Supreme Court: सेम सेक्स मैरिज मामले की सुनवाई के दौरान CJI ने पूछा, क्या शादी के लिए 2 अलग जेंडर वाले पार्टनर्स होना जरूरी

अब हमें शादी को लेकर बदलती धारणाओं को दोबारा परिभाषित करना होगा।
 
Supreme Court: सेम सेक्स मैरिज मामले की सुनवाई के दौरान CJI ने पूछा, क्या शादी के लिए 2 अलग जेंडर वाले पार्टनर्स होना जरूरी

नई दिल्ली। सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली 20 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। करीब 4 घंटे तक याचिकाकर्ताओं की ओर से दी गई दलीलों के बीच सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या शादी जैसी संस्था के लिए दो अलग जेंडर वाले पार्टनर्स का होना जरूरी है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने पर कहा, जब हमने होमोसेक्शुएलिटी को अपराध की श्रेणी से हटाया, उसी वक्त से यह साफ हो गया कि यह एक बार होने वाले संबंध नहीं हैं। इनमें भी स्थायी रिश्ते हैं। इसे अपराध की श्रेणी से हटाकर हमने न सिर्फ ऐसे रिश्तों को पहचान दी, बल्कि हमने यह भी बताया कि सेम सेक्स वाले कपल भी स्थायी रिश्तों में रह सकते हैं। 

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अब हमें शादी को लेकर बदलती धारणाओं को दोबारा परिभाषित करना होगा। क्योंकि सवाल यह है कि क्या शादी के लिए दो ऐसे पार्टनर का होना जरूरी है, जो अलग अलग जेंडर के हों। यहां कानून यह मानने लायक हो गया है कि शादी कि लिए दो अलग अलग जेंडर हो सकते हैं, लेकिन यह शादी की परिभाषा के लिए जरूरी नहीं है। वहीं, आज सुनवाई खत्म करते हुए CJI चंद्रचूड़ ने आगे बहस करने के लिए 13 वकीलों के नाम गिनाए। साथ ही यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस हर हाल में सोमवार को खत्म होगी। इसके लिए वकील आपस में चर्चा करके समय का बंटवारा कर लें। 

अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, यह केवल याचिकाकर्ताओं का फैसला होगा। यह मेरे दिल का फैसला होगा। मैं किसके साथ और कितने समय तक रहूंगा, यह मेरा अधिकार है। मुझे एक महीने पहले दुनिया को यह क्यों बताना चाहिए कि हम शादी करने जा रहे हैं। स्पेशल मैरिज एक्ट का यह प्रावधान असंवैधानिक है, क्योंकि शादी की औपचारिकताओं से पहले आप मेरी निजता का उल्लंघन कर रहे हैं। मुझे यह कह रहे हैं कि मैं अपने इरादे जाहिर करके विरोध को न्योता दूं।

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उन्होंने आगे कहा, आम शादियों में कौन सा कपल शादी से पहले दुनिया को यह बताता है कि वह शादी करने जा रहा है। आम शादियां छोड़ दीजिए, ऐसा नियम पारसी एक्ट जैसे पर्सनल लॉ में भी नहीं लागू होता है। फिर हम लोगों के लिए ऐसा क्यों। यह केवल और केवल मेरा फैसला है। सिंघवी ने यह भी कहा, इसका सीधा सा रास्ता यह है कि जो भी सेम सेक्स कपल शादी करना चाहते हैं, उन पर ही मिनिमम ऐज का नियम लागू कर दिया जाए। इसमें कानून में चीरफाड़ की जरूरत नहीं। दूसरा सवाल ट्रांस कैटेगिरी को लेकर उठ सकता है तो इसमें मेरा जवाब यह होगा कि 99 प्रतिशत केसों में जेंडर का निर्धारण उस आधार पर किया जाए, जो उस व्यक्ति ने बताया हो।

केंद्र की बीते दिन की दलीलों पर याचिकाकर्ता के वकील राजू रामचंद्रन ने कहा, 1956 में जस्टिस विवियन बोस ने ऐतिहासिक फैसला दिया था और कहा था कि संविधान आम आदमी के लिए है, गरीब के लिए है, व्यापारी के लिए है, कसाई के लिए है, ब्रेड बनाने वाले के लिए और मोमबत्ती बनाने वाले के लिए है। जिन लोगों के लिए मैं आज कोर्ट में मौजूद हूं, उनके लिए आज मुझे यहां इसका जिक्र करना महत्वपूर्ण लग रहा है। एक याचिकाकर्ता काजल है, जो दलित महिला है। पंजाब के एक शहर की है। दूसरी याचिकाकर्ता भावना हरियाणा के बहादुरगढ़ की रहने वाली है और OBC है। भावना चंडीगढ़ में अकाउंटेंट है और काजल एक बेकरी में असिस्टेंट है। वह ऐसी बेकरी वाली महिला है, जिसे जस्टिस विवियन बोस ने फैसला सुनाते वक्त अपने ध्यान में रखा था। 

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उन्होंने आगे  कहा, सरकार ने अपने एफिडेविट में कहा था कि सेम सेक्स मैरिज की वैधता की सोच शहरी एलीट क्लास की है। इन याचिकाकर्ताओं की मौजूदगी इस धारणा को खारिज करती है। यह बयान गैरजिम्मेदाराना, गैरजरूरी और असंवेदनशील है। शादी की संस्था केवल कई सामाजिक-आर्थिक अधिकारों का रास्ता नहीं है, बल्कि यह दो लोगों को उनके संबंधियों और परिवारों से सुरक्षा भी दिलाता है। राजू रामचंद्रन ने यह भी कहा, ऐसे सेम सेक्स कपल के माता पिता अक्सर उतने समझदार नहीं होते। परिवार इन कपल्स को समझने वाले नहीं होते हैं। इस कपल को सुरक्षा लेने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट जाना पड़ा। इनकी शादी को पहचान मिलना इनकी सुरक्षा के लिए जरूरी है। 

एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील केवी विश्वनाथन ने कहा, शादी को वंश वृद्धि के नजरिए से देखना पूरी तरह गलत है। वो लोग कहते हैं कि आप लोग वंश वृद्धि नहीं कर सकते। क्या यह शादी का दर्जा ना दिए जाने के पीछे वाजिब वजह हो सकती है। क्या बूढ़े लोग शादी नहीं करते हैं। क्या जिन लोगों के बच्चे नहीं पैदा कर सकते हैं, उन्हें शादी की इजाजत नहीं दी जाती है। केंद्र के बयान में एक और खामी है। वह कहते हैं कि सबकुछ ठीक है। आप करीब करीब हमारे बराबर हैं, पर आप अलग हैं। अगर हम बेटे बेटियां, भाई बहन हो सकते हैं तो फिर शादीशुदा जीवनसाथी का दर्जा हासिल करने से हमें कौन सी चीज रोक रही है। इसका जवाब यौन इच्छा है, जिस पर हमारा नियंत्रण नहीं है।

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सेम सेक्स मैरिज पर केंद्र का पक्ष सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता रख रहे हैं। सेम सेक्स मैरिज के पक्ष में लगाई गई याचिकाओं की पैरवी वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और मुकुल रोहतगी कर रहे हैं। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली की पांच जजों की संवैधानिक बेंच कर रही है।

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