एनसीईआरटी ने पुनरावृति से बचाव के लिए किया पाठ्यपुस्तकों में बदलाव

प्रो. रमाशंकर दूबे, कुलपति, गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय, गांधीनगर
गांधीनगर। हाल ही में कई समाचार माध्यमों से यह दावा किया जा रहा है कि एनसीईआरटी ने विज्ञान की पाठ्य पुस्तकों से आवर्तसारणी और चार्ल्स डार्विन के विकास के सिद्धांत को हटा दिया है,यह तथ्यात्मक रूप से सही नहीं है अपितु भ्रामक है। हम सभी जानते है कि शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है जो समय के साथ समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बदलती है और समृद्ध होती रहती है। स्कूली या उच्च शिक्षा के किसी भी पाठ्यक्रम को अद्यतन बनाने के लिए उसकी नियमित समीक्षा, पुनरीक्षण, पुनर्गठन और उसमें समुचित बदलाव एक सामान्य और अनिवार्य प्रक्रिया होती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति –2020 में स्कूल पाठ्यक्रम के पुनर्गठन सम्बन्धी अध्याय 4.1 में यह स्पष्ट रूप से वर्णित है कि ‘स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम और शैक्षणिक संरचना को विभिन्नचरणों में शिक्षार्थियों की विकास संबंधी आवश्यकताओं, उनकी आयु सीमा और हितों के अनुरूप संवेदनशील और प्रासंगिक बनाने के लिए पुनर्गठित किया जाएगा।’
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 का यह भी मंतव्य है कि छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और उनके उम्र और बौद्धिक क्षमता के विकास के स्तर को ध्यान में रखते हुए स्कूली पाठ्यपुस्तकों से सामग्री भार को कम किया जाए, अनुभवात्मक सीख और क्रिया-कलाप आधारित सीख को बढ़ावा दिया जाए जिससे छात्रों में जिज्ञासा और रचनात्मक मानसिकता का विकास सुनिश्चित हो सके। इसी पृष्ठभूमि में एनसीईआरटी ने सभी स्कूली कक्षाओं में पाठ्यपुस्तकों को युक्तिसंगत बनाने हेतु पाठ्यांशों के पुनर्गठन के लिए सार्थक पहल की है।
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जहाँ तक एनसीईआरटी के विज्ञान की पुस्तकों में रसायनविज्ञान सम्बन्धी आवर्त सारणी के पढाये जाने का प्रश्न है, यह 11वीं कक्षा में बहुत विस्तार से पढ़ाया जा रहा है। जबकि 10वीं कक्षा में छात्रों को रासायनिक पदार्थों की प्रकृति,व्यवहार, रासायनिक अभिक्रियाओं, अम्ल, क्षार और लवण, धातु और अधातुओं के गुण, बुनियादी धातुकर्म प्रक्रियाओं तथा कार्बन के यौगिकों को विस्तृत रूप से पढ़ाया जा रहा है, जिसमें नित उपयोग में आने वाले रसायनों के उदाहरण के साथ-साथ क्रिया-कलाप आधारित सीख को बढ़ावा देने की प्राथमिकता है। रसायनों के गुण, धर्म और उनकी अभिक्रियाओं को समझने के बाद ही आवर्त सारणीमें उनके स्थानऔर उनके परस्पर संबंधों के बारे में पढ़ना और समझना उचित और श्रेयस्कर होता है ।अतः आवर्त सारणी को 11वीं कक्षा में अधिक आयु उपयुक्त मानकर उसे विस्तार से पढाया जाना सर्वथा युक्तिसंगत है। एक ही विषय-वस्तु को लगभग समान सामग्री के साथ 10 वीं और 11वीं दोनों कक्षाओं में पढ़ाने से अनावश्यक रूप से पुनरावृतिहो रही थी, जिसे वर्तमान में ठीक किया गया है। इससे कक्षा 10 में पाठ्यकम के सामग्री भार में भी कमी आएगी जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 के अनुरूप है।
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इसी प्रकार यह भ्रांति फैलाई जा रही है कि चार्ल्स डार्विनके विकासवाद के सिद्धांत को एनसीईआरटी के पाठ्यपुस्तकों से हटा दिया गया है लेकिनवास्तविकता यह है कि 12 वीं कक्षा की जीव विज्ञान की पुस्तक में 17 पृष्ठों का एक पूरा अध्याय 7,‘विकास’ को समर्पित है जिसमें डार्विन के ‘शाखा वंश’ और ‘प्राकृतिक चयन’ के सिद्धांतों के अतिरिक्त विकास के ‘बिग बैंग सिद्धांत’ समेत विभिन्न सिद्धांतों का विस्तार से वर्णन है। विकास के सिद्धांत पर यह विस्तृत अध्याय 12 वीं कक्षा में पहले से ही पढ़ाया जा रहा है जो अब भी है। इसीलिये सामग्री भारकम करने के उद्देश्य से तथा सामग्री के पुनरावृति से बचाव हेतु कक्षा 10में ‘आनुवंशिकता और विकास’ के अध्याय की जगह ‘आनुवंशिकता’ का अध्याय कर दिया गया है, जो सर्वथा उचित है। इससे अनावश्यक रूप से लगभग एक ही पाठ्यसामग्री को दो कक्षाओं में छात्रों को नहीं पढ़ना पड़ेगा।
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ज्ञातव्य हो कि एनसीईआरटी ने पाठ्यक्रमों को और अधिक जानकारीपूर्ण बनाने, छात्रों के लिए सीखने के अनुभव को अनुकूल करने,तथा सामग्री-भार कोकम करने के उद्देश्य से ही पुराने पाठ्यक्रम के कई हिस्सों को कम किया है। किसी विशेष विषय में हटाए गए पाठ्यपुस्तकों के अंशोंका निर्णय विशेषज्ञ समिति करती है जिसमें देश के विभिन्नभाग से भाग लेनेवाले विषय-विशेषज्ञ होते हैं जो सामग्री भार के युक्तिकरण के लिए विशिष्ट मानदंड विकसित करने के पश्चात् ही निर्णय लेते हैं। वर्तमान सन्दर्भ में किसी भी कक्षासम्बन्धी पाठ्यपुस्तकों के अंश को हटाने के पहले, अभ्यास करने वाले शिक्षकों सहित विभिन्न हितधारकों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर एक सुविचारित राय सामने आई कि बच्चों को विभिन्न चरणोंमें समान अवधारणाओं का अध्ययन न करा कर, उनके उम्र के हिसाब से विषय-वस्तुके कठिनाई-स्तर कोध्यान में रखते हुए उचित स्तर पर ही अध्ययन कराया जाय। यह निर्विवाद है कि हम हमेशा स्कूली बच्चों के 'बस्ते के बोझ' को कम करने की बात तो तुरंत हो-हल्ला करने लगते हैं।
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यहाँ यह स्पष्ट है एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों से आवर्त सारणी,चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत या पूर्व में स्थित किसी अन्य पाठ्य सामग्री को निकाला नहीं गया है बल्कि युक्तिपूर्ण ढंग से उन्हें विभिन्न कक्षाओं के पाठ्यपुस्तकों में छात्रों के उम्र के हिसाब से तथा विषय-वस्तु के कठिनाई-स्तर को ध्यान में देखते हुए और पुनरावृत्ति को रोकने के लिए, उचित स्थान देकर व्यवस्थित किया गया है। अतः ये दावे पूरी तरह भ्रामक और तथ्यात्मक रूप से गलत हैं कि आवर्त सारणी और चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों से हटा दिया गया है।
(ये लेखक के निजी विचार है)
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