आर्कटिक सागर की बर्फ 30 साल में हो जाएगी खत्म, होगा ये नुकसानः रिपोर्ट 

 
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जलवायु परिवर्तन से हमारी पृथ्वी बुरी तरह प्रभावित हो रही है। हाल ही में इंटरनेशनल क्रायोस्फीयर क्लाइमेट इनिशिएटिव रिसर्च नेटवर्क की रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्मियों में आर्कटिक की समुद्री बर्फ (summertime Arctic sea ice) 2050 तक गायब हो जाएगी। यानी महज 30 सालों में दुनिया के सबसे बर्फीले इलाकों में बर्फ नहीं दिखेगी।

नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की वजह से दुनिया के वे इलाके जो हमेशा बर्फ से ढके रहते हैं, अब पिघलने लगे हैं। हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, गर्मियों में आर्कटिक की समुद्री बर्फ (summertime Arctic sea ice) 2050 तक गायब हो जाएगी।

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इंटरनेशनल क्रायोस्फीयर क्लाइमेट इनिशिएटिव रिसर्च नेटवर्क की रिपोर्ट में कहा गया है कि इसी साल मार्च में पूर्वी अंटार्कटिका में बारिश हुई, क्योंकि हवा का तापमान असामान्य रूप से गर्म था। गर्मियों के दौरान, एल्प्स ने बर्फ के आवरण का 5% हिस्सा खो दिया। सितंबर में, ग्रीनलैंड ने साल के उस समय पिघलने का एक नया रिकॉर्ड बनाया।

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पृथ्वी के आठ सबसे गर्म साल देखने के बाद, इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि दुनिया के सभी बर्फीले क्षेत्र बहुत तेजी से पिघल रहे हैं। वैज्ञानिकों ने इनके पिघलने की जो उम्मीद की थी, ये दर उससे कहीं ज्यादा है। नई रिपोर्ट के लेखकों ने बर्फ के लिए 'टर्मिनल डाइग्नॉसिस' पर फोकस किया जो हर गर्मियों में आर्कटिक महासागर के ऊपर बनता है और तैरता है।

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के एक सी आइस रिसर्चर और शोध के सह-लेखक रॉबी मैलेट (Robbie Mallett) का कहना है कि जैसे वार्मिंग को 1।5 डिग्री सेल्सियस तक रखने का कोई विश्वसनीय तरीका नहीं है, वैसे ही बिना बर्फ के गर्मी से बचने का कोई विश्वसनीय रास्ता नहीं है।

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आर्कटिक में अब बर्फ की ये स्थिति है, यह तस्वीर ड्रोन से ली गई है

रिपोर्ट को UN क्लाइमेट समिट (U।N। climate summit) की शुरुआत के साथ ही रिलीज़ किया गया। यह समिट 18 नवंबर तक मिस्र के शर्म अल-शेख में चलेगा। सोमवार शाम को, आर्कटिक कैंपेनर्स और उस इलाके में रहने वाले युवाओं ने समुद्री बर्फ के खत्म होने पर ध्यान आकर्षित करने के लिए एक मीडिया ईवेंट किया। 

मैलेट का कहना है कि हमने कुछ ऐसा देखना शुरू कर दिया है जिसे बचाया नहीं जा सकता। लेकिन COP27 वार्ता, गर्मियों की समुद्री बर्फ को बचाने के लिए बहुत अहम साबित होगी। 

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पिछले साल, जलवायु परिवर्तन पर यूएन इंटरगवर्नमेंटल पैनल ने कहा था कि भले ही वार्मिंग प्री-इंडस्ट्रियल एवरेज से 1।6 डिग्री ऊपर हो, गर्मियों में समुद्री बर्फ खत्म हो जाएगी। दुनिया जिस तरह से चल रही है, 2100 तक वार्मिंग 2।8 डिग्री पहुंच जाएगी।  

अगर गर्मियों में समुद्री बर्फ खत्म हो जाती है, तो मल्टी इयर सी आइस (multiyear sea ice) भी नहीं रहेगी। यह वो समुद्री बर्फ होती है जो साल-दर-साल समुद्र में बनी रहती है। मैलेट का कहना है कि इसका उस क्षेत्र पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। वहां रहने वाले करोड़ों जीवन प्रभावित होंगे जो बढ़ते क्षरण का सामना कर रहे हैं।


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वैज्ञानिकों का कहना है कि इस दशक में दुनिया को 2005 के स्तर से कार्बन-डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को आधा कर देना चाहिए और 2050 तक शून्य तक पहुंचना चाहिए, ताकि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को रोका जा सके। लेकिन अगर यह हासिल भी हो जाता है, तो दुनिया के बर्फ से ढके क्षेत्र 2040 और 2080 के बीच किसी बिंदु पर जाकर स्थिर होना शुरू होंगे। ग्लेशियरों का पिघलना एक सदी से ज्यादा समय तक जारी रहेगा, जबकि 2200 तक धीमा होगा। 

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