Rajasthan Election: अशोक गहलोत को मिली खुली छूट खत्म, लगाम कसने लगा है आलाकमान, दिल्ली से जयपुर लौटे

 
ashok gehlot

कांग्रेस की एक मीटिंग में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से शिद्दत से जवाब तलब किया गया है. शायद ये पहला मौका है जब राहुल गांधी ने अशोक गहलोत को उनके ही पैंतरे में घेर लिया है - और बड़े ही सख्त लहजे में साफ कर दिया है कि जो कुछ होता रहा वो हो चुका, आगे से मनमानी करने की पहले जैसी छूट नहीं मिलने वाली है. 

राजस्थान कांग्रेस की चौथी लिस्ट फाइनल किये जाने में उनकी कुछ बातें तो मान ली गयी हैं, लेकिन उनकी कई सिफारिशों को मंजूरी नहीं मिली है. बसेरी से निवर्तमान विधायक खिलाड़ी लाल बैरवा का टिकट काट दिया जाना ऐसा ही एक उदाहरण है. सचिन पायलट के किसी समर्थक विधायक का टिकट काट दिया जाना, तो अशोक गहलोत की बात मानने जैसा ही है. 

थोड़ा पीछे लौट कर देखें तो अशोक गहलोत ने गांधी परिवार की परवाह करना कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के पहले से ही छोड़ दिया था. अशोक गहलोत का असली रंग तब सामने आया जब सचिन पायलट ने बगावत कर दी - और अपने समर्थक विधायकों के साथ होटल पहुंच गये. 

अशोक गहलोत को ये सब इतना बुरा लगा कि वो सचिन पायलट को निकम्मा, नकारा और पीठ में छुरा भोंकने वाला तक बताने लगे. अशोक गहलोत का गांधी परिवार पर इतना प्रभाव रहा कि वो जो मन करता वो तो बोलते ही, सचिन पायलट की गांधी परिवार के साथ मुलाकात तक नहीं होने देते. लेकिन एकतरफा मामला कब तक चलता. प्रियंका गांधी की पहल पर राहुल गांधी मिलने के लिए तैयार हो गये. सचिन पायलट से बात हुई, और उनकी मांगों को लेकर एक कमेटी भी बना दी गयी. उसके बाद तो अशोक गहलोत आउट ऑफ नेटवर्क ही हो गये. कई महीने तक गांधी परिवार का मैसेज देने के लिए अजय माकन फोन करते रहे, लेकिन वो कॉल रिसीव ही नहीं करते थे. 

कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव से पहले जब आलाकमान की तरफ से राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन की कोशिश हुई तो अशोक गहलोत का खेल सबने देखा ही - और अब विधानसभा चुनाव में भी टिकटों के बंटवारे में वो खुल कर मनमानी करने लगे थे.

दिल्ली में हुई कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और राजस्थान के मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत सहित कांग्रेस के कई सीनियर नेता मौजूद थे. अपने समर्थकों को टिकट दिलाने की जिद को लेकर राहुल गांधी पहले से ही उनसे चिढ़े हुए थे. हो सकता है, राहुल गांधी को 2019 के लोक सभा चुनाव के दौरान टिकटों के बंटवारे का दौर याद आ गया हो. कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी ने काफी गुस्से में बताया था कि कैसे बेटे वैभव गहलोत को टिकट दिलाने के लिए अशोक गहलोत ने उन पर लगातार दबाव बनाये रखा था. राहुल गांधी खुद को रोक नहीं पाये और अशोक गहलोत से टिकट बंटवारे में खामियों के बारे में सवाल कर लिया. अशोक गहलोत की ही पुरानी बातें याद दिला कर सवाल हुआ तो वो अपनी सरकार के संकट में साथ देने की दुहाई देने लगे - लेकिन ऐसी बातों का अब गांधी परिवार पर कोई असर नहीं हो रहा है. 

राहुल गांधी को भी ये बात अच्छी तरह समझ में आ चुकी है कि कैसे अशोक गहलोत, सचिन पायलट को किनारे कर राजस्थान कांग्रेस पर कब्जा जमाने की कोशिश कर रहे हैं.

अशोक गहलोत को अब मनमानी की छूट नहीं मिलने वाली है

भारत जोड़ो यात्रा और फिर कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए चुनावी रणनीतिकार की भूमिका निभाने वाले सुनी कानुगोलू की की टीम राजस्थान में भी काम कर रही है. सुनील कानुगोलू की टीम ने राजस्थान में टिकट दिये जाने के योग्य और अयोग्य कांग्रेस नेताओं की सूची तैयार की हुई है. कांग्रेस नेतृत्व शुरू से ही तय कर चुका था कि किसी ऐसे नेता को उम्मीदवार न बनाया जाये जिसके जीतने की कम ही संभावना हो, या नहीं के बराबर हो - लेकिन अशोक गहलोत का दावा है कि राजस्थान के बारे में जितना वो जानते हैं, कोई चुनावी रणनीतिकार नहीं जानता. 

