नौरुज़: नए वर्ष, नई चेतना का उत्सव

 
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​​​नौरूज बसन्त का पहला दिन है और बसन्त प्रकृति के नए जागरण का दिन है। यह नई चेतना का दिन है।

 

नई दिल्ली। “नौरुज़” शब्द का अर्थ है “नया दिन”। बहाई कैलेंडर के अनुसार आज से नए वर्ष का आरंभ होता है। बहाइयों के अलावा, ईरान और दुनिया भर में फैले हुए पारसी समुदाय के लोग भी नवरोज़ का उत्सव मनाते हैं और नए साल का शुभारंभ करते हैं। वस्तुतः ईरान में नौरुज़ मनाने की परम्परा ईश्वरीय अवतार जरथुष्ट्र (जोरास्टर) के समय से ही, यानी 3000 से भी अधिक पूर्व से, चली आ रही है। ईरान के अलावा कुर्दिस्तान, अफ़गानिस्तान, मध्य और दक्षिण एशिया के कई देशों, चीन के कई हिस्सों, क्रीमिया (रूस) और बाल्कन्स में भी नौरुज़ मनाने की पुरानी परम्परा है। 

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मार्च के महीने या इसके आस-पास दुनिया के अनेक देश नए वर्ष की शुरुआत करते हैं। ईसाई धर्म के प्रसार से पहले रोम में जूलियन कैलेंडर चलता था और तब नया वर्ष 1 मार्च या 25 मार्च से आरंभ होता था। कंबोडिया, श्रीलंका और थाईलैंड जैसे देशों में नए वर्ष का आरंभ अप्रैल के महीने से माना जाता है। हिंदू धर्म में होली के उत्सव के साथ पुराना सम्वत जल जाता है और नए वर्ष की शुरुआत होती है। होली मार्च में ही आती है।

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दुनिया के कुछ देशों में नए वर्ष की शुरुआत सितंबर महीने से भी होती है। तो आखिर मार्च या सितंबर में ऐसा क्या है? मार्च और सितंबर का सम्बंध एक बहुत बड़ी खगोलीय घटना से है। वर्ष में दो बार हमारे खगोल में एक विलक्षण घटना घटती है। 20 या 21 मार्च को उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य विषुवत रेखा (एक्वेटर) के ठीक ऊपर रहता है और उत्तर की ओर गतिशील होता है। दूसरी ओर, 22 या 23  सितंबर को सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में एक बार फिर विषुवत रेखा के ठीक ऊपर रहता है और दक्षिण की ओर गतिशील होता है। इन दोनों ही अवसरों पर रात और दिन बराबर होते हैं। इस दिन से ऋतु में परिवर्तन होता है। 20 या 21 मार्च को उत्तरी गोलार्द्ध में और 22 या 23 सितंबर को दक्षिणी गोलार्द्ध में बसन्त ऋतु आरंभ होती है। दुनिया में 197 देश हैं, उनमें से सिर्फ 32 देश दक्षिणी गोलार्द्ध में पड़ते हैं। अंटार्कटिक और ऑस्ट्रेलिया महादेशों को छोड़कर बाकी देशों का कुछ न कुछ हिस्सा उत्तरी गोलार्द्ध में भी पड़ता है। सारांश यह कि हालांकि दक्षिणी गोलार्द्ध क्षेत्रफल की दृष्टि से धरती का आधा हिस्सा घेर लेता है लेकिन दुनिया की विशाल जनसंख्या उत्तरी गोलार्द्ध में रहती है। अतः हमारे लिए मार्च में आने वाला बसन्त ज्यादा महत्वपूर्ण है और इसलिए बहाउल्लाह ने 21 मार्च को बसन्त सम्पात का दिन माना है और इस दिन को नौरुज या नए दिन नाम दिया है।

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नौरूज बसन्त का पहला दिन है और बसन्त प्रकृति के नए जागरण का दिन है। यह नई चेतना का दिन है। इसी समय हिंदू कैलेंडर का पहला महीना आरंभ होता है जिसे “चैत्र” कहते हैं और “चैत्र” का अर्थ होता है चेतना, जागरण, स्पंदन, नई शुरुआत। बहाई कैलेंडर में 19-19 दिनों के 19 महीने होते हैं और हर महीने (और महीने के हर दिन) का नाम ईश्वर के गुणों के नाम पर रखा गया है। नौरूज के साथ ही बहाई वर्ष का पहला महीना शुरु होता है जिसका नाम है “बहा” अर्थात प्रकाश, प्रताप, आभा, तेजस्विता। ये सारे गुण सूर्य के हैं लेकिन सूर्य दो तरह के होते हैं— एक तो हमारे सौरमंडल का वह भौतिक सूर्य है जो पूरी पृथ्वी को प्रकाशित करता है और आज के दिन वह अपनी चरम अवस्था पर, यानी विषुवत रेखा के ठीक ऊपर, विराजमान होता है। लेकिन एक दूसरा सूर्य भी है जो हमारे आंतरिक जगत को प्रकाशित करता है। वह सूर्य है ईश्वर का वह अवतार जो हमारे समय में प्रकट होता है और नई शिक्षाओं, नए विधानों के माध्यम से मनुष्य के मन, मस्तिष्क और आत्मा में नई रोशनी भर जाता है। कृष्ण, मूसा, अब्राहम, जोरास्टर, गौतम बुद्ध, ईसा मसीह, मुहम्मद, और बाब ऐसे ही सूर्य थे जो हमारी आत्माओं को प्रकाशित करने आए थे। लेकिन हर सुबह एक नया भौतिक सूर्य उगता है और प्रकाश का नया स्रोत लेकर आता है। वैसे ही हर युग में एक नया आध्यात्मिक सूर्य भी उगता है। बहाउल्लाह इस नए युग के आध्यात्मिक सूर्य हैं। बहाई धर्म के आदर्श पुरुष अब्दुल-बहा ने लिखा है:

