हथियारों की नई होड़ हो चुकी है शुरू, शीत युद्ध से कैसे है अलग

रूस यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) शुरू होने के बाद से हथियारों की होड़ (Arms Race) ने नया आयाम ले लिया है। दुनिया के देश अब इस पर मंथन करने लगे हैं कि आखिर उन्हें किस तरह के युद्ध से अपनी रक्षा करनी है। शीतयुद्ध (Cold War) के बाद भी पहले जहां जमीनी हथियारों पर खर्चा बहुत हुआ करता था। रूस युक्रेन युद्ध से दुनिया के देश सबक लेकर अपनी रक्षा प्राथमिकताओं को फिर से परिभाषित कर रहे हैं।
नई दिल्ली। 1991 में जब दुनिया में शीत युद्ध (End of Cold War) खत्म हुआ था तो लोगों को लगा था कि हथियारों की स्पर्धा खत्म हो जाएगी। उस समय किसी ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि शीत युद्ध तो खत्म हो गया है, लेकिन हथियारों को बनाने वाले, उनकी फैक्ट्रियां और बाजार खत्म नहीं हुआ है। संयोग ही कहिए कि जल्दी ही देखा गया कि हथियारों की जरूरत खत्म नहीं हुई। पिछले साल शुरू हुए रूस यूक्रेन युद्ध ने इस होड़ को दुनिया के सामने ला दिया। लेकिन अब शीतयुद्ध के बाद का युग (Post-Cold war Era) भी समाप्त हो गया है और दुनिया एक नई तरह की हथियारों की होड़ (New Arms Race) में उलझ गई है।
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यूरोप में बढ़ते हथियार
पिछले एक साल से यूरोप में हथियारों का जमावड़ा तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई दिया है। इसमें पोलैंड ने बहुत ही तेजी से अपने जखीरे का विस्तार किया है। उसके पास करीब 500 हिमार्स और उसके जैसे लंबी दूरी के लॉन्च रॉकेट सिस्टम हैं। ऐसे केवल 20 हथियारों ने यूक्रेन में रूस की सेना को भारी नुकसान पहुंचाया है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार पोलैंड और ज्यादा हथियार हासिल करने पर काम कर रहा है, जिसमें जर्मनी, ब्रिटेन फ्रांस से कई गुना ज्यादा हथियार हैं।
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बदल गए हैं नजरिये
युद्ध से सबक लेने के मामले में दुनियाके देश द्वितीय विश्व युद्ध को याद करते रहे हैं। लेकिन पिछले एक साल में काफी कुछ बदल गया है, और सभी देश अपने सुरक्षा जरूरतों की फिर से समीक्षा करने लगे हैं और तय करने में लगे हैं कि उन्हें किस तरह के युद्ध के लिए तैयार रहना है। युद्ध पर चीन, भारत ताइवान तक नजर रख रहे हैं। यहां तक कि अमेरिकी रुख में भी बदलाव आया है।
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क्या बदालव आ रहा है
फ्रांस के वरिष्ठ रक्षा विशेषज्ञ और पूर्व सरकारी सलाहकार फ्रैंकोइस हेइसबोर्ग का कहना है कि शीत युद्ध के बाद के युग की कहानी 22 फरवरी 2022 को खत्म हो चुकी है। अब जमीनी ताकत बढ़ाने जोर देना बंद होने लगा है जैसा की शीत युद्ध के खत्म होने के बाद किया जाता था। उनका कहना है कि ऐसा हर सेना के साथ हो रहा है क्योंकि अब साफ हो चुका है कि अमेरिका सहित किसी के पास भी ऐसा जखीरा नहीं है जो बड़े प्रचंड युद्ध से निपट सके।
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इनकी भी बढ़ी अहमियत
यूक्रेन के पास कई देशों ने अपने रक्षा खर्च बढ़ा दिए हैं, घरेलू रक्षा उत्पादन बढ़ा दिया है, और टैंक, और हवाई रक्षा का विस्तार करना शुरू कर दिया है। वहीं यूके की रॉयल यूनाइटेड सर्विसेस इंस्टीट्यूट के अध्ययन के अनुसार, हथियारों, ड्रोन और रियल टाइम इंटेलिजेंस नवाचारों की रक्षा करना भी बहुत अहम है जिसने यूक्रेन को ज्यादा सटीकता दी है जिससे वह लड़ाई में रूस का ज्यादा मजबूत विरोधी साबित हुआ है।
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और भी हैं कारक
ऐसा ही कुछ बढ़िया संचार के साथ है। अब लड़ाई के मैदान में ऐप, फुर्तीली कमान संरचना, ने भी यूक्रेन में बड़ी भूमिका निभाई है। एक नाटो अधिकारी का कहना है कि दूसरे देश इस तरह के बदलावों से अपने लिए सबक ले रहे हैं। नाटो के रक्षा मंत्रियों ने भी अब हवाई रक्षा, गहरी मारक क्षमताओं और भारी बल के साथ डिजिटल आधुनिकीकरण को बढाने पर काम करने का फैसला किया है।
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बढ़ती असुरक्षा
हकीकत यह है कि जहां कई देशों में असुरक्षा का भाव बढ़ रहा है, जैसे फिनलैंड और स्वीडन ने दशकों पुरानी तटस्थता को त्याग दिया है, वहीं रक्षा कंपनियां भी युद्ध पर निगाह जमाए हुए हैं और अपने उत्पादों को उन्नत तो कर ही रही हैं, बल्कि नए हालतों के मुताबिक नए हथियारों को विकसित करने में लग गए हैं। इस मामले मे यूरोपीय कंपनियां भी पीछे नहीं हैं। पिछले कई दशकों में जहां यूरोपीय देशों के जमीनी हथियार कम हो गए थे। लेकिन एक साल में हालात बदलते जा रहे हैं।
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अब यूरोपीय देश भी तेजी से रक्षा बजट बढ़ा रहे हैं। आंकलनों में साफ बताया जा रहा है कि युद्ध की नौबत आने पर उनके हथियार कितनी जल्दी खत्म हो जाएगे। एक तरफ यूक्रेन को मदद भेजने की जरूरत और खुद के रक्षा को भी बढ़ाना है दूसरी तरफ चीन की इस युद्ध पर गहरी नजर है और वह अपने लिए जरूरी सबक ले रहा है जो ताइवान के मामले में काम आ सकते हैं। वहीं भारत की भी जरूरतें चीन के लिहाज से बढ़ रही है जिसमें आत्मनिर्भरता एक प्रमुख तत्व है।
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