एक्सीडेंट अंतरिक्ष में भी होते हैं, कोई स्पेस से गिरकर तो कोई अंतरिक्ष यान में जलकर खत्म हुआ

अंतरिक्ष में जाने से पहले एस्ट्रोनॉट्स को खूब ट्रेनिंग मिलती है। पक्का किया जाता है कि स्पेस पर जाने से पहले वे हर तरह से फिट हों। स्पेसक्राफ्ट पर भी पानी की तरह पैसे बहाए जाते हैं। कहीं कोई चूक न छूट जाए, ये बार-बार चेक किया जाता है। इसके बाद भी अंतरिक्ष खतरों से खाली जगह नहीं। कई हादसों में एस्ट्रोनॉट्स की जान जा चुकी।
नई दिल्ली। यूक्रेन से जंग के बीच रूस कई देशों के निशाने पर है, अमेरिका जिसमें सबसे ऊपर है। स्पेस में हुई एक गड़बड़ी से दोनों देशों के बीच तनाव खुलकर सामने आ गया। दरअसल दिसंबर के मध्य में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) से जुड़े रूसी स्पेसक्राफ्ट सोयूज एमएस-22 में तकनीकी दिक्कत आ गई। अब इस अंतरिक्ष यान से रूसी एस्ट्रोनॉट्स वापस नहीं आ सकते। तो रूस उन्हें लौटाने के लिए अपना स्पेसक्राफ्ट भेज रहा है।
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लेकिन यहां अमेरिका की बात कहां से आई!
तो वो ऐसे कि ISS में फिलहाल एक और एस्ट्रोनॉट है, जो अमेरिकी है। ऐसे में अगर किसी इमरजेंसी में ISS को खाली करने की नौबत आ जाए तो अमेरिकी कॉस्मोनॉट को भी लौटना होगा। लेकिन वो रूसी अंतरिक्ष यान के साथ नहीं लौटेगा, बल्कि उसके लिए अमेरिका अलग स्पेसक्राफ्ट भेज सकता है। साल की शुरुआत में ही धरती की राजनीति का असर अंतरिक्ष में दिखने रहा है। इस बीच ये समझते हैं कि क्यों अंतरिक्ष को बेहद खतरनाक जगह माना जाता है, और अब तक कितने एस्ट्रोनॉट्स वहां हादसे का शिकार हो चुके।
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इस तरह के खतरे
धरती की सबसे खतरनाक जगह पर जाना भी उतना मुश्किल नहीं, जितना स्पेस में रहना। वहां ग्रेविटी नहीं होती, जिसके कारण संतुलन बनाने के लिए दिमाग और शरीर अलग तरह से काम करने लगता है। यहां तक कि कई स्टडीज में माना गया कि लौटने के बाद भी महीनों और कई बार सालों तक इंसान पर इसका असर रह जाता है। दूसरी दिक्कत है वहां का रेडिएशन। असल में स्पेस का अपना कोई तापमान नहीं है, बल्कि इसमें पाई जाने वाली तमाम चीजों, जैसे ग्रहों, स्टेरॉइ़ड, सैटेलाइट से मिलकर इसका तापमान बनता है। इसी वजह से स्पेस में हर वक्त खतरनाक रेडिएशन निकलती रहती हैं।
ये रेडिएशन स्पेस के टेंपरेंचर को को -200 फैरनहाइट से लेकर +300 डिग्री फैरनहाइट तक ले जाती है। इस एक्सट्रीम के संपर्क में आने पर कुछ ही सेकंड्स में जान जा सकती है। इन्हीं कारणों को देखते हुए एस्ट्रोनॉट्स को पूरी सुरक्षा के साथ भेजा जाता है। वो एक तरह से इंसुलेटर में रहते हैं ताकि कोई भी फोर्स कम से कम असर डाले।
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इतनी सुरक्षा के बाद भी अंतरिक्ष में दुर्घटनाएं होती रहती हैं
इनमें कई हादसे जानलेवा भी साबित हुए। स्पेस पर इंसानों के जाने की शुरुआत को आधी सदी से ज्यादा समय हुआ। इतने समय में 550 के लगभग एस्ट्रोनॉट्स और कॉस्मोनॉट्स स्पेस की सैर कर चुके। इनमें से तीन की मौत स्पेस में ही हुई, जबकि 30 से ज्यादा लोग खतरनाक स्पेस-ट्रैवल की ट्रेनिंग के दौरान खत्म हुए।
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सोवियत संघ का वो अंतरिक्ष यात्री, जिसकी गिरने से हुई मौत
