होली आई है..., हर साल की तरह, इस बार भी आई है...

होली आई है,
हर साल की तरह,
इस बार भी आई है।
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हिरण्यकश्यप व होलिका का अधर्म मिटाने,
धर्म के प्रतीक प्रह्लाद को बचाने,
घमंड व बुराई का दहन करने,
होली पिछली बार भी आई थी,
इस बार भी आई है
पर ये बुराइयां खत्म होंगी,
शायद अंदाजा नहीं है।
दो दिन नशे में डूबी हुई दुनिया,
विलासिता के रंग में फूहड़ हुई दुनिया।
रंग उल्लास मत समझो इसे ,
भोग विलास कहो इसे।
गांव गलियों में जाकर देखना,
बेशर्मी का नग्न नृत्य मिलेगा,
कृष्ण का पवित्र प्रेम नहीं,
रावण छल करता हुआ मिलेगा।
कहीं नशे में मदहोश दुनिया,
कहीं रोटी के पड़े हैं लाले।
कहीं रंगों में सरोबार दुनिया,
कहीं पानी पर लगे हैं ताले।
कहीं दाने-दाने को मोहताज बच्चें,
कहीं लजीज पकवान बने हैं।
कहीं तन ढकने को कपड़े नहीं हैं,
कहीं तन कपड़ों से बाहर हुए हैं।
कहीं मखमली कालीन बिछी हैं,
कहीं सोने के लिए नहीं बिछोना।
कहीं डाइनिंग टेबल पर लजीज व्यंजन,
कहीं रोटी के लिए होता रोना।

उप निरीक्षक, राजस्थान पुलिस
ये जो तुम गुलाल बिखेर रहे हो,
विलासी दावतों के चटकारे ले रहे हो।
हो सके तो उन झोपड़ियों में जाना,
जहां रोटी के लिए बच्चे रो रहें हों।
कुछ खाना वहां भी ले जाना,
जहां चूल्हा ना जला हो।
कुछ पिचकारी वहां चलाना,
जहां बचपन दुख में पला हो।
हो सके तो गांव में ,
पिता के पास जाना।
तेरे अनमोल वक्त के दो पल,
उनके पास जरूर बिताना।
बूढ़ी मां के चरणों में,
जाकर अपना शीश झुकाना।
जिसने तेरी खुशियों की खातिर,
भुला दिया हो जमाना।।
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