पाकिस्तान के हर कदम पर नजर है अमेरिका की, 'सुन' सकता है प्रधानमंत्री तक की बात, लीक दस्तावेज में खुलासा

 
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US China: अमेरिका में 9/11 हमलों के बाद पाकिस्तान एक ऐसा देश है, जिसे सबसे ज्यादा फायदा हुआ था। अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के तैनात होने के बाद पाकिस्तान को मदद मिलती रही है। लेकिन अमेरिका के अफगानिस्तान से निकलने के बाद अब पाकिस्तान अपना पाला बदल रहा है और इसकी खबर अमेरिका को भी है।

 

वॉशिंगटन। कुछ दिनों पहले अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के कई गोपनीय दस्तावेज ऑनलाइन इंटरनेट पर शेयर किए गए थे। सुपरपावर के घर में सेंध लगने के चलते पूरी दुनिया में हड़कंप मच गया। अब इन लीक दस्तावेजों में पाकिस्तान के एक मंत्री से जुड़ी जानकारी भी शामिल है। जानकारी के मुताबिक पाकिस्तान की विदेश राज्य मंत्री हिना रब्बानी खार ने कहा था उनका देश चीन और अमेरिका के बीच मिडल ग्राउंड नहीं बना रह सकता। अगर पाकिस्तान अमेरिका की तरफ झुकता है तो उसे चीन से मिलने वाले बड़े फायदे को त्यागना होगा। यह बयान तब आया जब अमेरिका अफगानिस्तान से निकल गया।

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वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक एक इंटरनल मेमो में हिना रब्बानी खार ने यह बातें कहीं। इस मेमो का टाइटल, 'पाकिस्तान के मुश्किल विकल्प' था। मेमो में उन्होंने लिखा कि पाकिस्तान को पश्चिम को खुश करने का आभास देने से बचना चाहिए। इसके अलावा उन्होंने लिखा कि अमेरिका के साथ अगर पाकिस्तान साझेदारी बनाए रखता है तो उसे चीन के साथ उसके वास्तविक रणनीतिक साझेदारी को त्यागना होगा, पाकिस्तान अब और मिडल ग्राउंड नहीं बन सकता। हालांकि हिना रब्बानी खार का यह मेमो अमेरिका के हाथ कैसे लगा इसकी जानकारी नहीं है।

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प्रधानमंत्री की बातें भी सुन सकता है अमेरिका
9/11 आतंकी हमलों के बाद पाकिस्तान ही वह देश है, जिसे अमेरिका से अरबों डॉलर की मदद मिलती रही है। लेकिन ऐसा नहीं है कि अमेरिका सिर्फ पाकिस्तान के मंत्रियों की खबर रखता है। 17 फरवरी के एक अन्य दस्तावेज में पाकिस्तानी प्रधान मंत्री शहबाज शरीफ के उस विचार विमर्श का जिक्र है, जिसमें वह यूक्रेन संघर्ष पर यूएन में मतदान से जुड़ी बात कर रहे हैं। इसमें वह कहते हैं कि अगर रूस की निंदा प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया तो किस तरह उन्हें पश्चिम से दबाव आएगा।

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संबंध आ सकते हैं खतरे में
खुफिया दस्तावेज में कहा गया है कि शहबाज शरीफ के सहयोगी ने सलाह दी कि अगर वह निंदा करते हैं तो यह पाकिस्तान की स्थिति में बदलाव का संकेत देगा। क्योंकि इसी तरह के एक प्रस्ताव में पहले पाकिस्तान ने भाग नहीं लिया था। सहयोगी ने आगे कहा था कि पाकिस्तान के पास रूस के साथ व्यापार और ऊर्जा सौदे से जुड़ी बातचीत करने की क्षमता है और अगर इसका समर्थन किया जाता है तो संबंध खतरे में आ जाएंगे। 23 फरवरी को जब यूएन में इसे लेकर मतदान हुआ तो इसमें हिस्सा न लेने वाले 32 देशों में पाकिस्तान भी था।

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