चीन की अफगानिस्तान की धरती में छिपे खरबों के खजाने पर नजर, तालिबान के साथ Oil डील के बहाने हथियाने की तैयारी

अफगानिस्तान की धरती से अमेरिकी फौजें वापस क्या गईं, चीन ने मौका लपक लिया। चीन अब अफगानिस्तान की धरती में छिपे बेशकीमती धातुओं को निकालने की तरकीब निकाल रही है। चीन ने इसकी शुरुआत अमू दरिया के बेसिन से तेल निकालने से शुरू की है। अफगानिस्तान की धरती में रणनीतिक और सामरिक दृष्टि से अहम रेयर अर्थ एलिमेंट का बड़ा भंडार है। चीन पर इसकी नजर है।
नई दिल्ली। चीन और अफगानिस्तान पार्टनरशिप के नए रास्ते पर चल पड़े हैं। चीन की कंपनी सेंट्रल एशिया पेट्रोलियम एंड गैस कंपनी (CAPEIC) ने तालिबान की अगुवाई वाली अफगानिस्तान सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है। 5 जनवरी को अफगानिस्तान के कार्यकारी माइंस और पेट्रोलियम मंत्री शेख शहाबुद्दीन दिलावर ने डील की घोषणा करते हुए कहा कि चीन की कंपनी अमू दरिया के बेसिन से तेल निकालेगी। अमू दरिया अफगानिस्तान के उत्तरी हिस्से में है।
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तालिबान द्वारा संचालित प्रशासन के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने इस एलायंस की जानकारी देते हुए कहा कि चीन की कंपनी CPEIC एक साल में 150 मिलियन डॉलर का निवेश करेगी और 3 साल में ये निवेश बढ़कर 540 मिलियन डॉलर हो जाएगा। इस साझेदारी में तालिबान प्रशासन 20 फीसदी का हिस्सेदार है। लेकिन भविष्य में उसकी साझेदारी बढ़कर 75 फीसदी हो जाएगी।
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आकलन के अनुसार तेल के अलावा अफगानिस्तान के पास 1 से 3 ट्रिलियन डॉलर का रेयर अर्थ (Rare Earth) और दूसरे धातु का रिजर्व है। वाशिंगटन डीसी में स्थित अफगानिस्तान के दूतावास में एक पूर्व राजदूत अहमद शाह ने कहा कि अफगानिस्तान के पास रेयर अर्थ मैटेरियल जैसे कि लैन्थनम, सीरियम और नियोडियम का भंडार है। इसके अलावा अफगानिस्तान की जमीन में अल्युमीनियम, सोना, चांदी, जिंक, पारा और लिथियम जैसे धातु भी छिपे हैं। अफगानिस्तान में किसी प्रतिद्वंदी के अभाव में चीन की कंपनी या बेरोकटोक इन कीमती धातुओं का उत्खनन कर सकती है।
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Rare Earth Element आखिर है क्या?
रेयर अर्थ बेहद कम मात्रा में पाए जाने वाले और अत्यधिक मूल्यवान धातु होते हैं। इन की कम मात्रा की वजह से ही इन्हें रेयर अर्थ कहा जाता है। यूनाइटेड स्टेट्स जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार, रेयर अर्थ के वैश्विक बाजार में चीन का दबदबा है। यह अनुमान लगाया गया है कि चीन दुनिया के रेयर अर्थ भंडार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा रखता है, चीन इसका सबसे बड़ा उत्पादक और सप्लायर भी है। इन धातुओं का उपयोग अलग अलग हाई टेक उद्योगों जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा और नवीकरणीय ऊर्जा में किया जा रहा है।
हालांकि चीन को धीरे धीरे रेयर अर्थ एलिमेंट को हासिल करने में दूसरे देशों से टक्कर मिल रही है। इसलिए चीन अफगानिस्तान समेत कई देशों में Rare Earth Element (REE) के नए स्रोत खोज रहा है।
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चिप हो या ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री, एयरक्राफ्ट हो या सैटेलाइट REE है अहम
Rare Earth Element की उपयोगिता बताते हुए अमेरिकी फॉरेंसिक इंजीनियर सीन पी ड्यूडले बताते हैं, "एक सेल फोन में एक ग्रााम Rare Earth Element होता है। अगर सब कुछ रहा तो आपको एक सेल में एक ग्राम रेयर अर्थ के लिए 52 ग्राम रेयर अर्थ अयस्क की खुदाई करनी पड़ेगी।
वो कहते हैं कि अब दुनिया में अगर 6।8 अरब लोगों के पास मोबाइल है तो इस तरह इन मोबाइल के 3,90,000 टन रेयर अर्थ एलिमेंट का कच्चा माल चाहिए। ये जरूरत सिर्फ फोन के लिए है। इस एलिमेंट की जरूरत इन्फ्रा ग्रिड, लैपटॉप के लिए भी होती है। तो फिर समझा जा सकता है कि इस मैटेरियल की कितनी जरूरत है।
Rare Earth Element का उपयोग बहुत व्यापक है। सेमीकंडक्टर चिप हो या फिर ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री, फिर एयरक्राफ्ट हो या सैटेलाइट इनको बनाने में रेयर अर्थ एलिमेंट का बहुत योगदान होता है। इस एलिमेंट को धरती से निकालना भी कम चुनौती पूर्ण नहीं है, इसके बाद अयस्क (Ore) से रेयर अर्थ निकालना भी कम जटिल प्रक्रिया नहीं है।
फिलीपींस की राजधानी मनीला में इंटरनेशनल स्टडीज के प्रोफेसर जियानहिन याओ का दावा है कि चीन के पास दुनिया में मौजूद REE का एक तिहाई हिस्सा ही मौजूद है। लेकिन वैश्विक रेयर अर्थ प्रोडक्शन का 60 फीसदी हिस्सा चीन के पास है। चीन के पास दुनिया की 85 फीसदी रेयर अर्थ प्रोसेसिंग कैपिसिटी है।
रेयर अर्थ एलॉय और चुंबक जिस पर चीन का कंट्रोल है उसका इस्तेमाल मिसाइलों, आग्नेयास्त्रों, रडार और स्टील्थ विमानों के निर्माण में महत्वपूर्ण है।
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क्या चीन अफगानिस्तान में बड़े रोल के लिए तैयार है?
