यूक्रेन युद्ध नया मोड़ लेने वाला है, US के चलते फंस गया रूस? भारत ने ऐसे की मदद

 
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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को कहा कि भारत ने यूक्रेन के जापोरिज्जिया परमाणु संयंत्र के आसपास स्थिति सामान्य बनाने का प्रयास किया और मास्को एवं कीव के बीच खाद्यान्न समझौते में मदद की।

 

कीव। पिछले 10 महीने से भी ज्यादा समय से जारी यूक्रेन युद्ध अब नया मोड़ लेने वाला है। इसकी वजह यूक्रेन को अमेरिका द्वारा दी गई ताजा मदद बताई जा रही है। दरअसल अमेरिका ने हाल ही में यूक्रेन को अपनी एल्गोरिथम हथियार प्रणाली उपलब्ध कराई थी जो रूस के लिए मुसीबत बनी हुई है। रूसी मिसाइलें अब हवा में ही मार गिराई जा रही हैं। इस प्रणाली की तैनाती के कारण यूक्रेन युद्ध रूस के खिलाफ बड़ा मोड़ लेने के लिए तैयार है। विशेषज्ञों की मानें तो अब यूक्रेन भी रूस में हमले कर सकता है। फिलहाल युद्ध के समाप्त होने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। इसको लेकर पूरे यूरोप में खाद्य और ऊर्जा को लेकर चिंता बनी हुई है। वहीं दूसरी ओर चीन हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपना कद बढ़ा रहा है जो नए संकट को जन्म दे सकता है। 

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अब रूस पर हमले कर सकता है यूक्रेन
विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर की साइप्रस और ऑस्ट्रिया की सप्ताह भर की यात्रा के दौरान भी यूक्रेन मुद्दा खूब उछला। यात्रा के दौरान यह स्पष्ट हो गया कि यूक्रेन अब रूसी हमले को उलटने में सक्षम है। हालांकि यूक्रेन से मिल रही कड़ी टक्कर के बीच रूस खामोश नहीं बैठने वाला है। रूस अब यूक्रेन के कब्जे में लिए गए क्षेत्र डोनबास और लुहांस्क को बचाने के लिए बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई शुरू कर सकता है। अमेरिकी एल्गोरिथम स्टैंड-ऑफ हथियार प्रणालियों और लंबी दूरी की आर्टिलरी गन की निरंतर आपूर्ति के कारण रूस फंसता नजर आ रहा है। एक संभावना है कि यूक्रेन मौजूदा युद्ध को रूसी क्षेत्र में भी ले जा सकता है। जिससे राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। खुद रूस का कहना है कि उसके नियंत्रण वाले दोनेत्स्क क्षेत्र में हुए यूक्रेन के रॉकेट हमले में उसके 63 सैनिक मारे गए। 

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यूरोपीय देश हुए परेशान
अपनी यात्रा के दौरान, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने वियना में IAEA के DG राफेल गोसी के अलावा साइप्रस, ऑस्ट्रियाई लीडरशिप, बल्गेरियाई राष्ट्रपति, चेक और स्लोवाक के विदेश मंत्रियों से भी मुलाकात की। यह समझा जाता है कि पूर्वी यूरोपीय लीडरशिप के साथ उनकी बातचीत के दौरान, यह काफी स्पष्ट था कि यूक्रेन युद्ध जारी रह सकता है और यूरोप में इसको लेकर अस्थिरता बढ़ती जा रही है। 

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यूरोपीय देशों के नेताओं से जयशंकर की बातचीत
इस दौरान यह पता चला है कि साइप्रस, ऑस्ट्रिया, चेक और स्लोवाक के विदेश मंत्रियों ने जयशंकर के साथ बातचीत के दौरान यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख को बखूबी समझा है। साथ ही 3488 किमी लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीनी PLA से अपने क्षेत्र की रक्षा करने में भारत की मजबूत दृढ़ता की भी सराहना की। साथ यूरोपीय विदेश मंत्रियों ने माना कि पिछले सात दशकों में रूस के साथ भारत के पुराने संबंध रहे हैं। इन संबंधों को यूक्रेन पर आक्रमण के कारण मामूली समय में खत्म नहीं किया जा सकता है। 

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यूरोपीय विदेश मंत्रियों ने समझा भारत का रुख
तथ्य यह है कि 60-70 प्रतिशत से अधिक भारतीय हथियार हार्डवेयर और गोला-बारूद रूसी मूल के हैं। दोनों देशों के बीच पिछले दशकों से घनिष्ठ संबंध रहे हैं। ये संबंध ऐसे समय में थे जब पश्चिमी देशों ने अमेरिका के नेतृत्व में भारत के पश्चिमी और उत्तरी विरोधी पाकिस्तान पर अपना दांव लगाने का फैसला किया था। सीमा पार आतंकवाद को देखते हुए भारत पाकिस्तान से और उत्तर में चीन से क्षेत्रीय खतरे का सामना कर रहा है। इसलिए भारत के पास अपनी विरासत को जारी रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि हथियार प्रणालियों को एक दिन में नहीं बदला जाता है बल्कि इसमें दशकों लगते हैं।

निकोसिया और वियना में राजनयिकों के अनुसार, एस जयशंकर के समकक्षों और वरिष्ठ नेतृत्व ने नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था का विस्तार करने के साथ-साथ कोविड वैश्विक महामारी से लड़ने के लिए भी उनकी तारीफ की है। उन्होंने न केवल अपनी आबादी का टीकाकरण करने बल्कि दुनिया के प्रभावित देशों को टीके प्रदान करने के लिए उठाए गए कदमों की भी सराहना की। 

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भारत ने ऐसे की मदद
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को कहा कि भारत ने यूक्रेन के जापोरिज्जिया परमाणु संयंत्र के आसपास स्थिति सामान्य बनाने का प्रयास किया और मास्को एवं कीव के बीच खाद्यान्न समझौते में मदद की। आस्ट्रिया के ‘डाई प्रेस’ को दिए साक्षात्कार में जयशंकर ने यूक्रेन संकट के बारे में एक सवाल के जवाब में स्थिति को सामान्य बनाने में योगदान देने की तैयारी का संकेत दिया। रूस से भारत द्वारा सस्ती दर पर ऊर्जा खरीद से जुड़े सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वह इस बात को राजनीतिक रूप से और गणितीय रूप से भी खारिज करते हैं कि भारत युद्ध का फयदा उठा रहा है। उन्होंने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण तेल की कीमतें दोगुनी हो गई हैं तथा तेल बाजार पर ईरान पर लगे प्रतिबंध और वेनेजुएला में होने वाले घटनाक्रमों का भी असर पड़ता है।

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