China-US Fight: चीन-अमेरिका में अब इस छोटी-सी चीज के लिए गहराई तनातनी, असली खिलाड़ी है ये तीसरा देश!

Semiconductor का मार्केट दुनियाभर में करीब 500 अरब डॉलर का है और इसमें अपना दबदबा कायम करने के लिए अमेरिका-चीन आमने-सामने हैं। अमेरिका का कहना है कि China इस तकनीक का इस्तेमाल अपने लिए करता है, तो ये राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा होगा, वहीं अमेरिकी नियंत्रण को चीन टेक्नोलॉजी टेरेरिज्म कह रहा है।
नई दिल्ली। दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अमेरिका और चीन (America-China) आमने-सामने हैं और ये तनातनी है एक छोटी से आकार की चीज के लिए। लेकिन इसका सिर्फ साइज छोटा है, कारोबार की बात करें तो ये आज के समय में करीब सैकड़ों अरब डॉलर से ज्यादा का मार्केट है। हम बात कर रहे हैं एडवांस्ड माइक्रोचिप या सेमीकंडक्टर (Semiconductor) की। सिलिकॉन का ये छोटा सा टुकड़ा बड़े देशों में वचर्स्व की जंग का कारण बनता जा रहा है। हालांकि, चीन-अमेरिका भले ही एक-दूसरे को पछाड़ने की होड़ में लगे हैं, लेकिन इस सेक्टर का असली खिलाड़ी कोई तीसरा ही है।
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500 अरब डॉलर से ज्यादा का मार्केट
माइक्रोचिप या सेमीकंडक्टर का बाजार (Semiconductor Market) लगातार बढ़ता जा रहा है। बीते दिनों आई बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की एक रिपोर्ट के अनुसार, सेमीकंडक्टर दुनिया में चौथा सबसे ज्यादा ट्रेड होने वाला प्रोडक्ट है। इसमें दुनिया के 120 देश भागीदार हैं। सेमीकंडक्टर से ज्यादा ट्रेड सिर्फ क्रूड ऑयल (Crude Oil), मोटर व्हीकल व उनके कल-पुर्जों और खाने वाले तेल का ही होता है। Corona से पहले साल 2019 में टोटल ग्लोबल सेमीकंडक्टर ट्रेड की वैल्यू 1।7 ट्रिलियन डॉलर पर पहुंच गई थी।
सिलिकॉन से बनी इस बेहद छोटी चीज की अहमियत का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि कोविड काल में जब इनकी सप्लाई धीमी पड़ गई थी, तो दुनिया भर के लगभग 169 बड़े उद्योगों में हड़कंप सा मच गया था। सप्लाई चेन में रुकावट के चलते हुई कमी के कारण तमाम दिग्गज कंपनियों को अरबों डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा था। देखने में छोटी सी ये चीज दुनिया में 500 अरब डॉलर से ज्यादा के उद्योग का केंद्र है। एक्सपर्ट्स का अनुमान है कि साल 2030 तक ये बाजार दोगुने स्तर तक पहुंच सकता है।
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Chip बनाने में कई देशों की भूमिका
सेमीकंडक्टर बनाने के लिए जरूरी चीजों का उत्पादन सिर्फ एक देश में नहीं, बल्कि दुनिया के अलग-अलग देशों में अलग-अलग कंपनियों द्वारा होता है। चिप का डिजाइन अमेरिका में तैयार किया जाता है, मोटे तौर पर इसका उत्पादन ताइवान में होता है, जबकि असेंबलिंग और टेस्टिंग का काम चीन और दक्षिण पूर्वी एशिया में किया जाता है। अब बात करें दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच तनातनी की, तो बता दें चीन इन चिप्स को बनाने की तकनीक चाहता है, जिसका मुख्य रूप से स्त्रोत अमेरिका के पास है। यही इस सेक्टर में चीन की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है।
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US-China में सेमीकंडक्टर पर तनातनी
चीन के मंसूबों को ध्यान में रखते हुए ही बीते साल अक्टूबर 2022 में अमेरिका ने चीन की कंपनियों को चिप बेचने, चिप बनाने के उपकरण और अमेरिकी सॉफ्टवेयर की सेल पर रोक लगा दी थी। अमेरिका के इस फैसले से ड्रैगन तिलमिला गया था। दरअसल, इन एडवांस्ड चिप का उपयोग सुपर कंप्यूटर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सैन्य हार्डवेयर को मजबूत करने के लिए किया जाता है। ऐसे में सेमीकंडक्टर सेक्टर में सुपर पावर बनने की होड़ लगी है।
