पहली कक्षा बदली गई Chandrayaan-3 की, अब 42 हजार KM की दूरी पर धरती से लगा रहा चक्कर

 
Chandrayaan-3

ISRO ने 15 जुलाई 2023 की दोपहर 12.05 बजे चंद्रयान-3 की पहली कक्षा में बदलाव किया है। यानी उसकी लंबी दूरी को बढ़ाया है। चंद्रयान-3 को कल 179X36,500 किलोमीटर की कक्षा में डाला गया था। आज उसकी लंबी दूरी को बढ़ाकर 42 हजार किलोमीटर किया गया है।

नई दिल्ली। ISRO ने चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) की पहली ऑर्बिट मैन्यूवरिंग सफलतापूर्वक पूरी कर ली है। यानी उसकी पहली कक्षा बदल दी गई है। अब वह 42 हजार से ज्यादा की कक्षा में पृथ्वी के चारों तरफ अंडाकार चक्कर लगा रहा है।  फिलहाल इसरो वैज्ञानिक इसकी कक्षा से संबंधित डेटा का एनालिसिस कर रहे हैं। 

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लॉन्चिंग के बाद चंद्रयान-3 को 179 किलोमीटर की पेरीजी और 36,500 किलोमीटर की एपोजी वाली अंडाकार कक्षा में डाला गया था। यानी कम दूरी पेरीजी। लंबी दूरी एपोजी। पहले ऑर्बिट मैन्यूवर में एपोजी को बढ़ाया गया है। यानी 36,500 किलोमीटर से 42 हजार किलोमीटर। 

धरती के चारों तरफ पांच बार ऑर्बिट मैन्यूवर होगा। यानी कक्षा बदली जाएगी। इसमें चार में एपोजी यानी पृथ्वी से जब चंद्रयान दूर रहेगा। वह कक्षा बदली जाएगी। यानी पहली, तीसरी, चौथी और पांचवी। अब आप सोच रहे होंगे कि दूसरी कक्षा कहां गई। असल में दूसरी कक्षा में एपोजी नहीं बल्कि पेरीजी बदली जाएगी। यानी नजदीकी दूरी को बढ़ाया जाएगा। 

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कैसी होगी चंद्रयान-3 की आगे की यात्रा? 
31 जुलाई 2023 को चंद्रयान-3 धरती से दस गुना दूर जा चुका होगा। इसरो वैज्ञानिक एपोजी में बदलाव करके उसकी ज्यादा दूरी को बढ़ाते रहेंगे। तब तक बढ़ाएंगे जब तक वह धरती से करीब 1 लाख किलोमीटर दूर नहीं पहुंच जाता। यहां पहुंचने के बाद वैज्ञानिक उसे बनाएंगे गुलेल। यानी स्लिंगशॉट करके चंद्रयान-3 को ट्रांसलूनर इंसर्शन में भेजेंगे। यानी चंद्रमा के लिए तय लंबी दूरी वाली सोलर ऑर्बिट। 

Chandrayaan-3 Route

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17 अगस्त को लैंडर से अलग होगा प्रोपल्शन मॉड्यूल
पांच दिन इन लंबे ऑर्बिट में यात्रा करने के बाद यानी 5-6 अगस्त को चंद्रयान-3 लूनर ऑर्बिट इंसर्शन स्टेज में होगा। तब चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन सिस्टम को ऑन किया जाएगा। उसे आगे की ओर धकेला जाएगा। यानी चंद्रमा की 100 किलोमीटर की ऊपरी कक्षा में भेजा जाएगा। 17 अगस्त को प्रोपल्शन सिस्टम चंद्रयान-3 के लैंडर-रोवर से अलग हो जाएगा। 

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ऐसे कम की जाएगी गति, फिर होगी लैंडिग
प्रोपल्शन मॉड्यूल के अलग होने के बाद लैंडर को चंद्रमा की 100X30 किलोमीटर की कक्षा मंल लाया जाएगा। इसके लिए डीबूस्टिंग करनी होगी। यानी उसकी गति कम करनी पड़ेगी। ये काम 23 अगस्त को होगा। यहीं पर इसरो वैज्ञानिकों की सांसें थमी रहेंगी। क्योंकि ये होगा सबसे कठिन काम। यहीं से शुरू होगी लैंडिंग की प्रकिया। 

Chandrayaan-3 ISRO Launch Date

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लैंडिंग साइट का क्षेत्रफल बढ़ाया गया
इस बार विक्रम लैंडर में के चारों पैरों की ताकत को बढ़ाया गया है। नए सेंसर्स लगाए गए हैं। नया सोलर पैनल लगाया गया है। पिछली बार चंद्रयान-2 की लैंडिंग साइट का क्षेत्रफल 500 मीटर X 500 मीटर चुना गया था। इसरो विक्रम लैंडर को मध्य में उतारना चाहता था। जिसकी वजह से कुछ सीमाएं थीं। इस बार लैंडिंग का क्षेत्रफल 4 किलोमीटर x 2.5 किलोमीटर रखा गया है। यानी इतने बड़े इलाके में चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर उतर सकता है। 

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