खुला मिस्र की ममी का बड़ा रहस्य, हक्के-बक्के रह गए वैज्ञानिक भी!

 
mummy

प्राचीन मिस्र में शवों को सुरक्षित रखने के लिए जिन रसायनों का इस्तेमाल होता था, उससे जुड़ी कई रोचक जानकारी सामने आई है। एक नए अध्ययन में पता चला है कि ममीकरण के लिए इस्तेमाल रसायनों को दूर देशों से लाया जाता था। मिस्रवासी इसके लिए एक व्यापार मार्ग का इस्तेमाल करते थे जो भारत से भी होकर गुजरता था।

 

नई दिल्ली। पुरातात्विक खोजों के लिए मशहूर मिस्र में कई सभ्यता पुरानी ममियों का मिलना जारी रहता है। अब इससे ही जुड़ा एक नया शोध सामने आया है जिसने प्राचीन मिस्र में ममीकरण के कई रहस्यों का पर्दाफाश किया है। शोधकर्ताओं ने एक प्राचीन ममीकरण लैब से खोजे गए दर्जनों बीकर और कटोरे की मदद से पता लगाया है कि प्राचीन मिस्र में लोग शवों को संरक्षित करने के लिए किस सामग्री का इस्तेमाल करते थे। इससे एक बड़ी जानकारी सामने आई है कि लोग इन सामग्रियों को भारत जैसे एशियाई देशों, लेबनान आदि से आयात करते थे।

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प्राचीन 31 चीनी मिट्टी के बर्तनों का असाधारण संग्रह साल 2016 में राजधानी काहिरा के दक्षिण में सक्कारा नेक्रोपोलिस में 42 फीट गहरे कुएं के तल पर पाया गया था। खोजे गए बर्तन और बीकर 664-525 ईसा पूर्व के हैं जिनसे अब बड़ी जानकारियां सामने आई हैं। शोधकर्ताओं ने सालों तक बर्तनों का अध्ययन किया जिसके बाद उन्हें 664-525 ईसा पूर्व की कई चौंकाने वाली जानकारियां मिली हैं।

समाचार एजेंसी एएफपी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने पाया कि बर्तनों के अंदर एशियाई पेड़ों से प्राप्त रेजिन (चिपकने वाला पदार्थ), लेबनान से देवदार का तेल और मृत सागर में पाए जाने वाले कोलतार का इस्तेमाल किया गया है। इससे पता चला है कि वैश्विक व्यापार उस दौरान फल-फूल रहा था।

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शवों पर लेप लगाने की अद्भुत प्रक्रिया
प्राचीन मिस्र के लोग मरे हुए लोगों के शरीर पर एक अद्भुत किस्म का लेप लगाते थे जो बेहद उन्नत किस्म का होता था। इसे ममीकरण कहा जाता है। उनका विश्वास था कि यदि शवों को लेप लगाकर हर तरह से अक्षुण्ण रखा जाए तो वो अगले जन्म में पहुंच जाते हैं।

शोधकर्ताओं ने ममीकरण की प्रक्रिया को फिर से लैब में दोहराया जिसमें करीब 70 दिन लग गए। इस दौरान शोधकर्ताओं ने शव को नैट्रॉन नमक में मिलाकर सुखाया, फिर उसकी अंतड़ी निकाली गई। शव के फेफड़े, पेट, आंतो और लीवर को हटाया गया और दिमाग को भी निकाल लिया गया।

इसके बाद पुजारियों की मौजूदगी में ममीकरण करने वालों ने शव को धोया और उसे सड़ने से बचाने के लिए कई तरह के पदार्थों का लेप लगाया। लेकिन प्राचीन मिस्र के लोग ममीकरण के लिए यही प्रक्रिया अपनाते थे, इसे लेकर शोधकर्ता पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं। उपलब्ध जानकारी के आधार पर ममीकरण की प्रक्रिया को दोहराया गया।

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लैब से प्राप्त बर्तनों और ममीकरण में संबंध
जर्मनी के तुबिंगन और म्यूनिख विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं की एक टीम ने काहिरा में राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र के सहयोग से सक्कारा ममीकरण लैब में पाए गए 31 चीनी मिट्टी के बर्तनों में अवशेषों का विश्लेषण करके ममीकरण से जुड़ी कुछ जानकारियां जमा की हैं।

इन बर्तनों की तुलना पास के कब्रों में पाए गए कंटेनरों से करके शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया है कि ममीकरण में किस पदार्थ का इस्तेमाल किया जाता था।

अध्ययन के मुख्य लेखक मैक्सिम रेजोट ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, 'ममीकरण में इस्तेमाल किए गए पदार्थों में एंटीफंगल, एंटी-बैक्टीरियल गुण थे जो मानव ऊतकों को संरक्षित करने और दुर्गंध को कम करने में मदद करते थे। हमें जो बर्तन मिले हैं उन पर आसानी के लिए लेबल लगे है। एक कटोरे पर लिखा है- शव धोने के लिए, जबकि एक दूसरे कटोरे पर लिखा है-शव की दुर्गंध को कम करने के लिए।'

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उन्होंने बताया कि ममीकरण की प्रक्रिया में सबसे अधिक सुरक्षा सिर को दी जाती थी। सिर को क्षतिग्रस्त होने से बचाने के लिए तीन अलग-अलग कवच बनाए गए थे जिनमें से एक पर लिखा था- सिर ढकने के लिए।

तुबिंगन विश्वविद्यालय के एक बयान में इजिप्टोलॉजिस्ट सुसैन बेक ने कहा, 'प्राचीन मिस्र की लिपि को अब हम समझने लगे हैं और इस समझ के बाद ही हम इन बर्तनों पर की गई लिखावट को पढ़ने में सफल रहे हैं। लेकिन अब भी, हम केवल बर्तनों पर लिखे शब्दों को पढ़ सकते हैं, लेकिन इस बारे में कुछ भी सही-सही नहीं बता सकते कि ममीकरण के लिए किस रसायन का इस्तेमाल किया गया था।'

बर्तनों के लेबल को पढ़कर मिस्र के वैज्ञानिकों ने कुछ रसायनों का अनुमान लगाया है जो ममीकरण में इस्तेमाल होता था। शोधकर्ताओं का कहना है कि बर्तन पर लिखे 'एंटीयू' शब्द का मतलब वास्तव में कई अलग-अलग सामग्रियों का मिश्रण हो सकता है। सक्कारा में मिले एंटियू लेबल वाला कटोरा देवदार के तेल, जुनिपर या सरू के तेल और पशु वसा का मिश्रण हो सकता था।

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ममीकरण में एक्सपर्ट थे मिस्रवासी
जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ जियोएंथ्रोपोलॉजी के फिलिप स्टॉकहैमर ने कहा कि इस खोज से पता चलता है कि प्राचीन मिस्रवासियों के पास ममीकरण को लेकर बहुत अधिक ज्ञान था। वो जानते थे कि अगर शरीर को नैट्रॉन नमक से बाहर निकाला जाता है, तो तुरंत उसे चमड़ी खाने वाले सूक्ष्म जीव अपना शिकार बना लेंगे।

ऐसा माना जाता है कि ममीकरण करने वाले मिस्र के लोग एक व्यापार मार्ग का इस्तेमाल करते थे जो लगभग 2000 ईसा पूर्व में वर्तमान इंडोनेशिया, भारत, फारस की खाड़ी और लाल सागर से होकर मिस्र आता था। 

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