पाकिस्तान कर्ज के जाल में, क्या इंसानों की तरह देश भी होते हैं दिवालिया, क्या होता है उनके साथ?

 
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पाकिस्तान से आर्थिक बदहाली की अलग-अलग तस्वीरें आ रही हैं। चर्चा है कि रसोई गैस महंगी होने के कारण लोग प्लास्टिक की थैलियों में जरूरत के हिसाब से गैस ले रहे हैं। हाल ही में पाक ने विदेशों में स्थित अपनी आलीशान इमारतों को बेचने की बात की। तो क्या वो दिवालिया होने की तरफ जा रहा है! अगर ऐसा हो तो क्या होगा!

 

नई दिल्ली। कोरोना ने वैसे तो लगभग सभी देशों की इकनॉमी पर असर डाला लेकिन पाकिस्तान की हालत अलग ही चरमराई हुई है। वहां की एक तस्वीर चर्चा में है, जिसमें पुलिस भर्ती का एग्जाम देने आए उम्मीदवार जमीन पर बैठे हुए हैं। इसके साथ ही पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली की तस्वीर और साफ हो गई। कुछ वक्त पहले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) तक ने कर्ज देने से पहले जमकर हड़काया कि उसे अपने खर्चों पर कंट्रोल करने की जरूरत है। कर्ज में गले-गले तक डूबा ये देश अगर जल्द ही आर्थिक तंगी से न उबरा तो शायद दिवालिया हो जाए। लोग या कंपनियां तो खुद को दिवालिया घोषित कर पाती हैं, लेकिन क्या होगा अगर देश भी दिवालिया हो जाए!

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क्यों पाकिस्तान की गरीबी चर्चा में?
खस्ताहाल पाकिस्तान की अपनी ही मीडिया उसकी पोल खोल रही है। वहां के अखबार डॉन के मुताबिक, मार्च 2022 तक पाकिस्तान का कुल कर्ज लगभग 43 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपए हो चुका था। इसमें सबसे ज्यादा लेनदारी इमरान खान के कार्यकाल में रही। उन्होंने 3 ही साल में अपनी जनता पर रोज लगभग 1400 करोड़ रुपए का कर्ज डाला। कुल मिलाकर पाकिस्तान की इकनॉमी अपने सबसे बुरे दौर में है। माना जा रहा है कि अगर जल्द ही वो इससे नहीं उबरा तो कर्ज से छुटकारा पाने की निकट भविष्य में संभावनाएं बहुत कम हो जाएंगी।

pakistan economic crisis 2022-2023

फिलहाल जब दुनिया में एक बार फिर कोरोना और तीसरे वर्ल्ड वॉर का डर सुगबुगा रहा है, ऐसे में इकनॉमिक कमजोरी बैंकरप्ट भी कर सकती है। 

देश भी दिवालिया होते हैं और कई देश तो कई-कई बार खुद को दिवालिया घोषित कर चुके। माना जाता है कि 377 ईसा पूर्व भी ग्रीस कर्ज में डूब गया था। उस समय के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं लेकिन दिसंबर 1893 में जब ग्रीस के तत्कालीन प्रधानमंत्री केरिलाओस ट्राइकोपिस ने कहा था- "दुर्भाग्य से हम दिवालिया हो चुके", तो ये छोटा-सा वाक्य दुनिया में गूंज उठा।

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ये पहली बार घोषित तौर पर ग्रीस दिवालिया हुआ। दूसरे विश्व युद्ध से ठीक पहले साल 1932 में ये देश एक बार फिर दिवालिया हुआ। साल 2007-08 में जब दुनिया में आर्थिक मंदी आई थी, यहां वापस से दिवालिया होने की नौबत आ गई। इसकी वजह ये थी कि साल 2004 के ओलिंपिक के दौरान इसने तैयारियों में जमकर पैसे उड़ाए थे। राजकोष में कमी आ गई लेकिन डरे हुए ग्रीस ने यूरोपियन यूनियन को खबर नहीं की। 

