कंगाली में आटा गीला... यह बात पाकिस्तान के लिए बिल्कुल सच हो गई 

 
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Pakistan Economy Crisis : वर्ल्ड बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि पाकिस्तान साउथ एशिया की सबसे कमजोर इकनॉमी है। पाकिस्तान के पास अब तीन हफ्तों के आयात के बराबर ही विदेशी मुद्रा भंडार बचा है। पाकिस्तान में आटे का भी बड़ा संकट है। इस देश के पास बाहर से आटा मंगाने के लिए भी पैसे कम पड़ रहे हैं।

 

नई दिल्ली। 'कंगाली में आटा गीला...' यह कहावत आपने खूब सुनी होगी। यह बात पाकिस्तान के लिए सच साबित हो गई है।पाकिस्तान (Pakistan) की माली हालत किसी से छुपी नहीं हैं। भारी भरकम कर्ज और लगभग खत्म हो रहे विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves) ने इस देश की इकनॉमी को जर्जर बना दिया है। ऊपर से बाढ़ ने इस देश की खेती को बर्बाद कर दिया। अब लोग रोटी को तरस रहे हैं। हालात यह हैं कि बाहर से आटा मंगाने के लिए भी पैसे कम पड़ रहे हैं।

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अब वर्ल्ड बैंक (World Bank) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान साउथ एशिया की सबसे कमजोर अर्थव्यवस्था है। इस देश को अब गरीबी से बाहर निकलने के लिए काफी कठिन प्रयास करने होंगे। प्राकृतिक आपदा, फूड शॉर्टेज और गरीब से पाकिस्तान की इस समय बुरी हालत है। पाकिस्तान में पिछले साल जुलाई में भयंकर बाढ़ आई थी। इस बाढ़ से बड़े पैमाने पर खेत तबाह हो गए थे। वहीं, इस देश का विदेशी मुद्रा भंडार 4.6 अरब डॉलर के नए निचले स्तर पर आ गया है। यह सिर्फ तीन हफ्ते के आयात के लायक पैसा है। विश्लेषकों का कहना है कि पाकिस्तान को इस मुसीबत से तत्काल राहत के लिए 33 अरब डॉलर की जरूरत है।

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कुछ देश मदद को आगे आए
दुनिया के कुछ देश अब पाकिस्तान की मदद करने को आगे आए हैं। संयुक्त राष्ट्र महासचिव के हस्तक्षेप के बाद बेहतर स्थिति वाले देश करीब 10 अरब यूएस डॉलर की उदार प्रतिबद्धताओं के साथ आगे आए हैं। इस्लाम खबर की एक रिपोर्ट के अनुसार, आपात स्थिति को भांपते हुए सऊदी अरब और यूएई सहित कुछ मित्र देशों ने इस महीने चार अरब डॉलर दिए है। इस समय दुनियाभर में मंदी को लेकर चिंताएं हैं। वर्ल्ड बैंक ने 13 जनवरी को अनुमान जताया था कि पाकिस्तान की इकनॉमी ग्रोथ इस साल धीमी होकर 2 फीसदी पर आ सकती है। यह जून 2022 में वर्ल्ड बैंक के अनुमान से 2 फीसदी कम है।

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बाढ़ का असर अब तक जारी
पाकिस्तान में बाढ़ को छह महीने बीत चुके हैं। लेकिन डॉन के ऑन-लैंड ट्रैवलर एसएफ ऐजादुद्दीन लिखते हैं कि अभी भी कई जगहों पर पानी भरा है। वाटर मैनेजमेंट या नए सिरे से खेती के कोई संकेत नहीं हैं। बाढ़ के कुछ समय बात तक तो यह समझ में आता है। लेकिन 6 महीने बीत चुके हैं और अब खाने की भारी किल्लत हो गई है।

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आटे की भारी कमी
कल्पना कीजिए कि गेहूं उगाने वाली दुनिया की सबसे सिंचित और उपजाऊ भूमि वाले देश में आटे की कमी है और इसे आयात करने के लिए उसके पास पैसे तक नहीं हैं। मार्केट रिपोर्ट कहती है कि 20 किलो आटे का 1200 पाकिस्तानी रुपये का बैग 3,000 पाकिस्तानी रुपये तक पहुंच गया है।

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ओवरवैल्यूड किया हुआ है पाकिस्तानी रुपया
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ बातचीत लंबी खिंचने से पाकिस्तानी रुपया तीन महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया है। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून (12 जनवरी, 2023) ने एक करेंसी एक्सचेंज एक्सपर्ट के हवाले से लिखा, 'पाकिस्तानी रुपये की सही वैल्यू वह है जो ब्लैक मार्केट में 260-270 रुपये प्रति डॉलर है। सरकार ने कृत्रिम रूप से करेंसी को ओवरवैल्यूड रखा हुआ है। आईएमएफ को शर्तों को पूरा करने के लिए ऐसा किया जा रहा है।' ..एक रिपोर्ट में इस्लाम खबर ने कहा कि पाकिस्तान के गिरते आर्थिक उत्पादन से क्षेत्रीय विकास दर भी नीचे आ रही है। इसने 2024 में पाकिस्तान की जीडीपी विकास दर 3.2 प्रतिशत होने का अनुमान लगाया है, जो पहले के 4.2 फीसदी के अनुमान से कम है।

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क्लाइमेट के बहाने मांगी जा रही मदद
नया बहना क्लाइमेट चेंज है, जैसे कि इससे केवल पाकिस्तान ही इससे प्रभावित है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का कहना है कि देश को जलवायु परिवर्तन का सामना करने की अपनी क्षमता में सुधार और पुनर्निर्माण के शुरुआती प्रयासों के लिए अगले तीन वर्षों में 16.3 अरब डालर की आवश्यकता होगी। शरीफ ने पहले इमरान खान को 'भीख' के लिए ताने दिए थे। अब खान भी शरीफ की इसी शब्द के साथ आलोचना कर रहे हैं। कुल मिलाकर बात यह है कि 'भीख' जारी है, चाहे पाकिस्तान में किसी का भी शासन हो। लेकिन देश गिलगित-बाल्टिस्तान में हिमालय को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे से हुए नुकसान को स्वीकार करने में विफल रहा है।

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कृषि आपातकाल की मांग
सपोर्ट प्राइस की घोषणा में देरी के कारण किसान गेहूं के रकबे को बढ़ाने के लिए अनिच्छुक हैं। वे उर्वरक की कमी और कमजोर फसल संभावना के कारण "कृषि-आपातकाल" की मांग कर रहे हैं। पाकिस्तान किसान इत्तेहाद (PKI) के अध्यक्ष खालिद महमूद खोखर ने कहा कि घरेलू गेहूं उत्पादन को बढ़ावा देने के बजाय, सरकार अन्य देशों के किसानों से उच्च कीमतों पर कमोडिटी खरीदकर उनका समर्थन कर रही है।

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