कूनो पार्क में बढ़ता कुनबा, अफ्रीका से आ रहे 12 और मेहमान; 20 होगी चीतों की संख्या

पर्यारण मंत्रालय ने गुरुवार को जानकारी दी है कि 12 नए चीतों के आते ही कुल संख्या 20 पर पहुंच जाएगी। गुरुवार को सुबह 6 बजे भारतीय वायुसेना का विमान C17 'ग्लोब मास्टर' हिंडन एयरपोर्ट से रवाना हो गया है।
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में चीतों की संख्या में इजाफा होने जा रहा है। खबर है कि शनिवार यानी 18 फरवरी तक 12 और चीते दक्षिण अफ्रीका से भारत आ रहे हैं। भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच हुए समझौते के तहत यह कहा गया है कि एक दशक तक हर साल 10 से 12 चीजे भारत को दिए जाएंगे। यह पूरी प्रक्रिया प्रोजेक्ट चीता के तहत की जा रही है।
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पर्यारण मंत्रालय ने गुरुवार को जानकारी दी है कि 12 नए चीतों के आते ही कुल संख्या 20 पर पहुंच जाएगी। गुरुवार को सुबह 6 बजे भारतीय वायुसेना का विमान C17 'ग्लोब मास्टर' हिंडन एयरपोर्ट से रवाना हो गया है। संभावनाएं जताई जा रही हैं कि विमान गुरुवार शाम को जोहानिसबर्ग पहुंचेगा। इसके बाद शुक्रवार शाम भारत के लिए रवाना हो सकेगा।
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ये नए सदस्य होंगे शामिल
एमपी के कूनो पार्क में पहले ही 8 चीते मौजूद हैं। नए सदस्यों के शामिल होने पर परिवार बढ़कर 20 का हो जाएगा। शुक्रवार को क्वाजुलु फिंदा गेम रिजर्व से 2 नर और एक मादा, वहीं लिम्पोपो प्रांत के रुईबर्ग गेम रिजर्व से 5 नर और 4 मादा चीते भारत आ रहे हैं।
महानिदेशक (वन्यजीव) एसपी यादव ने कहा, 'वे क्वारंटाइन में थे और अब वे लाने के लिए तैयार हैं। दक्षिण अफ्रीका के कई चीता एक्सपर्ट और वेटरनरी डॉक्टर्स भी उनके साथ आ रहे हैं। 20 फरवरी को हम भी चीता कंजर्वेशन फंड समेत इंटरनेशनल चीता एक्सपर्ट्स के साथ कूनो में प्रोस कॉन्फ्रेंस करेंगे। यह हमें आगे की राह दिखाएगा और यह समझने में मदद करेगा कि हम सही रास्ते पर हैं या नहीं।'
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जब भारत में दोबारा हुए चीतों का आगमन
खास बात है कि भारत में साल 1952 में चीजों को विलुप्त घोषित कर दिया गया था। इसके बाद 17 सितंबर 2022 को इन मांसाहारी जानवरों का भारत में दोबारा आगमन हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कूनो नेशनल पार्क में उन्हें छोड़ा था। उस दौरान पहुंचे आठ चीतों में से पांच मादा और तीन नर थे।
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प्रधानमंत्री कार्यालय ने बताया था, 'ये चीता भारत में खुले जंगल और चरागाहों के इकोसिस्टम को बहाल करने में मदद करेंगे। इससे जैव विविधता के संरक्षण में मदद मिलेगी और यह जल सुरक्षा, कार्बन पृथक्करण और मृदा की नमी के संरक्षण जैसी इकोसिस्टम से जुड़ी सेवाओं को बढ़ाने में मदद करेगा, जिससे बड़े पैमाने पर समाज को लाभ होगा।'
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