अचानक 10 साल बाद मिला पति! हालत थी भिखारी जैसी, रोती-बिलखती पत्नी लगी दुलारने-संवारने

 
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UP News: बलिया में एक महिला ने दावा किया कि उसने जिला अस्पताल के बाहर एक मानसिक रूप से विक्षिप्त आदमी को देखा। भिखारी जैसी स्थिति में दिख रहे शख्स पर गौर किया और जब उसके नजदीक गई तो वह 10 साल पहले लापता हुआ पति निकला। इसके बाद उसे वह अपने घर ले गई।

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के बलिया से एक प्रेम, प्रतिज्ञा और प्रतीक्षा की करुण कहानी सामने आई है। यहां एक महिला ने दावा किया कि जब वह अपने इलाज के लिए जिला अस्पताल गई तो उसे वहां एक विक्षिप्त-सा आदमी दिखाई दिया। जब नजदीक पहुंची तो वह शख्स 10 साल पहले लापता हुआ पति नजर आया। यह देखते ही वह बिलख पड़ी और किसी मासूम बच्चे की तरह उसे संवारने और दुलारने लगी। 

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अस्पताल के बाहर भिखारी जैसी वेशभूषा में दिखने वाले शख्स के सामने एक महिला को बैठे देख लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। मानसिक रूप से विक्षिप्त नजर रहे शख्स के बाल और दाढ़ी बेतरतीब ढंग से बढ़ी हुई थी। मैले कुचैले कपड़े पहने वह जमीन पर उकडूं बैठा हुआ था। 

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महिला उसके बाल संवारते और शरीर को साफ करती हुई नजर आ रही थी। साथ ही रोते बिलखते हुए स्थानीय बोली में कहती नजर आ रही थी कि दस साल पहले लापता हो गए थे। इतने दिनों से कहां थे? क्यों चले गए थे? जैसे सवाल एक साथ पूछती नजर रही थी। हालांकि, वह शख्स कुछ भी बोलता नजर नहीं आ रहा था। गुमसुम ही बैठा हुआ था। देखें Video:-

महिला ने उस दौरान मोबाइल से घर पर शायद बच्चों को कॉल किया और कहा कि एक कुर्ता ले आओ। इसके बाद एक युवक बाइक से आया और महिला समेत मानसिक विक्षिप्त शख्स को अपने साथ ले गया। 

फिलहाल इस पूरे मामले का वीडियो वायरल होने पर समाजसेवी समेत अन्य लोग उस महिला की तलाश में जुट गए हैं, ताकि महिला और उस शख्स की किसी तरह से मदद कर सकें। 

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DSP ने गाड़ी रोकी तो निकला उन्हीं के बैच का ऑफिसर
मध्य प्रदेश के ग्वालियर से भी साल 2020 में एक ऐसा ही मामला सामने आया था, जहां डीएसपी सड़क किनारे जब एक भिखारी के पास गए तो दंग रह गए। वो भिखारी उनके ही बैच का ऑफिसर निकला। दरअसल, ग्वालियर में उपचुनाव की मतगणना के बाद डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर और विजय सिह भदौरिया झांसी रोड से निकल रहे थे। जैसे ही दोनों बंधन वाटिका के फुटपाथ से होकर गुजरे तो उन्हें वहां एक अधेड़ उम्र का भिखारी ठंड से ठिठुरता दिखाई पड़ा। उसे देखकर अफसरों ने गाड़ी रोकी और उससे बात करने पहुंच गए।  

इसके बाद दोनों अधिकारियों ने उसकी मदद की। रत्नेश ने अपने जूते और डीएसपी विजय सिंह भदौरिया ने अपनी जैकेट दे दी। इसके बाद जब दोनों ने बातचीत शुरू की तो हतप्रभ रह गए। वह भिखारी डीएसपी के बैच का ही ऑफिसर मनीष मिश्रा निकला। मनीष मिश्रा भिखारी के रूप में पिछले 10 सालों से लावारिस हालात में घूम रहे थे।  

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दरअसल, मनीष मिश्रा ने 2005 तक पुलिस की नौकरी की और वह अंतिम समय में दतिया जिले में पदस्थ थे। धीरे-धीरे अचानक उनकी मानसिक स्थिति खराब हो गई। घरवाले भी परेशान होने लगे। इलाज के लिए मनीष को जहां-जहां ले जाया गया, वो वहां से भाग गए।  कुछ दिन बाद परिवार को भी नहीं पता चल पाया कि मनीष कहां चले गए? पत्नी भी उन्हें छोड़कर चली गई। बाद में पत्नी ने तलाक ले लिया। धीरे-धीरे वह भीख मांगने लगे। और भीख मांगते-मांगते करीब दस साल गुजर गए। 

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