Economic Crisis: पाकिस्तान पर नहीं दुनिया के इस मुल्क़ पर है सबसे ज्यादा कर्ज, 9.2 ट्रिलियन डॉलर कर्ज के बाद भी कैसे टिका है ये देश

Japan Debt: जापान (Japan) पर भारी कर्ज होने के पीछे सबसे बड़ा कारण ये है कि अपनी अर्थव्यस्था (Economy) में गति बनाए रखने के लिए देश में सालों तक घरेलू खर्चे में अधिक पैसा लगाया गया।
नई दिल्ली। Japanese Economy: दुनियाभर में कोविड-19 महामारी का असर कई देशों पर पड़ा, लेकिन अब स्थिति में सुधार है। जापान में पिछले साल जीडीपी ने जनवरी-मार्च और जुलाई-सितंबर तिमाहियों में नकारात्मक वृद्धि दर्ज की थी, लेकिन अप्रैल-जून में पिछली तिमाही के मुकाबले सालाना 4.5 फीसदी का इजाफा हुआ। पाकिस्तान, श्रीलंका समेत कई देशों के कर्ज की चर्चा होती रही है लेकिन ये भी सच है कि जापान पर भी भारी कर्ज है। पिछले साल सितंबर के आखिरी दिनों में जापान (Japan) के ऊपर कर्ज की राशि 9.2 ट्रिलियन डॉलर थी। ये राशि उसके जीडीपी से 266 फीसदी ज्यादा है।
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अगर दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत अमेरिका के ऊपर कर्ज की राशि की बात करें तो पता चलता है कि ये करीब 31 ट्रिलियन डॉलर है। हालांकि अमेरिका के लिए बड़ी राहत की बात है कि ये राशि देश की जीडीपी (GDP) का करीब 98 फीसदी ही है।
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जापान पर भारी कर्ज
जापान पर भारी कर्ज होने के पीछे सबसे बड़ा कारण ये है कि अपनी अर्थव्यस्था में गति बनाए रखने के लिए देश में सालों तक घरेलू खर्चे में अधिक पैसा लगाया। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 'पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकॉनोमिक्स' के सीनियर फेलो ताकेशी ताशीरो की मानें तो जापान में लोग अधिक बचाते हैं, जबकि निवेश कम है। इसलिए यहां डिमांड बहुत ही कमजोर है। ऐसे में सरकार की ओर से 'आर्थिक प्रोत्साहन' की आवश्यकता महसूस होती है।
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स्वास्थ्य पर अधिक खर्च
ताकेशी ताशीरो के मुताबिक इस समस्या की एक बड़ी वजह जापान में जनसंख्या की स्थिति भी है। जापान के लोग अधिक उम्र तक जीने की चाह रखते हैं। ऐसे में सोशल सेक्योरिटी और स्वास्थ्य पर अधिक खर्च होता है। ऐसा माना जाता है कि जापान में लोग भविष्य को लेकर अधिक आशंकित रहते हैं और बचत पर ज्यादा जोर देते हैं।
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कर्ज में डूबे होने के बाद टिका है देश
दुनिया में सबसे अधिक जापान कर्ज में डूबा हुआ है लेकिन दिलचस्प बात ये है कि विदेशी निवेशकों का विश्वास भी तगड़ा होने से अर्थव्यवस्था टिकी हुई है। जापान पर ऋण का बोझ 1990 के दशक में बढ़ना शुरू हुआ था। बताया जाता है कि इस दौरान वित्तीय और रियल एस्टेट कारोबार की स्थिति पर काफी निराशाजनक रही। आंकड़ों के मुताबिक साल 1991 में जीडीपी (GDP) और कर्ज अनुपात 39 फीसदी ही था। इसके बाद देश की इकॉनमी में गिरावट आती गई।
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खर्च बढ़ाने की मजबूरी
अर्थव्यवस्था में गिरावट से जापान सरकार के पास आय कम होती गई और खर्च बढ़ाने की मजबूरी दिखी। साल 2000 तक जापान का कर्ज उसकी जीडीपी के करीब-करीब बराबर हो गया। साल 2010 में कर्ज की राशि जीडीपी से करीब दोगुना हो गई। साल 2011 में भूकंप और सुनामी का गंभीर असर पड़ा। उसके बाद हाल में कोरोना महामारी से भी अर्थव्यवस्था काफी प्रभावित हुई। ऐसे में आर्थिक प्रोत्साहन की जरूरत हुई।
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जापान को कैसे मिलता रहा कर्ज
आर्थिक मंदी की स्थिति से लेकर कोरोना महामारी (Corona Pandemic) के बीच शिक्षा, हेल्थ और डिफेंस के मामलों में जरूरी खर्च को पूरा करने के लिए बॉन्ड्स को बेचा गया ताकि इन क्षेत्रों में खर्च को पूरा किया जा सके। जापान के कर्ज मिलने के पीछे एक बड़ी वजह ये रही कि देश कभी डिफॉल्टर साबित नहीं हुआ। दूसरा ये कि बेहद ही कम ब्याज पर सरकारी बॉन्ड के जरिए कर्ज मिला।
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