पता लगने के बाद भी कर्ज देने वालों ने ग्रीस की सरकार को कैद में नहीं डाल दिया, न ही देश को गुलाम बना लिया। हालांकि कंपनी या किसी शख्स के दिवालिया होने पर ये होता है। उसकी संपत्ति नीलाम कर दी जाती है और उससे आए पैसों को बड़े कर्जदाता आपस में बंटवारा कर लेते हैं। वहीं देश दिवालिया हो जाए तो ये होता है कि विदेशों में मौजूद उसकी प्रॉपर्टी की बोली लगाई जाती है, वो भी उसकी सहमति से, ताकि नुकसान की थोड़ी-बहुत भरपाई हो सके।

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लेकिन कोई भी देश भला अपनी प्रॉपर्टी की नीलामी के लिए सहमति क्यों देगा!
इसकी भी वजह है। कर्ज में डूबे देश के पास कर्जदाताओं की कमी हो जाती है। उसे लोन डिफॉल्टर मान लिया जाता है। यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष भी उसे हाथ खोलकर पैसे नहीं देता क्योंकि डर रहता है कि वो पैसों की भरपाई नहीं कर सकेगा। ऐसे में देश के पास खास विकल्प नहीं रहता, सिवाय मुद्रा कोष की बात मानने के। जैसे 2012 में डिफॉल्टर होने के बाद अर्जेंटिना की नेवी शिप, जो घाना में थी, उसे सीज कर लिया गया।

हाल में पाकिस्तान भी अमेरिका और लंदन में स्थित अपनी डिप्लोमेटिक इमारतें और आलीशान होटल बेचने की बात कर रहा है। यहां तक कि उसके खरीददार भी सामने आ रहे हैं। प्रेशर सेलिंग के बाद आए पैसों से वो कर्ज चुका सकता है। कुछ समय पहले वेनेजुएला, श्रीलंका, इक्वाडोर और स्पेन भी बैंकरप्ट हो चुके। वेनेजुएला में हालात ऐसे थे कि वहां एक ब्रेड के पैकेट की कीमत सैकड़ों रुपए पहुंच गई थी। फिलहाल वहां स्थिति पहले से कुछ बेहतर है। 

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क्या होता है अगर देश दिवालिया हो जाए!
अगर देश कह रहा है कि उसके मुद्रा कोष में पैसे नहीं, तो कोई भी देश या संस्थान उसे पैसे उगाही के लिए धमका नहीं सकता, जैसा अक्सर आम लोगों के मामले में होता है। हालांकि डिफॉल्टर होने के बाद किसी भी देश में राजनैतिक अस्थिरता आना तय है। साथ ही बेरोजगारी और महंगाई बेहद तेजी से बढ़ती है। लोग घरेलू बैकों से अपने पैसे निकालकर किसी सुरक्षित देश की तरफ भागने की सोचने लगते हैं। ऐसे में सरकार तय कर देती है कि बैंकों से निश्चित रकम ही निकाली जा सके ताकि वे पैसों से खाली न हो जाएं। 

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सबसे पहले बैंकों पर कसती है नकेल
साल 2015 में ग्रीस ने पूरे 20 दिन के लिए बैंक बंद कर दिए थे। यहां तक कि बैंक ट्रांसफर तक बंद करा दिया था। तब लोग रोज 50 डॉलर से ज्यादा रुपए नहीं निकाल सकते थे। ये सब इसलिए कि बैंकों के पास पैसा बना रहे। लेकिन सबसे ज्यादा असर देश के क्रेडिट पर पड़ता है। लोग उसे पैसे देने से कतराने लगते हैं। ये ठीक वैसा ही है, जैसा किसी से बार-बार पैसे लेने के बाद आप उसे चुका न सकें, और फिर आपको कर्ज मिलना बंद हो जाए। हालांकि फिलहाल पाकिस्तान के साथ ऐसा मामला नहीं दिखता। उसे कर्ज मिल रहा है और कर्ज से उबरने के लिए वो बराबर कोशिश भी कर रहा है।

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वैसे जाते-जाते एक बात साफ कर दें कि बोलने-कहने में भले ही देश खुद को दिवालिया कह दें लेकिन लिखित में कोई भी देश दिवालिया नहीं माना जाता। ऐसा इसलिए है कि उसके दोबारा उबरने की उम्मीद हमेशा रहती है, खासकर जब तक युवा आबादी और व्यवसायी बाकी हैं। कर्ज न चुका पाने की स्थिति में लिखित तौर पर देश को डिफॉल्टर जरूर कहा जाता है ताकि कर्जदाता देश अपने खतरे पर उसके साथ सौदा करें। 

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