रक्तदान शिविर का आयोजन कर मनाया 'महात्मा बाब' का शहादत दिवस

जयपुर। बहाई धर्म के अग्रदूत दिव्यात्मा बाब के 173वें बलिदान-दिवस की स्मृति में सोमवार को बहाई भवन, मंगल मार्ग, बापू नगर, में जयपुर के स्थानीय बहाई समुदाय ने विशेष कार्यक्रम आयोजित किया। जहां बहाई धर्माम्वलम्बियो ने विशेष प्रार्थनाओं के साथ “रक्तदान शिविर” का भी आयोजन किया। जहां मित्रों ने 'रक्तदान महादान', 'डोनेट बल्ड, बी ए हिरो' डोनेट ब्लड गीव हॉप' आदि स्लोगन के माध्यम से रक्तदान का संदेश दिया। कार्यक्रम में उपस्थित युवा मित्रों ने रक्तदान कर प्रतिकात्मक रूप से महात्मा बाब को श्रद्धांजलि अर्पित की।
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इस अवसर पर बहाई वक्ता नियाज़ अनन्त द्वारा दिव्यात्मा बाब के जीवन एवं बलिदान पर प्रकाश डाला गया।
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उक्त जानकारी देते हुए स्थानीय बहाई आध्यात्मिक सभा के सचिव अनुज अनन्त ने बताया कि दिव्यात्मा बाब का जन्म शीराज (ईरान) में 1819 में हुआ था। उन्होंने घोषणा की कि वे एक नए अवतार, बहाउल्लाह (1817-1892), के लिए ’द्वार’ बनकर आए हैं। “बाब” शब्द का अर्थ “द्वार” होता है। बहाई धर्म में दिव्यात्मा बाब और बहाउल्लाह दोनों को “युगल अवतार” कहा गया है, जो विश्व को शांति, प्रेम और एकता के युग में ले जाने के लिए अवतरित हुए। दिव्यात्मा बाब की बढ़ती हुई लोकप्रियता और उनके युगांतरकारी विचारों के कारण रूढ़िवादी धर्मगुरुओं ने उनका विरोध किया और इस नवोदित धर्म की लोकप्रियता से घबराकर बाब के बीस हजार से भी अधिक अनुयायियों को वीभत्स यातनाएं देकर मौत के घाट उतार दिया गया। बाब को कैद और निर्वासन की सजा दी गई और जब इससे भी उनके धर्म का प्रभाव कम नहीं हुआ तो 9 जुलाई 1850 को मात्र 31 वर्ष की उम्र में ईरान देश में उन्हें गोलियों से शहीद कर दिया गया। बावजूद इसके, दिव्यात्मा बाब ने जिस युगान्तरकारी धर्म की घोषणा की थी वह आज बहाई धर्म के रूप में पृथ्वी के सभी देशों में फैल चुका है।
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उल्लेखनीय है कि दुनिया के बहाइयों की सबसे बड़ी आबादी भारत में रहती है जहां नई दिल्ली स्थित “कमल मन्दिर” इस समुदाय का एक लोकप्रिय आराधना-स्थल बनकर खड़ा है। दिव्यात्मा बाब वे पहले अवतार हैं जिन्होंने “स्त्री-पुरुष की समानता” का घोष किया था और उनके आरंभिक 19 अनुयायियों में एक प्रसिद्ध कवयित्री ’ताहिरा’ भी थी जिसने इस समानता के सिद्धान्त को आगे बढ़ाया।
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दिव्यात्मा बाब की समाधि हाइफा (इज़रायल) में स्थित है जहां हर वर्ष लाखों श्रद्धालु उनके जीवन से प्रेरणा ग्रहण करने और प्रार्थनाएं अर्पित करने आते हैं।
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