Supreme Court में सेम सेक्स मैरिज पर हुई सुनवाई, कोर्ट ने कहा- नए सिरे से परिभाषा लिखने के लिए केंद्र को मजबूर नहीं कर सकते

केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह मुद्दा सवाल उठाता है कि शादी क्या है, किसके बीच होती है।
 
Supreme Court में सेम सेक्स मैरिज पर हुई सुनवाई, कोर्ट ने कहा- नए सिरे से परिभाषा लिखने के लिए केंद्र को मजबूर नहीं कर सकते

नई दिल्ली। सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने वाली 20 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है। इस दौरान एक याचिकाकर्ता ने कहा कि सेम सेक्स मैरिज को मान्यता न देकर आप LGBTQ कपल के बच्चों को पैरेंटहुड से वंचित कर रहे हैं। वहीं केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यह मुद्दा सवाल उठाता है कि शादी क्या है, किसके बीच होती है, इस पर कौन फैसला करेगा सरकार या कोर्ट। लेकिन इस पर नए सिरे परिभाषा लिखने के लिए केंद्र को मजबूर नहीं किया जा सकता। याचिकाकर्ताओं की दलीलें खत्म हो चुकी हैं। सुनवाई CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस रवींद्र भट, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस हिमा कोहली की संवैधानिक बेंच कर रही है। अब सुनवाई गुरुवार को होगी।

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सांसद विधायक को होमोसेक्शुअलिटी की जानकारी थी, लेकिन उन्होंने इसे सोच समझकर नजरअंदाज किया। यानी जब स्पेशल मैरिज एक्ट पर बहस चल रही थी तब हमारे जनप्रतिनिधि होमोसेक्शुअलिटी से अनजान नहीं थे, लेकिन उन्होंने पार्टीज की जगह पुरुष और महिला शब्द का इस्तेमाल किया। तुषार मेहता ने 1950 के संसदीय बहस को पढ़ा जब स्पेशल मैरिज एक्ट को यह दिखाने के लिए लागू किया गया था कि संसद समलैंगिकता के बारे में जागरूक थी। लेकिन जानबूझकर इस पहलू को कानून से बाहर कर दिया गया क्योंकि विवाह कानून में LGBTQ समुदाय को शामिल करने का इरादा कभी नहीं था। तुषार मेहता ने केंद्र का पक्ष रखते हुए CJI चंद्रचूड़ के पिता वाईवी चंद्रचूड़ के एक फैसले का जिक्र किया। SG ने कहा कि उन्होंने गुरुबख्श सिंह केस में कहा था कि ज्यूडिशियरी को संसद के काम में दखल नहीं देना चाहिए। इस पर CJI ने कहा कि न्यायिक शक्तियों पर ये फैसले पूरी तरह सेटल्ड हैं। लेकिन इस तर्क के कारण मेनका गांधी से लेकर सायरा बानो तक के केस दोबारा खोलने पड़ेंगे। शायद आपका सबमिशन ये नहीं है।

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इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के इंटरवेनर क्वीर कलेक्टिव की ओर से दलील दे रहे जयदीप गुप्ता ने कहा, यह कहना गलत है कि भारतीय जिन पारिवारिक मूल्यों को संजोते हैं, उन पर असर पड़ेगा। पारिवारिक मूल्यों ही वजह हैं जिनके कारण वे शादी करना चाहते हैं। अभी समाज में इन लोगों को अपोजिट जेंडर से शादी के लिए मजबूर किया जा रहा है। इससे भी बुरी बात यह है कि कुछ लोग हैं इन्हें कन्वर्जन थैरेपी की सलाह दे रहे हैं, उन्हें लगता है ये बीमारी हैं, जिसे दवाओं से ठीक किया जा सकता है। समानता इस बात को सुनिश्चित करेगी कि वे जबरन शादी और कन्वर्जन थैरेपी से बचेंगे।

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रायपुर के याचिकाकर्ता की तरफ से एडवोकेट अरुंधति गुप्ता काटजू ने दलील दी कि केंद्र का कहना है कि सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देना, व्यक्तिगत कानूनों के साथ खिलवाड़ होगा, लेकिन हम भी समाज का हिस्सा हैं। हमारे माता-पिता भी उस दिन को देखने के लिए तरसते हैं, जब हम शादी करें। किसी दूसरे जोड़े की तरह ही हमें भी आशीर्वाद चाहिए। अरुंधति ने कहा कि जिन LGBTQ जोड़े के बच्चे हैं, उनकी शादी को मान्यता न देकर आप उनके बच्चों को पैरेंटहुड (माता-पिता की परवरिश) से वंचित कर रहे हैं।

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