Supreme Court में सेम सेक्स मैरिज पर फिर होगी सुनवाई, केंद्र ने कहा- इस मामले पर सुनवाई ही नहीं होनी चाहिए, जानें क्यों...

नई दिल्ली। सेम सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली 15 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली की पांच जजों की संवैधानिक बेंच इन पर सुनवाई कर रही है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल (SG) तुषार मेहता और सेम सेक्स मैरिज के पक्ष में लगाई गई याचिकाओं की पैरवी मुकुल रोहतगी ने की। सेम सेक्स मैरिज पर सुप्रीम कोर्ट में 19 अप्रैल को दोबारा सुनवाई होगी।
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केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल एसजी मेहता ने कहा कि सेम सेक्स मैरिज का मुद्दा ऐसा नहीं है, जिस पर एक पक्ष में बैठे 5 लोग, दूसरे पक्ष में बैठे 5 लोग और बेंच पर बैठे 5 विद्वान बहस कर सकें। इसमें दक्षिण भारत के किसान और उत्तर भारत के बिजनेसमैन का भी नजरिया जानना होगा। वही, केंद्र सरकार ने कहा, हम अभी भी इन याचिकाओं के आधार पर सवाल कर रहे हैं, क्योंकि हो सकता है कि इस मामले पर सभी राज्य एकराय न हों। हम अभी भी यही कह रहे हैं कि क्या इस मुद्दे पर कोर्ट खुद फैसला ले सकती है। यह बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है। उन्होंने आगे कहा, राज्यों को जरूर सुना जाना चाहिए, क्योंकि इस मा्मले से हिंदू और मुस्लिम दोनों प्रभावित होंगे। केंद्र ने ये भी कहा हम इस मामले में उलझ रहे हैं। हम तो कह रहे हैं कि इस मामले पर सुनवाई ही ना की जाए।
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याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि हम अपने घरों में प्राइवेसी चाहते हैं। साथ ही यह भी कि हमें सार्वजनिक जगहों पर कोई लांछन ना सहना पड़े। हम चाहते हैं कि 2 लोगों के लिए शादी और परिवार को लेकर वैसी ही व्यवस्था हो, जैसी अभी दूसरों के लिए चल रही है। शादी और परिवार की हमारे समाज में इज्जत होती है। कानून में से इस मामले पर आपराधिक और अप्राकृतिक हिस्सा हट गया है। ऐसे में हमारे अधिकार भी समान हैं। हम सेम सेक्स वाले लोग हैं। हमें भी समाज के हेट्रोसेक्शुअल ग्रुप के तौर पर संविधान के तहत समान अधिकार मिले हैं। आपने ही यह फैसला किया है। हमारे समान अधिकारों के रास्ते में केवल एक ही रुकावट थी 377।
उन्होंने आगे कहा, हम बूढ़े होते जा रहे हैं। हम भी चाहते हैं कि शादी का सम्मान हो। आज स्थिति क्या है? ये जो लोग हैं, इन्हें गे कहा जाता है, क्वीर कहा जाता है। अगर ये कहीं जाते हैं तो लोग इन्हें देखने लगते हैं। आर्टिकल A 21 के तहत यह अधिकारों पर प्रतिबंध और उनका उल्लंघन है। आपने ही अनुज गर्ग के केस में सेक्स की परिभाषा को माना है, जिसमें कहा गया था कि सेक्स के मायने यौन इच्छा से है ना कि किसी के पुरुष या महिला होने से। मुझे लग रहा है कि कुछ ऐसा होने वाला है, जो कभी नहीं हुआ है। कई साल पहले मैंने 377 को अपराध से मुक्त करने का केस हाथ में लिया था।
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अगर हमारे पास हेट्रोसेक्शुअल ग्रुप के तौर पर हमें समान अधिकार तो शादी का अधिकार होना चाहिए। वहीं, 2019 में सेम सेक्स की परिभाषा थी, समान लिंग वाले दो लोगों का समारोह के दौरान एक होना, चाहे वो पुरुष हों या फिर महिला। भारत सरकार बरसों पुरानी कानूनी चीजों का पालन करती आ रही है। अगर आप उसी का पालन कर रहे हैं तो नए कानूनों का भी पालन कीजिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हम जानना चाहते हैं कि याचिकाकर्ता क्या दलीलें दे रहे हैं। देखते हैं कि याचिकाकर्ता और हमारे दिमाग में क्या चल रहा है। वहीं, सॉलिसिटर जनरल हमें नहीं बता सकते कि यह फैसला कैसे करना है। हम सही वक्त पर आपको भी सुनेंगे। यह भी कहा गया की, हम पर्सनल लॉ में जानना नहीं चाहते और आप हमसे चाह रहे हो कि उसमें जाएं, ऐसा क्यों। आप हमसे इस पर फैसला करने के लिए कैसे कह सकते हैं। हम सब कुछ सुनने के लिए बाध्य नहीं हैं। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हम बीच का रास्ता निकाल रहे हैं। CJI ने कहा, सुनवाई की कवायद आने वाली पीढ़ियों के लिए हो रही है। अदालत और संसद इस पर बाद में फैसला करेंगे।
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