिचाहट है। वास्तव में, संकटग्रस्त देश में कई चीनी कंपनियां भुगतान में देरी, बढ़ती विनिमय दरों और पाकिस्तानी अधिकारियों के असहयोगी व्यवहार के कारण देश में अपनी परियोजनाओं को जारी रखने के लिए अनिच्छुक बनी हुई हैं। चीन ने पाकिस्तान में अपनी कई महत्वपूर्ण विकास परियोजनाओं में देरी की है, जिसमें मेनलाइन-1 रेलवे परियोजना, कराची सर्कुलर रेलवे परियोजना, आजाद पट्टन जलविद्युत परियोजना और थार ब्लॉक-1 कोयला परियोजना शामिल हैं। इसके अलावा, चीन चाहता है कि पाकिस्तान अपनी आर्थिक मदद करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की शर्तों को पूरा करे। इस बीच, आईएमएफ ने पाकिस्तान में सीपीईसी परियोजनाओं पर आपत्ति जताई है, जिससे देश कैच-22 की स्थिति में पहुंच गया है।

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