चंद्रयान-3 आया चांद के ऑर्बिट में... अब बस उतरना बाकी

Chandrayaan 3 Lunar Orbit Injection: ISRO ने बड़ी सफलता हासिल की है। Chandrayaan-3 ने चांद का ऑर्बिट पकड़ लिया है। अब चंद्रयान करीब 166 km x 18 हजार km की ऑर्बिट में यात्रा कर रहा है। ये चंद्रमा का ऑर्बिट है। इसके बाद अगला बड़ा दिन 17 अगस्त होगा। जब चंद्रयान-3 प्रोपल्शन और लैंडर मॉड्यूल अलग होगा। इसके बाद सिर्फ लैंडिंग बाकी रहेगी।
नई दिल्ली। Chandrayaan-3 ने चंद्रमा की बाहरी कक्षा पकड़ ली है। अब चंद्रयान-3 चंद्रमा के चारों तरफ 166 km x 18054 किलोमीटर की अंडाकार कक्षा में चक्कर लगाएगा। इसरो ने चंद्रयान-3 को चंद्रमा के ऑर्बिट को पकड़ने के लिए करीब 20 से 25 मिनट तक थ्रस्टर्स ऑन रखा। इसी के साथ चंद्रयान चंद्रमा की ग्रैविटी में फंस गया। अब वह उसके चारों तरफ चक्कर लगाता रहेगा।
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इसे लूनर ऑर्बिट इंजेक्शन या इंसर्शन (Lunar Orbit Injection or Insertion - LOI) भी कहते हैं। चंद्रमा के चारों तरफ पांच ऑर्बिट बदले जाएंगे। आज के बाद 6 अगस्त की रात 11 बजे के आसपास चंद्रयान की ऑर्बिट को 10 से 12 हजार किलोमीटर वाली ऑर्बिट में डाला जाएगा। 9 अगस्त की दोपहर पौने दो बजे करीब इसके ऑर्बिट को बदलकर 4 से 5 हजार किलोमीटर की ऑर्बिट में डाला जाएगा।
14 अगस्त की दोपहर इसे घटाकर 1000 किलोमीटर किया जाएगा। पांचवें ऑर्बिट मैन्यूवर में इसे 100 किलोमीटर की कक्षा में डाला जाएगा। 17 अगस्त को प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल अलग होंगे। 18 और 20 अगस्त को डीऑर्बिटिंग होगी। यानी चांद के ऑर्बिट की दूरी को कम किया जाएगा। लैंडर मॉड्यूल 100 x 35 KM के ऑर्बिट में जाएगा। इसके बाद 23 की शाम पांच बजकर 47 मिनट पर चंद्रयान की लैंडिंग कराई जाएगी। लेकिन अभी 18 दिन की यात्रा बची है।
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अब लगातार कम की जाएगी चंद्रयान-3 की स्पीड
चांद के ऑर्बिट को पकड़ने के लिए चंद्रयान-3 की गति को करीब 3600 किलोमीटर प्रतिघंटा के आसपास किया गया। क्योंकि चंद्रमा की ग्रैविटी धरती की तुलना में छह गुना कम है। अगर ज्यादा गति रहती तो चंद्रयान इसे पार कर जाता। इसके लिए इसरो वैज्ञानिकों ने चंद्रयान की गति को कम करके 2 या 1 किलोमीटर प्रति सेकेंड किया। इस गति की वजह से वह चंद्रमा के ऑर्बिट को पकड़ पाया। अब धीरे-धीरे चांद के चारों तरफ उसके ऑर्बिट की दूरी को कम करके दक्षिणी ध्रुव के पास पर लैंड कराया जाएगा।
Chandrayaan-3 Mission Update:
— LVM3-M4/CHANDRAYAAN-3 MISSION (@chandrayaan_3) August 5, 2023
Lunar Orbit Insertion (LOI) maneuver was completed successfully today (August 05, 2023). With this, #Chandrayaan3 has been successfully inserted into a Lunar orbit.
The next Lunar bound orbit maneuver is scheduled tomorrow (August 06, 2023), around… pic.twitter.com/IC3MMDQMjU
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चंद्रयान के रास्ते में असफलता का नाम ही नहीं
इतिहास देख लीजिए... जिन भी देशों या स्पेस एजेंसियों ने सीधे चंद्रमा की ओर अपने रॉकेट के जरिए स्पेसक्राफ्ट भेजा। उन्हें निराशा ज्यादा मिली है। तीन मिशन में एक फेल हुआ। लेकिन इसरो ने जो रास्ता और तरीका चुना है, उसमें फेल होने की आशंका बेहद कम है। यहां दोबारा मिशन पूरा करने का चांस है।
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इस बार वो गलती नहीं होगी, जो पिछली बार थी
इस बार जो यंत्र लैंडर में लगाया गया है, उसका नाम है लेजर डॉपलर वेलोसिटीमीटर (LDV) और लैंडर हॉरीजोंटल वेलोसिटी कैमरा (LHVC)। लेजर डॉपलर वेलोसिटीमीटर जमीन पर उतरते समय थ्रीडी लेजर फेंकता है। यह लेजर जमीन से टकराकर वापस यह बताता है कि सतह कैसी है। ऊंची-नीची। ऊबड़-खाबड़। इसके आधार पर वह लैंडिंग के लिए सही जगह का चुनाव करता है।
बाकी दो दिशाओं में जो लेजर जाते हैं, वो ये देखते हैं कि कहीं सामने या पीछे की तरफ कोई ऊंची चीज तो नहीं है, जिससे लैंडर के टकराने का खतरा हो। इसके साथ ही काम करता है LHVC जो जमीन की नीचे के हिस्से की तस्वीर लेता है। वह भी गति में। ताकि लैंडर के उतरने और हेलिकॉप्टर की तरह हवा में तैरते रहने की गति पता चल सके। साथ ही खतरों का अंदाजा हो सके।
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