इस्लामिक दुनिया में चीन ने मचाई खलबली, चिढ़ गया इजरायल!

 
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मध्य-पूर्व के चिर-प्रतिद्वंद्वी ईरान और सऊदी अरब एक बार फिर से अपने रिश्तों को सुधार रहे हैं। दोनों देशों की सरकारी मीडिया ने घोषणा की है कि सऊदी अरब और ईरान के बीच राजनयिक रिश्ते बहाल किए जाएंगे और दूतावासों को फिर से खोला जाएगा।

 

नई दिल्ली। मध्य-पूर्व के दो पड़ोसी दुश्मनों ईरान और सऊदी अरब ने एक बार फिर से अपने रिश्ते सुधारने की बात कही है। दोनों देशों की सरकारी मीडिया के अनुसार, ईरान और सऊदी अरब दो महीने के भीतर संबंधों को फिर से स्थापित करने और दूतावासों को फिर से खोलने पर सहमत हुए हैं। चीन की राजधानी बीजिंग में दोनों देशों के बीच हुई वार्ता के बाद यह समझौता हुआ है। माना जा रहा है कि चीन ने दोनों देशों की बीच वार्ता में मध्यस्थता की है।

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अलजजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, ईरानी समाचार एजेंसी आईआरएनए ने शुक्रवार को बताया, 'वार्ता के बाद ईरान और सऊदी अरब दो महीने के भीतर राजनयिक संबंधों को फिर से शुरू करने और दूतावासों को फिर से खोलने पर सहमत हुए हैं।'

ईरान की सरकारी टीवी नूर न्यूज ने ऐसी तस्वीरें और वीडियो पोस्ट किए हैं जिसमें चीन में दोनों देशों के नेताओं की मीटिंग देखी जा सकती है। इसमें ईरान के सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल के सचिव अली शामखानी को एक सऊदी अधिकारी और एक चीनी अधिकारी के साथ दिखाया गया है।

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ईरानी टीवी ने कहा, 'दोनों देशों की तरफ से लिया गया निर्णय लागू होने के बाद, दोनों देशों के विदेश मंत्री मिलेंगे। इस मुलाकात में वो अपने राजदूतों का आदान-प्रदान करेंगे।'

सऊदी अरब की सरकारी एजेंसी सऊदी प्रेस एजेंसी (SPA) ने भी इस समझौते की पुष्टि की है। एजेंसी ने सऊदी अरब और ईरान के संयुक्त बयान को प्रकाशित किया है जिसमें कहा गया है कि दोनों देश एक-दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करने और एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने पर सहमत हुए हैं।

बयान में यह भी कहा गया है कि सऊदी और ईरान ने 2001 में हस्ताक्षरित एक सुरक्षा सहयोग समझौते को भी सक्रिय करने पर सहमति व्यक्त की है।

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ईरान और सऊदी अरब के बीच लंबे समय से रहा है तनाव
मध्य-पूर्व के दो शक्तिशाली पड़ोसियों के बीच क्षेत्रीय प्रभुत्व को लेकर लंबे समय से तनाव रहा है। दोनों मुस्लिम देशों के बीच धार्मिक मतभेद हैं और दोनों इस्लाम के अलग-अलग पंथ को मानते हैं। ईरान जहां शिया मुसलमान बहुल देश है वहीं, सऊदी अरब सुन्नी मुसलमानों का देश है।

सऊदी अरब ने साल 2016 में एक प्रमुख शिया धर्मगुरू को फांसी पर लटका दिया था जिसके बाद ईरान में सऊदी के खिलाफ हिंसा भड़क गई थी। ईरान के प्रदर्शनकारियों ने सऊदी के राजनयिकों पर हमले कर दिए थे जिसके बाद सऊदी अरब ने ईरान से अपने राजनयिक रिश्तों को खत्म कर दिया था। लेकिन हाल के दिनों में दोनों पक्षों की ओर से संबंधों को मधुर बनाने की कोशिश की गई है।

अलजजीरा के अली हाशम ने कहा, 'पिछले कुछ वर्षों में बगदाद में सऊदी और ईरानी अधिकारियों के बीच बैठकें हुई हैं। इराकियों ने 2021 में मध्यस्थता वार्ता की शुरुआत की थी। पांच दौर की बातचीत के बाद कोई खबर सामने नहीं आई। ओमान में भी सुरक्षा स्तर की बैठकें हुईं। वे मुख्य रूप से यमन की स्थिति पर केंद्रित थीं।'

सऊदी अरब और ईरान के बीच लेबनान, सीरिया और यमन जैसे क्षेत्रीय मुद्दों पर तनाव होता रहा है। अगर दोनों देशों के बीच संबंध बहाल होते हैं तो मध्य पूर्व की राजनीति पर प्रभाव पड़ सकता है। 

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संबंध बहाली पर चिढ़ गया इजरायल
सऊदी अरब ईरान के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की घोषणा से इजरायल के पूर्व प्रधानमंत्री नेफ्ताली बेनेट बेहद नाराज हुए हैं और उन्होंने इसके लिए बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार को दोषी ठहराया है। सऊदी अरब और इजरायल के बीच किसी तरह का राजनयिक संबंध नहीं है बावजूद इसके वो खाड़ी देशों के साथ मिलकर ईरान के खिलाफ एक गठबंधन बनाने के प्रयास में लगा है। सऊदी अरब भी इस प्रयास में उसके साथ खड़ा रहा है। ऐसे में दोनों देशों के बीच राजनयिक संंबंधों के स्थापना की खबर से इजरायली नेता चिढ़ गए हैं।

नेफ्ताली बेनेट ने इसे ईरान की राजनीतिक जीत बताते हुए कहा है कि यह ईरान के खिलाफ क्षेत्रीय गठबंधन बनाने के प्रयास के लिए बड़ा झटका है।


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उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, 'सऊदी अरब और ईरान के बीच संबंधों का फिर से शुरू होना इजरायल के लिए एक गंभीर और खतरनाक बात है और ईरान के लिए एक राजनीतिक जीत है। यह ईरान के खिलाफ क्षेत्रीय गठबंधन बनाने के प्रयास के लिए घातक झटका है। यह नेतन्याहू सरकार की बड़ी विफलता है। देश की कमजोरी और मुद्दे का राजनीतिक उपेक्षा के परिणामस्वरूप यह हुआ है।'

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