चीन-तालिबान ने अफगानिस्तान में तेल खनन के लिए मिलाए हाथ, समझें- एशिया की भू-राजनीति में इसके मायने

अफगानिस्तान में चीनी राजदूत वांग यू और आर्थिक मामलों के तालिबान के उप प्रधान मंत्री मुल्लाअब्दुल गनी बरादर की मौजूदगी में काबुल में चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉरपोरेशन की एक सहायक कंपनी के साथ समझौते हुए।
नई दिल्ली। अफगानिस्तान में तालिबान के नेतृत्व वाले प्रशासन ने चीन के साथ एक अंतरराष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किया है। दोनों देशों ने गुरुवार को उत्तरी अमु दरिया बेसिन से तेल निकालने के लिए अपने पहले अंतरराष्ट्रीय अनुबंध पर हस्ताक्षर किए क्योंकि तालिबान संकटग्रस्त देश में राजस्व बढ़ाना चाहता है। 2021 में अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद यह पहला बड़ा अंतरराष्ट्रीय समझौता है।
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अफगानिस्तान में चीनी राजदूत वांग यू और आर्थिक मामलों के तालिबान के उप प्रधान मंत्री मुल्ला अब्दुल गनी बरादर की उपस्थिति में काबुल में चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉरपोरेशन की एक सहायक कंपनी के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
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बरादर ने समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद कहा,"यह समझौता अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा और तेल स्वतंत्रता के स्तर को बढ़ाएगा।" हालांकि, चीन, तालिबान सरकार को मान्यता नहीं देता है,उसकी तरफ से राजदूत वांग ने कहा कि 25 साल का अनुबंध अफगानिस्तान को आत्मनिर्भरता प्रदान देगा।
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तालिबान सरकार के खान और पेट्रोलियम कार्यवाहक मंत्री शहाबुद्दीन देलावर ने कहा कि झिंजियांग मध्य एशिया पेट्रोलियम और गैस कंपनी अफगानिस्तान में पांच तेल और गैस ब्लॉकों का पता लगाने के लिए पहले साल में 150 मिलियन डॉलर और बाद के तीन वर्षों में 540 मिलियन डॉलर का निवेश करेगी। यह ब्लॉक उत्तरी अफगानिस्तान में 4,500 वर्ग किलोमीटर (1,737.5 वर्ग मील) क्षेत्र में फैला है।
उग्रवादी समूह तालिबान 25 साल के अनुबंध से 15% रॉयल्टी शुल्क अर्जित करेगा। इस बेल्ट में दैनिक तेल उत्पादन 200 टन से शुरू होगा जो धीरे-धीरे बढ़कर 1,000 टन हो जाएगा। पिछले सर्वेक्षण के मुताबिक, अफगानिस्तान के इन पांच ब्लॉकों में 87 मिलियन बैरल कच्चे तेल का अनुमान लगाया गया है।
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चीनी कंपनी CAPEIC अफगानिस्तान में पहली कच्चा तेल रिफाइनरी का भी निर्माण करेगी। दिलावर ने बताया कि यदि चीनी कंपनी एक वर्ष के भीतर सभी अनुबंध दायित्वों को पूरा करने में विफल रहता है,तो अनुबंध समाप्त कर दिया जाएगा।
एशिया के भू-राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, अफगानिस्तान और चीन के बीच हुए इस अहम समझौते के बाद दोनों देशों के संबंधों में एक नया अध्याय जुड़ा है। माना जा रहा है कि चीन इस समझौते के बाद अफगानिस्तान में अपना विस्तार करना चाह रहा है। चीन की नजर अफगानिस्तान के पेट्रोलियम और गैस रिजर्व के अलावा खनिज भंडार पर भी है।
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अफगानिस्तान में नेचुरल पेट्रोलियम और गैस के अलावा, तांबा, जिंक और लौह अयस्क का विशाल भंडार है। लंबे समय तक अफगानिस्तान में युद्ध होने की वजह से इन संसाधनों का इस्तेमाल नहीं हो सका था। अमेरिका का कट्टर विरोधी अफगानिस्तान अब निवेश को लेकर चीन पर नजरें लगाए बैठा है। उधर चीन भी अपनी महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के लिए अफगानिस्तान की तरफ केंद्रित रहा है।
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