यूक्रेन पर जंग के बीच मंडराया नया खतरा, मामूली जख्मों पर भी दवाओं का असर नहीं हो रहा

 
Russia-Ukraine War

रूस-यूक्रेन युद्ध में शांति वार्ता की सभी कोशिशें बेकार हो रही हैं। इस बीच एक और परेशान करने वाली खबर आ रही है कि यूक्रेन के बीमार और जख्मी लोगों पर दवाएं बेअसर होने लगी हैं। आनन-फानन में इस देश ने दवाओं की अपनी नीति में बदलाव किया, लेकिन अंदेशा जताया जा रहा है कि काफी देर न हो चुकी हो। सवाल ये भी है कि आखिर क्यों यूक्रेन में दवाएं काम नहीं कर रहीं?

 

नई दिल्ली। यूक्रेन और रूस के बीच जंग छिड़े सालभर से ज्यादा समय हुआ। दोनों में से कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं, बल्कि युद्ध में दूसरे देश भी योगदान देने लगे हैं। इधर युद्ध-प्रभावित यूक्रेन में महंगाई, तबाही के बीच नया पैटर्न दिख रहा है।

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कुछ समय पहले यूक्रेन में जख्मी नागरिकों को जर्मनी के अस्पतालों में भेजा गया। इस दौरान पता लगा कि बहुत से मरीज मल्टीड्रग रेजिस्टेंट हो चुके हैं। यानी उनपर दवा का असर कम या नहीं हो रहा। इससे डॉक्टर भी परेशानी में हैं कि उनका इलाज कैसे किया जाए। इसे साइलेंट पेंडेमिक कहा जा रहा है जो धीरे-धीरे पूरी दुनिया को अपना शिकार बना सकता है। 

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क्या है मल्टीड्रग रेजिस्टेंस?
इसे एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस (AMR) भी कहते हैं, यानी दवाओं का बेअसर होते जाना। ये तब होता है जब बैक्टीरिया या वायरस या किसी भी तरह के परजीवी अपना रूप बदलते हैं और समय के साथ दवाएं उनपर बेअसर हो जाती हैं। इससे गंभीर ही नहीं, मामूली इंफेक्शन भी खतरनाक साबित हो सकता है क्योंकि शरीर पर किसी एंटीबायोटिक का असर ही नही होगा।

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ukraine war risk of drug resistant superbugs and what is antibiotic resistance

लेकिन क्यों होता है ऐसा?
एंटीबायोटिक दवाओं का काम है कि वे बैक्टीरिया, वायरस आदि की ग्रोथ रोककर उन्हें खत्म कर दें। बैक्टीरियल बीमारी में यही दवाएं काम आती हैं। लेकिन इसके साइड इफेक्ट भी हैं। बहुत बार डॉक्टर भी इसे ओवरप्रेस्क्राइब करते हैं तो कई बार लोग ओवर द काउंटर भी एंटीबायोटिक ले लेते हैं।

अगर हम जरूरत से ज्यादा एंटीबायोटिक लें तो बैक्टीरिया में उसके लिए प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो जाती है। मतलब दवा उसपर असर नहीं करती और बीमारी बनी रहती है। परेशान करने वाली बात ये है कि ये प्रतिरोधक क्षमता ट्रांसफर होते हुए बैक्टीरिया की एक से दूसरी प्रजाति में भी चली जाती है। 

एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस को आसान भाषा में इस तरह से भी समझ सकते हैं कि जैसे कोई शराब पीना शुरू करे तो पहले-पहल उसे हल्की डोज में भी नशा होता है, लेकिन धीरे-धीरे वो डोज नाकाफी हो जाती है। शरीर उसका आदी हो चुका होता है और नशे के लिए ज्यादा खुराक की मांग करता है। ठीक यही स्थिति एंटीबायोटिक के साथ होती है। एक समय के बाद शरीर पर कम खुराक काम नहीं करती और फिर एक स्थिति ऐसी आती है, जब उसपर एंटीबायोटिक का असर ही नहीं होता। 

