नई दिल्ली: देश में संविधान बनने के बाद लोगों को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए। मौलिक अधिकारों में एक अधिकार शादी भी है। कोई भी लड़का-लड़की अपने पसंद से एक दूसरे से विवाह कर सकते हैं। इसमें जात-धर्म या क्षेत्र बाधा नहीं बन सकते। लेकिन देश में कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जिनमें शादी नहीं हो सकती। इन्हें ‘सपिंड विवाह’ कहते हैं। मौलिक अधिकार होने के बावजूद भी कपल इन रिश्तों में शादी नहीं कर सकते। गुरुवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने इस हफ्ते एक महिला की याचिका खारिज कर दी। वह हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 5(v) को असंवैधानिक घोषित करने की लंबे समय से कोशिश कर रही थी। यह धारा दो हिंदूओं के बीच शादी को रोकती है अगर वे सपिंड हैं। अगर उनके समुदाय में ऐसा रिवाज होता है तो ये लोग शादी कर सकते हैं। 22 जनवरी को दिए अपने आदेश में, कोर्ट ने कहा कि अगर शादी के लिए साथी चुनने को बिना नियमों के छोड़ दिया जाए, तो गैर-कानूनी रिश्ते को मान्यता मिल सकती है। ये तो हो गई अब तक की अपडेट। संपिड शब्द अपने आप में कुछ लोगों के लिए नया तो कुछ लोगों के लिए आम हो सकता है। संपिड विवाह को लेकर हमारी पूरी बात टिकी है।
क्या है सपिंड विवाह, पहले वह समझिए
सपिंड विवाह उन दो लोगों के बीच होता है जो आपस में खून के बहुत करीबी रिश्तेदार होते हैं। हिंदू मैरिज एक्ट में, ऐसे रिश्तों को सपिंड कहा जाता है। इनको तय करने के लिए एक्ट की धारा 3 में नियम दिए गए हैं। धारा 3(f)(ii) के मुताबिक, ‘अगर दो लोगों में से एक दूसरे का सीधा पूर्वज हो और वो रिश्ता सपिंड रिश्ते की सीमा के अंदर आए, या फिर दोनों का कोई एक ऐसा पूर्वज हो जो दोनों के लिए सपिंड रिश्ते की सीमा के अंदर आए, तो दो लोगों के ऐसे विवाह को सपिंड विवाह कहा जाएगा।
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हिंदू मैरिज एक्ट के हिसाब से, एक लड़का या लड़की अपनी मां की तरफ से तीन पीढ़ियों तक किसी से शादी नहीं कर सकता/सकती। मतलब, अपने भाई-बहन, मां-बाप, दादा-दादी और इन रिश्तेदारों के रिश्तेदार जो मां की तरफ से तीन पीढ़ियों के अंदर आते हैं, उनसे शादी करना पाप और कानून दोनों के खिलाफ है।बाप की तरफ से ये पाबंदी पांच पीढ़ियों तक लागू होती है। यानी आप अपने दादा-परदादा आदि जैसे दूर के पूर्वजों के रिश्तेदारों से भी शादी नहीं कर सकते/सकतीं। यह सब इसलिए है कि बहुत करीबी रिश्तेदारों के बीच शादी से शारीरिक और मानसिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं। हालांकि, कुछ खास समुदायों में अपने मामा-मौसी या चाचा-चाची से शादी करने का रिवाज होता है, ऐसे में एक्ट के तहत उस शादी को मान्यता दी जा सकती है।
पिता की तरफ से ये शादी को रोकने वाली पाबंदी परदादा-परनाना की पीढ़ी तक या उससे पांच पीढ़ी पहले तक के पूर्वजों के रिश्तेदारों तक जाती है। मतलब, अगर आप ऐसे किसी रिश्तेदार से शादी करते हैं जिनके साथ आपके पूर्वज पांच पीढ़ी पहले तक एक ही थे, तो ये शादी हिंदू मैरिज एक्ट के तहत मानी नहीं जाएगी। ऐसी शादी को “सपिंड विवाह” कहते हैं और अगर ये पाई जाती है और इस तरह की शादी का कोई रिवाज नहीं है, तो उसे कानूनी तौर पर अमान्य घोषित कर दिया जाएगा। इसका मतलब है कि ये शादी शुरू से ही गलत थी और इसे कभी नहीं हुआ माना जाएगा।
सपिंड शादी पर रोक में क्या कोई छूट है?
जी हां! इस नियम में एक ही छूट है और वो भी इसी नियम के तहत ही मिलती है। जैसा कि ऊपर बताया गया है, अगर लड़के और लड़की दोनों के समुदाय में सपिंड शादी का रिवाज है, तो वो ऐसी शादी कर सकते हैं। हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 3(a) में रिवाज का जिक्र करते हुए बताया गया है कि एक रिवाज को बहुत लंबे समय से, लगातार और बिना किसी बदलाव के मान्यता मिलनी चाहिए। साथ ही, वो रिवाज इतना प्रचलित होना चाहिए कि उस क्षेत्र, कबीले, समूह या परिवार के हिंदू मानने वाले उसका पालन कानून की तरह करते हों। यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि सिर्फ पुरानी परंपरा ही काफी नहीं है। अगर कोई रिवाज इन शर्तों को पूरा करता है, तो भी उसे तुरंत मान्यता नहीं दी जाएगी। ये रिवाज “स्पष्ट, अजीब नहीं और समाज के हितों के विरुद्ध नहीं” होना चाहिए। इसके अलावा, अगर परिवार के भीतर ही कोई रीति-रिवाज चलता है, तो उसे उस परिवार में बंद नहीं होना चाहिए यानी उसके अस्तित्व पर सवाल न उठे हों। मतलब, वो परंपरा वहां अभी भी सच में मान्य होनी चाहिए।