अमेरिका का मानना है कि अगर चीन इस तकनीक का इस्तेमाल अपने लिए करता है, तो ये उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा साबित हो सकता है। वहीं दूसरी ओर अमेरिका के नियंत्रण को टेक्नोलॉजी टेरेरिज्म का नाम दे रहा है। हालांकि, एक्सपर्ट्स की मानें तो चीन पूरी कोशिश में है कि इस सेक्टर में अपने निवेश को दोगुना कर वह घरेलू चिप मैन्युफैक्चरिंग उद्योग को आगे बढ़ाए, लेकिन सेमीकंडक्टर की इस जंग में चीन के लिए चुनौती केवल अमेरिका ही नहीं, बल्कि उसका पड़ोसी ताइवान भी है। ताइवान दुनिया का एडवांस्ड सेमीकंडक्टर चिप्स का अग्रणी उत्पादक है।
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Taiwan है असली खिलाड़ी
दूसरे शब्दों में कहें तो चीन-अमेरिका की इस तनातनी में असली खिलाड़ी ताइवान ही है। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की पिछली रिपोर्ट की मानें तो चीन सेमीकंडक्टर के डिजाइन व मैन्यूफैक्चरिंग में काफी पीछे है, लेकिन फिर भी चिप वाली डिवाइसेज के प्रोडक्शन में चीन की हिस्सेदारी 35 फीसदी है। अमेरिका सेमीकंडक्टर बेस्ड डिवाइसेज (Semiconductor Based Devisis) का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और इन्हें बनाने वाली 33 फीसदी कंपनियों का हेडक्वार्टर अमेरिका में ही है। वहीं सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग की पांच सबसे बड़ी फॉन्ड्रीज में से 2 ताइवान में स्थित हैं। ताइवानी कंपनी TSMC लॉजिक चिप्स बनाती है, जिनता इस्तेमाल डेटा सेंटर्स, एआई सर्वर्स, पर्सनल कम्प्यूटर, स्मार्टफोन में किया जाता है। सेमीकंडक्टर मार्केट के ओवरऑल वैल्यू चेन में ताइवान की हिस्सेदारी 9 फीसदी है, जो चीन के लगभग बराबर है।
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भारत भी इस सेक्टर में एंट्री लेने को तैयार
भारत की भी इस सेक्टर पर पैनी निगाह है। अगस्त 2022 में आजतक के सहयोगी चैनल बिजनेस टुडे के India@100 समिट में चर्चा के दौरान देश के टेलिकॉम मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव (Ashwini Vaishnav) ने कहा था कि भारत आने वाले 5 से 6 साल में सेमीकंडक्टर चिप (Semiconductor Chip) डिजाइन के क्षेत्र में दुनिया की कैपिटल बन जाएगा। उन्होंने कहा था कि पहली इंडियन सेमी कंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट की शुरूआत जल्द होने वाली है। हमने अगले 6 साल में चिप का भारत में प्रोडक्शन शुरू करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
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यही नहीं देश के जाने-माने उद्योगपति और वेदांता ग्रुप के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने भारत में सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट की स्थापनी करने के लिए (Anil Agarwal) इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र की दिग्गज फॉक्सकॉन (Foxconn) के साथ एक करार किया है। दोनों कंपनियों ने सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले एफएबी मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट (Semiconductor Manufacturing) लगाने के लिए गुजरात सरकार के साथ दो एमओयू भी साइन किया है। इस प्रोजेक्ट के तहत दोनों कंपनियां गुजरात में 1,54,000 करोड़ रुपये का निवेश करेंगी।
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