शुरुआत करते हैं सोवियत संघ के उस कॉस्मोनॉट से, जो स्पेस से गिरकर खत्म हुआ। जी हां, व्लादिमीर कोमारोव नाम के अंतरिक्ष यात्री को इसी तरह से याद किया जाता है- मैन हू फेल फ्रॉम स्पेस! मॉस्को में जन्मे और सोवियत सेना में काम कर चुके कोमारोव ने आगे चलकर स्पेस इंजीनियरिंग की ट्रेनिंग की और अंतरिक्ष में जाने का सपना देखने लगे। वो दूसरे वर्ल्ड वॉर के बाद का समय था, जब रूस (तब सोवियत संघ) के खिलाफ अमेरिका समेत लगभग पूरा यूरोप खड़ा था। रूस के सामने चुनौती थी कि वो स्पेस की दुनिया में खुद को सबसे मजबूत दिखाए। इसी दौरान एक महत्वाकांक्षी प्लान बना।
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बना स्पेस-वॉक का प्लान
रूस ने सोचा कि साल 1967 में कम्युनिस्ट क्रांति की सालगिरह पर वो कुछ धमाकेदार करे। इसके लिए एक प्लान बना, जिसका हिस्सा थे कोमारोव। उन्हें और एक अन्य एस्ट्रोनॉट को स्पेस-वॉक करना था। जैसे-जैसे ट्रेनिंग शुरू हुई, योजना में शामिल लोगों ने माना कि भेजे जा रहे स्पेसक्राफ्ट Soyuz 1 में कई तकनीकी दिक्कतें हैं। एक एस्ट्रोनॉट मिशन से ऐन पहले पीछे हट गया क्योंकि इसमें जान का खतरा था। बाकी रहे कोमारोव। उन्हें धरती का चक्कर लगाकर वापस लौटने को कहा गया।
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पैराशूट भी हो गया फेल
अप्रैल 1967 को कोमारोव स्पेस यात्रा पर निकल पड़े। 24 घंटों के भीतर उन्होंने 16 बार धरती की परिक्रमा कर डाली, लेकिन जिसका डर बताया जा रहा था, लौटते हुए उनका स्पेसक्राफ्ट खराब हो गया। तब तक वे धरती की ऑर्बिट में लौट चुके थे। लगभग 23 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद जिस पैराशूट से उन्हें नीचे आना था, उसके धागे उलझ गए और इस तरह से कोमारोव ऐसे पहले एस्ट्रोनॉट हो गए, जिसकी स्पेस से गिरने पर मौत हुई।
दुनिया के पहले एस्ट्रोनॉट यूरि गेगरिन के जीवन पर लिखी गई किताब स्टारमैन में इस घटना का भी जिक्र है। यहां जानते चलें कि जो अंतरिक्ष यात्री आखिरी समय पर जाने से पीछे हट गया था, वो यूरि ही थे।
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लगातार होते रहे हादसे
जनवरी 1967 में ही एक प्रैक्टिस रन के दौरान अपोलो 1 में आग लग गई, जिसमें तीन अंतरिक्ष यात्रियों- गस ग्रिसम, एड वाइट और रॉजर शेफे की मौत हो गई। बिजली की वायरिंग में आग पकड़ने पर तीनों ही लोगों ने दरवाजा तोड़ने की कोशिश, लेकिन धुएं और आग से बेहद दर्दनाक ढंग से वे एयरक्राफ्ट के भीतर ही मारे गए।
साल 1971 में ही सोवियत एयरक्राफ्ट Soyuz 10 में एक और हादसा हुआ। स्पेस से धरती के रास्ते में कैप्सूल में जहरीली हवा रिसने लगी, जिससे एक अंतरिक्ष यात्री वहीं खत्म हो गया। हालांकि उसके साथ के तीन और यात्री बगैर ज्यादा बड़े नुकसान के सही-सलामत धरती पर उतर आए। इसके कुछ ही महीनों बाद रूस ने तीन और यात्री Soyuz 11 नाम के स्पेसक्राफ्ट में भेजे। लगभग तीन हफ्ते (ये उस समय सबसे बड़ा रिकॉर्ड था) रहकर तीनों ही यात्री धरती पर वापस लौटने लगे, लेकिन इसी दौरान हादसा हुआ।
धरती की ऑर्बिट पर आने के बाद स्पेसक्राफ्ट को कजाकिस्तान लौटना था, लेकिन वहां मौजूद रेस्क्यू क्रू को इनका सिग्नल मिलना बंद हो गया। इसके बाद क्या हुआ, ये अब तक रहस्य है लेकिन तीनों ही एस्ट्रोनॉट्स मरे मिले। माना जाता है कि सेफ्टी वॉल्व फेल होने पर ये हादसा हुआ होगा।
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साठ से सत्तर के दशक के भीतर हुए इन हादसों से अमेरिका और सोवियत संघ दोनों ही सकते में आ गए। यहां तक कि स्पेस प्रोग्राम स्थगित करने की बात तक चल पड़ी , लेकिन फिर अतिरिक्त सावधानियों के साथ अंतरिक्ष यात्रा चल निकली।
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