निर्जला एकादशी पर 'जलदान' से सारे कष्ट दूर होंगे, काशी के ज्योतिषी से जानें उपाय

Nirjala Ekadashi 2023: इस बार निर्जला एकादशी का पर्व 31 मई को मनाया जाएगा। काशी के विद्वान ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि निर्जला एकादशी का व्रत रखने से साल की सभी एकादशी के व्रत का फल प्राप्त होता है। इस दिन जलदान करने से पितृदोष से मुक्ति भी मिलती है।
वाराणसी। सनातम धर्म में एकादशी के व्रत का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा से सारे कष्ट दूर हो जाते है। यूं तो साल में कुल 25 एकादशी के व्रत होते हैं लेकिन इसमें ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी का विशेष महत्व होता है। इस एकादशी को निर्जला और भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन व्रत और जलदान से जीवन के सारे कष्ट दूर होते हैं। इस दिन व्रत रखने वाले को पूरे दिन बिना जल ग्रहण के व्रत रखना होता है। इस बार ये व्रत 31 मई (बुधवार) के दिन मनाया जाएगा।
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काशी के विद्वान ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि निर्जला एकादशी का व्रत रखने से साल की सभी एकादशी के व्रत का फल प्राप्त होता है। इसलिए सनातन धर्म में इस एकादशी का खासा महत्व है। इस दिन जलदान करने से पितृदोष से मुक्ति भी मिलती है। इसके अलावा निर्जला एकादशी के दिन छाता, जूता और अन्न का दान भी जरूर करना चाहिए। इन चीजों के दान से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
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पांडवों से जुड़ी है कथा
निर्जला एकादशी व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी है। धार्मिक पुस्तकों के मुताबिक, महर्षि व्यास के कहने पर पांडवों ने इस व्रत को रखा था। कथाओं के अनुसार, पांडवों का दूसरा भाई भीमसेन खाने पीने का शौकीन था। वह चाह कर भी साल में 25 एकादशी का व्रत नहीं रख पाता था। वह अपनी इस कमजोरी को लेकर काफी परेशान था। अपने इस परेशानी को जब उन्होंने महर्षि व्यास को बताया तो उन्होंने ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने की सलाह दी और उसका महत्व भी बताया। इसके बाद इस एकादशी को निर्जला एकादशी के साथ भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाने लगा।
(नोट: यह खबर मान्यताओं पर आधारित है। हम इसकी पुष्टि नहीं करता है। )
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