चीन आखिर क्यों पाकिस्तान के दुश्मन तालिबान को देने जा रहा है खतरनाक 'ब्लोफिश' ड्रोन

 
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चीन अब पाकिस्तान के दुश्मन बन चुके तालिबान को अपना एक खतनाक ड्रोन देने जा रहा है। ये हथियार उस इलाके लिए बड़ा खतरा बन सकता है।

नई दिल्ली। चीन एशिया की बादशाहत चाहता है। इसके लिए वह रोज नई चालें-चालें चलता है। चीन भारत के खिलाफ पाकिस्तान का इस्तेमाल करता रहा है, लेकिन अब पाकिस्तान के कट्टर दुश्मन बन चुके अफगानिस्तान को एक खतरनाक ड्रोन दे सकता है। अफगानिस्तान में अभी तालिबान का शासन है।

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न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक तालिबान अपने खजाने का बड़ा फंड इन ड्रोन को खरीदने में लगाने की तैयारी कर रहा है। दूसरी ओर अगर चीन ये ड्रोन तालिबानों को देता है तो इसके पीछे अफगानिस्तान में भारत का बढ़ता प्रभाव भी हो सकता है। लेकिन उसका ये कदम पाकिस्तान के लिए भी खतरा साबित हो सकता है। हालांकि अफगानिस्तान की सत्ता में काबिज में तालिबान का कहना है कि इन ड्रोन का इस्तेमाल इस्लामिक स्टेट से निपटने के लिए किया जाएगा।

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पाकिस्तान- अफगानिस्तान के बीच तनाव क्यों है
1- आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान के पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तूनख़्वा और बलूचिस्तान में बढ़ते हमले इसकी एक बड़ी वजह है। इस बारे में पाकिस्तान का कहना है कि अफ़ग़ान को तालिबान या किसी भी देश को को किसी अन्य सशस्त्र संगठन को अपनी ज़मीन का इस्तेमाल करने नहीं देना चाहिए। जबकि अफ़ग़ानिस्तान का इन हमलों के बारे में कहना है कि पाकिस्तान में होने वाली ये घटनाएं वहां की आंतरिक समस्या है जिससे अफगानिस्तान का कोई संबंध नहीं है। 

पाकिस्तान में हिंसा की बढ़ती घटनाओं के बाद कुछ दिनों पहले ही कोर कमांडर कॉन्फ़्रेंस में इस बारे में विचार किया गया, इसके अलावा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व में राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक में भी अन्य मामलों के साथ-साथ देश में सुरक्षा की स्थिति पर भी महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए।

2- चमन-स्पिन बोल्डक क्रॉसिंग के पास शेख लाल मोहम्मद सेक्टर में एक बैरक की मरम्मत चल रही थी। अफगान सैनिक इसे रोकना चाहते थे। न रोक पाने पर उन्होंने पाकिस्तानी सैनिकों पर गोली चला दी। इसके जवाब में पाकिस्तान की ओर से भी  जवाबी फायरिंग हुई। इस गोलीबारी ने दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण स्थिति पैदा कर दी।

3-अफगानिस्तान डूरंड लाइन को सरहद नहीं मानता।  राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार के दौरान यह सीमा विवाद शांत था और दोनों देशों के बीच युद्ध जैसी स्थितियां नहीं थीं पर अगस्त 2021 में तालिबानियों ने सत्ता संभाल ली और दोनों देशों के बीच संघर्ष बढ़ गया। ब्रिटिश सरकार ने साल 1893 में अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच 2640 किलोमीटर की रेखा खींची जिसे अफगानिस्तान नहीं मानता है। 

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चीन-पाकिस्तान के रिश्ते
1-चीन और पाकिस्तान के बीच संबंध 1970 और 80 के दशक में विकसित हुए। परमाणु सहयोग प्रमुख स्तंभों में से एक था, खासकर भारत द्वारा 1974 में अपने परमाणु  परीक्षण करने के बाद। चीन ने पाकिस्तान को उसकी परमाणु ऊर्जा तकनीक विकसित करने में मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सितंबर 1986 में, दोनों देशों के बीच असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण की सुविधा के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। 
1991 में, चीन पाकिस्तान को अपने स्वदेशी रूप से विकसित किनशान-1 परमाणु ऊर्जा संयंत्र की आपूर्ति करने के लिए सहमत हो गया। 1998 में भारत द्वारा अपने परमाणु उपकरण का परीक्षण करने के बाद , पाकिस्तान ने भी परीक्षण किया और यह चीन की मदद के कारण ही यह संभव हो सका।

2- चीन-पाकिस्तान के सैन्य और सामरिक संबंध लगातार गहरे होते जा रहे हैं। हाल ही में, पाकिस्तानी सेना ने चीनी निर्मित VT-4 युद्धक टैंकों के अपने पहले बैच को शामिल किया। चीनी राज्य के स्वामित्व वाली रक्षा निर्माता, नोरिनको द्वारा निर्मित VT-4 टैंक, अप्रैल 2020 से पाकिस्तान को आपूर्ति की गई थी। थाईलैंड और नाइजीरिया के बाद VT-4 टैंक खरीदने वाला पाकिस्तान तीसरा देश है।  पाकिस्तानी सेना ने कहा है कि "वीटी-4 दुनिया के किसी भी आधुनिक टैंक को टक्कर दे सकता है।
 
3- चीन-पाकिस्तान रक्षा व्यापार नया नहीं है , चीनी रक्षा मंत्री जनरल वेई फेंग्शे ने नवंबर 2020 के अंत में इस्लामाबाद का दौरा किया और दोनों देशों ने चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और पाकिस्तानी सेना के बीच रक्षा सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। चीनी रक्षा मंत्रालय ने वेई को "मिल-टू-मिलिट्री रिलेशनशिप को उच्च स्तर पर पहुंचाने की इच्छा के साथ यह समझौता किया गया, ताकि संयुक्त रूप से विभिन्न जोखिमों और चुनौतियों का सामना किया जा सके साथ ही चीन की संप्रभुता और सुरक्षा हितों की मजबूती से रक्षा की जा सके।

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चीन का ड्रोन पाकिस्तान के लिए खतरा कैसे
एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी रक्षा विभाग ने पहले ही आशंका व्यक्त की है कि मध्य पूर्व को निर्यात की जाने वाला ब्लोफिश गलत हाथों में पहुंच सकता है। इस रिपोर्ट में कहा गया कि अल कायदा के साथ तालिबान के संबंधों को देखते हुए, संयुक्त राज्य अमेरिका को चीन के बयान से मूर्ख नहीं बनना चाहिए कि तालिबान के आतंकवाद-विरोध में मदद के लिए इस ड्रोन की आवश्यकता है। इस ड्रोन की वजह से तालिबान की सामरिक शक्ति कई गुना बढ़ जाएगी जिसे वह पाकिस्तान के विरुद्ध इस्तेमाल कर सकता है।  

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कितना खतरनाक है ये ड्रोन, कैसे होता है इस्तेमाल
ब्लोफिश ड्रोन एक मिनी हेलीकॉप्टर है जो मशीन गन दागने के साथ ही, मोर्टार लॉन्च करने और ग्रेनेड फेंकने जैसे काम कर सकता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ड्रोन को यह निर्धारित करने की क्षमता प्रदान करता है कि कम मानव संसाधन के साथ युद्ध के मैदान में जीत हासिल की जा सके।

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