Chess World Cup 2023: निराश न हो चांद की ओर देखो प्रज्ञानंदा, बाजी अभी बाकी है जीत की

 
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शतरंज की बिसात पर प्रज्ञानंदा को कार्लसन से हार मिली है। लेकिन उन्हें निराश होने की जरूरत नहीं। जिस तरह 2019 में असफल होने के बाद हमारे वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 को चांद की सतह पर लैंड कराते हुए करिश्मा किया, ठीक वैसे ही अलगे विश्व कप में प्रज्ञानंदा भी कमाल कर सकते हैं।

नई दिल्ली। 2019 में चांद पर झंडा फहराने की तैयारी थी। हमारे चंद्रयान-2 के लैंडर की चांद की सतह पर लैंडिंग होनी थी। आखिरी पलों में निराशा हाथ लगी और उस समय तिरंगा फहराने का सपना टूट गया। वैज्ञानिकों की आंखों में आंसू थे। पीएम मोदी सभी को ढाढस बंधा रहे थे। लेकिन कहते हैं न कि हार तब तक नहीं होती जब तक मान न ली जाए। इसरो ने 4 साल बाद कमाल करते हुए एक दिन पहले ही चांद पर तिरंगा फहराते हुए दुनियाभर में भारत की छाती चौड़ी कर दी। यह सिर्फ एक सफलता नहीं है। यह सीख है।

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इधर, हर किसी की निगाहें प्रज्ञानंदा पर टिकी हुई थी, जो दो दिन से मैग्नस कार्लसन से फीडे विश्व कप का खिताबी जंग लड़ रहे थे। उन्हें आज टाईब्रेक में हार मिली। बावजूद इसके हर भारतीय को उन पर गर्व है। इस युवा लड़के ने हर योद्धा को धूल चटा दी थी। उनकी उम्र सिर्फ 18 वर्ष है और खेल अभी खत्म नहीं हुआ है। फिर विश्व कप खेला जाएगा और यकीन करिए यूं ही प्रज्ञानंदा आगे बढ़ते रहे तो अगली बाजी उनसे कोई छीन नहीं सकता।

खैर, करियर की बात करें तो आर. प्रज्ञानंदा ने अपने माता-पिता की वजह से शतरंज खेलना शुरू किया था, क्योंकि वे चाहते थे कि वह और उनकी बहन टीवी न देखें। उस वक्त उन्हें नहीं पता था कि उनका टीवी से दूर करने का फैसला बेटे और बिटिया के लिए वरदान साबित होगा। जिस उम्र में बच्चे 10वीं और 12वीं की परीक्षा की तैयारी करते हैं या खेल-कूद में मस्त रहते हैं उस उम्र में प्रज्ञानंदा देश की शान बन चुके हैं। 18 वर्षीय इस युवा खिलाड़ी को लंबे समय से विश्वनाथन आनंद के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता रहा है, जो 5 बार के विश्व चैंपियन हैं।

चेन्नई के इस किशोर ने छोटी उम्र में ही कैंडिडेट्स में जगह बनाने वाला केवल दूसरा भारतीय बनकर यह साबित कर दिया था कि जब बड़े चेस इवेंट्स की बात आती है तो उनसे निपटना आसान नहीं होगा। 4.5 साल की उम्र में इस खेल को शुरू करने वाले इस युवा खिलाड़ी ने करियर में अब तक कई करिश्मे किए हैं। आनंद के मार्गदर्शन में प्रज्ञानंदा का लगातार विकास हो रहा है।

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प्रज्ञानंदा ने पिछले साल एक ऑनलाइन टूर्नामेंट में विश्व नंबर 1 और पूर्व क्लासिक चैंपियन मैग्नस कार्लसन को हराकर दिखा दिया कि वह दबाव में रहकर भी सबसे अच्छे खिलाड़ियों को उनके ही खेल में हराने में सक्षम हैं। हालांकि, क्लासिक प्रारूप में उनकी क्षमता पर अभी भी सवाल हैं। इसके बावजूद इतनी छोटी उम्र में फीडे विश्व कप के फाइनल में पहुंचना किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है। इस किशोर ग्रैंडमास्टर ने दिखा दिया है कि वह बड़े लीग में आने के लिए काबिल हैं।

चेन्नई के प्रज्ञा ने राष्ट्रीय अंडर-7 खिताब जीतकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था और तब से लगातार आगे बढ़ रहे हैं। 10 साल की उम्र में वे एक इंटरनेशनल मास्टर बन गए और दो साल बाद वे एक ग्रैंडमास्टर बन गए। 2019 के अंत में उन्होंने 14 साल और तीन महीने की उम्र में 2600 एलो रेटिंग हासिल की और इस तरह से अपने करिश्माई सफर में तेजी से आगे बढ़ने लगे। 2020 में कोविड-19 महामारी के दौरान सबकुछ बंद हुआ तो थोड़ी मुश्किल जरूर आई, लेकिन प्रज्ञानंदा ने ऑनलाइन टूर्नामेंटों में अच्छा प्रदर्शन किया और लगातार बेहतर होते गए।

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उन्होंने 2021 में मेल्टवाटर चैंपियंस टूर में शानदार प्रदर्शन किया, जिसमें उन्होंने सर्गेई कर्जाकिन, तेइमूर रजाबाव और जन-क्रिजिस्तोफ डुडा जैसे दिग्गजों पर जीत दर्ज की और कार्लसन के साथ ड्रॉ किया। उन्होंने 2022 में एयरथिंग्स मास्टर्स रैपिड टूर्नामेंट में कार्लसन को हराकर हर किसी को चौंका दिया था। वह आनंद और पी. हरिकृष्ण के बाद केवल तीसरे भारतीय बने, जिन्होंने अपराजेय नजर आने वाले कार्लसेन के खिलाफ बाजी पलटी। प्रज्ञानंदा का स्वभाव तो शांत है, लेकिन उनके गेम में गजब की आक्रामकता है।

उन्होंने विश्व नंबर 2 हिकारू नाकामुरा के खिलाफ करिश्माई प्रदर्शन किया था और फिर विश्व नंबर 3 फैबियानो कारुआना के खिलाफ सेमीफाइनल को टाईब्रेक में जीत हासिल की। इस दौरान उनका संयम गजब का रहा। उनके लिए ग्रैंडमास्टर एम श्याम सुंदर कहते हैं- प्रज्ञानंदा की सबसे बड़ी स्ट्रेंथ यह है कि वह खराब स्थितियों में भी सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के खिलाफ बचाव कर सकते हैं।

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आनंद की तरह परिवार का समर्थन उनकी सफलता की सबसे बड़ी वजह रही। खासकर उनकी मां नागलक्ष्मी टूर्नामेंटों में लगातार उनके साथ मौजूद होती हैं। प्रसिद्ध कोच आर.बी.रमेश और बाद में आनंद के मार्गदर्शन में प्रज्ञानंदा ने अपने खेल को नया आयाम दिया है। तभी तो उनकी विलक्षण प्रतिभा से अभिभूत विश्वनाथन आनंद कहते हैं- यह स्वर्णिम काल के युवा हैं।

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