केंद्रीय चुनाव समिति की हाल की एक बैठक में जब अशोक गहलोत ने देखा कि उनका ये दावा नहीं चल पा रहा है, तो अलग दलील देने लगे. अशोक गहलोत की पूरी कोशिश रही है कि उनके समर्थक किसी भी विधायक या मंत्री टिकट न कटे, यहां तक कि निर्दलीय विधायकों को भी टिकट दिलाने की कोशिश कर रहे हैं. मीटिंग में अशोक गहलोत ऐसे ही कई उम्मीदवारों के नाम की पैरवी कर रहे थे, तभी राहुल गांधी ने टोक दिया.   

राहुल गांधी ने याद दिलायी कि तीन महीने पहले वो कह रहे थे कि उनकी सरकार के खिलाफ कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं है, लेकिन कुछ विधायकों के खिलाफ है. राहुल गांधी ने उन विधायकों की तरफ भी ध्यान दिलाया जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, लेकिन अशोक गहलोत उनको टिकट देने की जिद कर रहे हैं. 

अशोक गहलोत ने राहुल गांधी को ये कह कर समझाने की कोशिश की कि जिन लोगों ने उनकी सरकार बचाई, उनके लिए वो बोल रहे हैं, और बोले, वरना यहां मैं मुख्यमंत्री के रूप में नहीं बैठा होता.  

राहुल गांधी का कहना था कि उस कांग्रेस नेता ने टिकट न मिलने पर पार्टी के खिलाफ जाकर चुनाव लड़ा था और जीता भी. राहुल गांधी ने अशोक गहलोत को याद दिलाया कि बगैर उनके प्रचार किये कांग्रेस का अधिकृत प्रत्याशी 44 हजार वोट पाया था, फिर ऐसे नेता को उम्मीदवार क्यों न बनाया जाये? 

असल में अशोक गहलोत को दिक्कत इस बात से थी कि 2018 का कांग्रेस का वो उम्मीदवार सचिन पायलट का समर्थक है, और भला ऐसे किसी नेता को अशोक गहलोत टिकट क्यों देने दें जो चुनाव जीतने के बाद सचिन पायलट के साथ जाकर खड़ा हो जाये. 

मीटिंग से आयी खबरों से मालूम होता है कि अशोक गहलोत को लेकर राहुल गांधी और सोनिया गांधी का भी भ्रम टूट चुका है. गांधी परिवार के ताजा रुख से सचिन पायलट को कितना फायदा कितना मिल पाएगा, ये तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन अशोक गहलोत को आगे से पहले जैसी छूट मिलने की संभवना खत्म हो चुकी है. 

राहुल गांधी ने अशोक गहलोत को उनकी हदें समझा दी है

अशोक गहलोत ने राजस्थान में टिकट बंटवारे की ऐसी रणनीति बनायी कि केंद्रीय चुनाव समिति की भूमिका रबर स्टांप से ज्यादा बची ही नहीं है. अशोक गहलोत ने पहले से ही ऐसे पुख्ता इंतजाम कर रखे हैं कि केंद्रीय चुनाव समिति के सामने कोई विकल्प ही नहीं छोड़ा है. जिस सीट पर अशोक गहलोत किसी खास नेता को ही टिकट दिलाना चाहते हैं, उस सीट के लिए दूसरा और तीसरा नाम तक संभावित सूची में नहीं डाला गया, केंद्रीय चुनाव समिति ने पहले ही कह रखा था कि हर सीट के लिए कम से कम तीन तीन उम्मीदवारों के नाम दिये जायें. लेकिन स्क्रीनिंग कमेटी पर अशोक गहलोत और उनके समर्थकों के दबाव के चलते हर कोई बेबस नजर आ रहा था. 

अपनी तरफ से अशोक गहलोत ने कांग्रेस नेतृत्व के पास कम विकल्प छोड़ा था. ये सब सिर्फ राजस्थान में ही संभव हो सकता था, दिल्ली में तो कतई नहीं. उम्मीदवारों के नाम पर अंतिम फैसला तो दिल्ली दरबार का ही होता है. 

अशोक गहलोत अपनी सरकार के सभी मंत्रियों को फिर से टिकट देना चाहते हैं. तब भी जबकि सुनील कानुगोलू की टीम की तरफ से कुछ मंत्रियों के लिए फीडबैक अच्छा नहीं मिला है. शांति कुमार धारीवाल और महेश जोशी जैसे मंत्रियों को लेकर भी ऐसा ही पेच फंस रहा है, जिन्हें विधायक दल की मीटिंग का बहिष्कार कराने के लिए दिल्ली से नोटिस भेजा गया था. 

ये अशोक गहलोत ही हैं जो सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने के लिए G-23 नेताओं पर बरस पड़े थे और उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे थे. ये अशोक गहलोत ही हैं जो कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव से कुछ पहले तक राहुल गांधी को ही कमान संभाल लेने की हर बैठक में मांग कर बैठते थे. ये अशोक गहलोत ही हैं जो 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी के आगे पीछे कवच कुंडल की भूमिका निभाते नजर आ रहे थे - और इन्हीं वजहों से अशोक गहलोत ने सोनिया गांधी के साथ साथ राहुल गांधी का भी भरोसा जीता था, लेकिन वो अब बीते दिनों की बात हो चुकी है, अब तो ऐसा ही लगता है.

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