“जब सूर्य प्रकट होता है तो वह सभी चेतन वस्तुओं में जीवन का संचार कर देता है। पौधे खिलने लगते हैं और मनुष्य सहित सारे जीव-जंतु नए स्पंदन से भर जाते हैं। उसी तरह जब आध्यात्मिक सत्य का सूर्य प्रकट होता है तो वह सम्पूर्ण अस्तित्व के लिए नए जीवन का संकेतक होता है। हमारे विचार बदल जाते हैं, हमारा विवेक प्रखर हो उठता है। जैसे सौरमंडल का सूर्य धरती के जीवन का स्रोत है वैसे ही सत्य का सूर्य मानव-जगत में अनन्त जीवन का संचार करता है।“

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नौरुज़ न्याय का संदेश लेकर आता है। जब सूर्य विषुवत रेखा के ठीक ऊपर आता है तो रात और दिन बराबर हो जाते हैं। ठीक वैसे ही जब ईश्वरीय अवतार रूपी सूर्य इस सृष्टि के ऊपर जगमगाता है तो वह न्याय के एक नए युग की स्थापना करता है। जब कृष्ण आए थे तो न्याय का एक नया युग शुरु हुआ था। “परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम” के अपने प्रण से श्रीकृष्ण ने महान न्याय की ही उद्घोषणा की थी। जब पैगम्बर मुहम्मद प्रकट हुए थे तो उन्होंने अतीत की कुरीतियों को मिटाकर समानता पर आधारित एक नए धर्म की स्थापना की। वह न्याय की ही घोषणा थी। बहाउल्लाह ने मानवजाति की एकता का मूलमंत्र दिया और न्याय के बिना यह एकता स्थापित नहीं हो सकती। इसलिए बहाउल्लाह कहते हैं कि कोई किसी को दूसरे से ऊंचा न समझे। “निगूढ़ वचन” में उनके शब्द हैं: “हे मनुष्य के पुत्र! क्या तुम नहीं जानते कि हमने तुम सबको एक ही मिट्टी से क्यों उत्पन्न किया? ताकि कोई भी स्वयं को दूसरों से श्रेष्ठ न समझे।...”

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नौरुज़ तपस्या और आत्म-संयम का भी प्रतीक है क्योंकि बहाई वर्ष का अंतिम महीना है “आला” यानी “उच्चता” और यह वह महीना है जब बहाई पूर्ण उपवास रखते हैं। वे सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच खान-पान से पूर्णतया परहेज़ रखते हैं। उपवास और अनिवार्य प्रार्थना को बहाई धर्म में “आध्यात्मिक उच्चता के दो महत्वपूर्ण स्तम्भों” की संज्ञा दी गई है और अब्दुल-बहा ने स्पष्ट किया है कि उपवास का अर्थ केवल खान-पान से परहेज रखना नहीं है बल्कि यह सभी वासनाओं और आसुरी भावनाओं से बचने का आध्यात्मिक तप है। नौरूज की प्रार्थना में बहाउल्लाह कहते हैं: “स्तुति हो तेरी, हे परमात्मा! कि तूने नौरूज़ को उन लोगों के लिए एक उत्सव निर्धारित किया है जिन्होंने तेरे प्रेम के निमित्त उपवास रखा है और जो उन सभी वस्तुओं से दूर रहे हैं जो तेरी दृष्टि में घृणित है।“

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तो इस तरह ... नौरुज़ उपहार है उनके लिए जिन्होंने ईश्वर का आदेश माना है, उसके बताए मार्ग पर चलने के लिए तुच्छ वासनाओं और कामनाओं से ऊपर उठने का प्रयास किया है। जो “आला” यानी नैतिक उच्चता के शिखर से होकर गुजरेगा वही “बहा” यानी प्रकाश के लोक में प्रवेश कर सकेगा। यह नौरूज़ का एक गूढ़ संदेश है। अंत में, स्वयं बहाउल्लाह के शब्दों में:

“हे मित्रों, तुम्हारे लिए योग्य यही है कि अंतरात्मा को स्पंदित कर देने वाले इस दिव्य बसन्त-काल में प्रवाहित होने वाली भव्य कृपाओं के माध्यम से तुम अपनी आत्मा को नई ताजगी और नए जीवन से भर लो। परमात्मा की परम गरिमा के ’दिवानक्षत्र’ ने तुझपर अपनी कांति बिखेरी है और उसकी असीम करुणा के बादलों ने तुझपर अपनी छाँह बिछाई है।“

- सुनीति चंद्र मिश्र

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