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इसके बाद क्या होता है?
जब एक एंटीबायोटिक फेल हो जाए तो डॉक्टर दूसरी दवा देते हैं। कई बार नई दवा काम करती है तो कई बार नहीं। नहीं काम करने की अवस्था को मल्टी-ड्रग रेजिस्टेंस कहते हैं। ये वो बैक्टीरिया हैं, जो बहुत सी एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ ताकतवर हो चुके। मतलब कई दवाएं बेकाम हो चुकी हैं। 

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क्या होता है रेजिस्टेंस पैदा होने पर? 
ये कितना भयंकर है, इसका अनुमान आप इसी से लगा लीजिए कि साल 2019 में दुनियाभर में 12 लाख से ज्यादा मौतें एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस के चलते हुईं। मरीज बैक्टीरियल संक्रमण का शिकार थे लेकिन एंटीबायोटिक ने उनपर असर करना बंद कर दिया। मेडिकल जर्नल लैंसेट में छपी इस स्टडी में साफ कहा गया कि मौजूदा दवाओं का समझदारी से और थोड़ा रुककर इस्तेमाल हो ताकि इंसानी की अपनी इम्युनिटी भी बीमारी से मुकाबला कर सके।

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क्यों यूक्रेन में दिख रही ये अवस्था?
नब्बे के दशक में रूस से अलग होने के बाद यूक्रेन ने नए सिरे से खुद को बनाना शुरू किया। इस प्रक्रिया के दौरान मेडिकल साइंस भी खासे दबाव में रहा। नई खोजें, नई लैब और अस्पतालों का प्रेशर था। इस बीच बीमार पड़ते लोगों ने खुद ही अपना इलाज शुरू कर लिया। साल 2021 तक वहां एंटीबायोटिक्स तक बिना डॉक्टर की पर्ची के खरीदे जा सकते थे। इस प्रैक्टिस को गलत तो कहा जाता था, लेकिन इसपर कोई सख्त नियम नहीं था। बीते साल 1 अगस्त को ही वहां एंटीबायोटिक दवाओं की बिक्री के नए नियम बने। इसके तहत अब वहां के लोग ओवर-द-काउंटर दवा नहीं ले सकेंगे, बल्कि डॉक्टरी सलाह पर ही एंटीबायोटिक मिलेगी। 

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क्या एंटीबायोटिक रेजिस्टेंट बैक्टीरिया फैल भी सकते हैं?
हां। ये बैक्टीरिया एक से दूसरे व्यक्ति में फैल सकते हैं। किसी भी दूसरी संक्रामक बीमारी की तरह इसके बैक्टीरिया भी गंदे हाथों से या संक्रमित चीजों को छूने और उनके इस्तेमाल से फैल सकते हैं। जैसे अस्पताल में अगर एक मरीज इस रेजिस्टेंस के साथ पहुंचा और वो सीधे-सीधे दूसरे मरीज के संपर्क में आया, तो दूसरे को भी इसका खतरा रहता है। यहां से चक्र चल पड़ता है।

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शरणार्थियों को ठौर देने वाले देशों पर कितना खतरा?
जर्मनी के अस्पतालों में घायल यूक्रेनियन नागरिक आए, जिनमें ड्रग रेजिस्टेंस पाया गया। इसपर जर्मनी चिंता जता चुका है कि कहीं ये फैलने न लगे। फिलहाल यूक्रेन में जैसे हालात हैं, इसकी आशंका बनी भी हुई है। बीते सालभर में वहां से लाखों नागरिक दूसरे देशों में शरणार्थी की तरह गए। इनमें बहुत से लोग ऐसे होंगे, जिनपर एंटीबायोटिक कम असर करती होंगी।

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फिलहाल ऐसे कितने लोग हैं, इसका कोई डेटा नहीं, लेकिन बीते साल तक यूक्रेन की कमजोर हेल्थ पॉलिसी को देखते हुए ये माना जा सकता है। ऐसे में वे लोग जहां भी जाएंगे, अपने साथ बीमारी का खतरा लेकर जाएंगे। 

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