अफगानिस्तान के अस्थिर भू-राजनीतिक माहौल में जहां साल-साल में सत्ता की बागडोर बदल जाती है, जहां दुनिया के खूंखार आतंकी संगठन खुले आम ऑपरेट करते हैं वहां पर काम करना चीन के लिए आसान नहीं होगा। अफगानिस्तान में निश्चित रूप से गैर-ईंधन धातु हैं लेकिन अल कायदा और ISIS की मौजूदगी में उसके लिए काम किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
इसके अलावा, खराब बुनियादी ढांचा, अकुशल श्रम और शत्रुतापूर्ण वातावरण चीनियों के लिए एक गंभीर सिरदर्द बन सकता है। लेकिन चीन को ये धातु किसी भी कीमत पर चाहिए इसलिए अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी की घोषणा के शुरुआती दिनों से ही अफगानिस्तान की धरती में छिपे खजाने को लेकर बीजिंग का स्वाभाविक लालच दिखाई दे रहा है।
चीन ने आधिकारिक तौर पर कभी भी तालिबान को अफगानिस्तान में देश की वैध सरकार के रूप में मान्यता नहीं दी, लेकिन Rare Earth Element पर कब्जे और उसे सबसे पहले हड़पने के लालच ने उसे अफगानिस्तान में निवेश करने के लिए प्रेरित किया।
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तालिबान का कब्जा होते ही चीन ने दे दिया ऑफर
15 अगस्त 2021 को अफगानिस्तान की वैध सरकार तालिबान के हाथों हारी और 16 अगस्त को ही चीन का जीभ अफगानिस्तान के खजाने के लिए लपलपाने लगा। 16 अगस्त को चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने घोषणा की कि वह अफगानिस्तान के साथ दोस्ताना रिश्ते निभाने और इस देश में शांति और पुनर्विकास की प्रक्रिया शुरू करने के लिए सकारात्मक भूमिका निभाने को तैयार है।
यही नहीं चीन ने तो अफगानिस्तान को लेकर अपने इरादे पहले ही जाहिर कर दिये थे जब काबुल में तालिबान के पूर्ण नियंत्रण से पहले ही 28 जुलाई 2021 को चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने तालिबानी प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की। इस प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई तालिबान के राजनीतिक मामलों के प्रमुख मुल्ला अब्दुल गनी बरादर कर रहे थे। ये मुलाकात तियानजिन में हुई थी। इस मुलाकात में चीन ने अफगानिस्तान की संप्रभुता का सम्मान करने का वादा किया और कहा कि वो उसके अंदरुनी मामलों में कभी दखल नहीं देगा।
चीन के सरकारी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने अफगानिस्तान पर अपनी दावेदारी पेश करते हुए कहा कि चीन अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में मदद करने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में है।
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तालिबान को चीन की Debt trap पॉलिसी का अंदाजा नहीं
हालांकि शायद तालिबान प्रशासन को चीन की कर्ज में फंसाने की रणनीति का अंदाजा अभी नहीं है। चीन अपनी इसी रणनीति के लिए अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया में जाना जाता है। चीन अफ्रीकी देशों में सड़क, बंदरगाह और टॉप कैटेगरी का इंफ्रा विकसित करने के नाम पर इन देशों में अपने कर्ज के जाल में फंसाता है।
बता दें कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की निकासी को चीन ने अफगानी जमीन पर अपने मंसूबे को अमली जामा पहनाने के लिए एक मौके की तरह देखा। REE मार्केट में अपना एकाधिकार कायम करने के लिए चीन अफगानिस्तान में खनन गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए कूद पड़ा। Rare Earth Element की जरूरतों को पूरा करने के लिए चीन को नए क्षेत्र की जरूरत थी और इस तलाश में अफगानिस्तान उसके लिए योग्य लक्ष्य बन गया।
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बता दें कि चीन की सरकारी कंपनी (CNPC) कंपनी चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉरपोरेशन साल 2012 में ही अमू दरिया और सर-ए-पुल से तेल निकालने के लिए अफगानिस्तान में 2012 में ही प्रवेश कर चुका है।
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